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This Article is From Jan 17, 2019

क्या है 'ऑपरेशन लोटस 3.0', कुमारस्वामी सरकार के खिलाफ कर्नाटक में 2008 दोहरा पाएगी बीजेपी?

कर्नाटक में एक बार फिर से सियासी घमासाम परवान चढ़ चुका है. कर्नाटक में सात माह पुरानी मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी नीत कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार को एक बार फिर से अस्थिर करने की कोशिशें जारी हैं.

क्या है 'ऑपरेशन लोटस 3.0', कुमारस्वामी सरकार के खिलाफ कर्नाटक में 2008 दोहरा पाएगी बीजेपी?
कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस 3.0 चल रहा है.
नई दिल्ली:

कर्नाटक (Karnataka) में एक बार फिर से सियासी घमासाम (Karnataka Political Crisis)  परवान चढ़ चुका है. कर्नाटक में सात माह पुरानी मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी नीत कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन (Congress-JDS Govt) सरकार को एक बार फिर से अस्थिर करने की कोशिशें जारी हैं और इसके केंद्र में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी ही है, जो इससे पहले भी कई बार ऐसे प्रयास दोहरा चुकी है. कर्नाटक में दो निर्दलीय विधायकों के जनता दल (एस)-कांग्रेस गठबंधन से समर्थन वापस लेने के बाद कुमारस्वामी सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. हालांकि, कांग्रेस और जेडीएस का कहना है कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है और उनकी सरकार स्थिर है. उनका कहना है कि कांग्रेस-जेडीएस सरकार को अस्थिर करने की बीजेपी की कोशिश कामयाब नहीं होगी. साथ ही दोनों पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि भाजपा उसके विधायकों को तोड़ने की कोशिशों में जुटी है. दरअसल, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर से कर्नाटक सियासी चर्चा का केंद्र बिंदू उस वक्त बना जब कांग्रेस के तीन विधायक अचानक गायब हो गये और फिर उसके बाद कुमारस्वामी सरकार को झटका देते हुए दो निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया. हालांकि, बाद में पता चला कि कांग्रेस के ये तीन विधायक मुंबई के एक होटल में ठहरे हुए हैं. 

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इस तरह से देखा जाए तो अभी 5 विधायक गायब हैं, जिसे लेकर कांग्रेस-जेडीएस का आरोप है कि बीजेपी उन्हें खरीदने की कोशिश कर रही है. वहीं, येदियुरप्पा के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने अपने विधायकों को तोड़-फोड़ से बचाने के लिए सभी 104 विधायकों को गुरुग्राम के एक रिजॉर्ट में रख दिया है. बताया यह भी जा रहा है कि मुंबई के होटल में रुके कर्नाटक कांग्रेस के 4 विधायक आज इस्तीफ़ा दे सकते हैं. ये विधायक यहां पिछले चार दिनों से ठहरे हुए हैं. कर्नाटक में इसी सियासी उठापटक को 'ऑपरेशन लोटस 3.0' नाम दिया जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पहले भी बीजेपी कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को गिराने की कोशिश कर चुकी है.

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ऑपरेशन लोटस 3.0:
ऑपरेशन लोटस 3.0 को समझने के लिए कर्नाटक में सीटों के समीकरण को समझना होगा. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के पास कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है, मगर ऑपरेशन लोटस से भाजपा कर्नाटक की सत्ता में आना चाहती है. हालांकि, अकेले के दम की बात करे तो मई 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे 15 मई को आने के बाद से ही बीजेपी असंतुष्ट कांग्रेसी विधायकों को अपनी ओर खींचने के प्रयास करती रही है. मई 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसने 104 सीटें अपने नाम की थी. मगर सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी उसे सत्ता से महरूम रहना पड़ा था. वहीं, इस चुनाव में कांग्रेस को 80 सीटें मिलीं. जनता दल सेक्युलर को 37 सीटें मिलीं. जबकि बसपा को एक, निर्दलीय दो है. दरअसल, कर्नाटक में 224 विधायक हैं. मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को कांग्रेस के 80, जनता दल सेक्यूलर के 37 और बीएसपी के एक विधायक का समर्थन है. एक मनोनीत विधायक का भी समर्थन भी उन्हें है. इस तरह कांग्रेस-जेडीएस के पास 119 विधायक हैं. बता दें कि कर्नाटक में बहुमत का आंकड़ा 113 है.

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वहीं, बीजेपी के पास 104 विधायक हैं और दो निर्दलीयों को मिलाकर उसके पास 106 विधायक हैं. बीजेपी के ऑपरेशन लोटस 3.0 में कोशिश है कि किसी तरह के 13 कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे दिलाने की ताकि बहुमत का आंकड़ा घटकर 106 रह जाए और बीजेपी सरकार बना ले. इस पूरे मसले को ऑपरेशन लोटस 3.0 इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि यह तीसरी बार है जब बीजेपी सत्ता में आने के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति कर रही है. 

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ऑपरेशन लोटस 2.0:
मई 2018 में चुनावी परिणाम के बाद जो सियासी नाकट देखने को मिले, उसे कर्नाटक की राजनीति में ऑपरेशन लोटस 2.0 के नामे जाना जाता है. दरअसल, मोदी लहर के बाद बीजेपी की सीटें कर्नाटक में सबसे ज्यादा रही थीं, मगर वह सरकार नहीं बना पाई. बीजेपी को 104 सीटें मिली थीं. 80 विधायक लाने वाली कांग्रेस ने 37 विधायक वाली जनता दल सेक्यूलर के साथ गठबंधन कर लिया और सरकार बनाने का दावा पेश किया. हालांकि, राज्यपाल ने गठबंधन को दरकिनार करके सबसे ज्यादा सीटें लाने वाली बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया और बहुमत साबित करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया. मगर इससे पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और पंद्रह दिनों का समय अचानक एक दिन कर दिया गया. फिर अंत में जाकर येदियुरप्पा बहुमत साबित करने से पहले ही एक भाषण देकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इस दौरान कांग्रेस के विधायकों को सुरक्षित रखने की कमान डीके शिवकुमार के हाथों में थी. इस तरह से बीजेपी का ऑपरेशन लोटस 2.0 भी कामयाब नहीं हो पाया था.

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ऑपरेशन लोटस 1.0:
ऑपरेशन लोटस पहली बार साल 2008 में चर्चा में आया था. 2008 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे. 224 सदस्यों की विधानसभा में उस वक्त भी किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. उस साल सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता मिला था. बीजेपी में येदियुरप्पा को फिर से विधायक दल का नेता चुना गया. येदियुरप्पा ने छह निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली थी मगर वह भलीभांति जानते थे निर्दलीयों के समर्थ से वह ज्यादा दिन सरकार नहीं चला सकते थे. इसलिए उन्होंने ऑपरेशन लोटस की मदद ली. उस चुनाव में सीटों की संख्या इस प्रकार थी. भाजपा- 110, कांग्रेस- 80, जेडीएस- 28, निर्दलीय- 6. अब अपनी संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से येदियुरप्पा ने अपना सियासी दांव चला और विपक्षी दलों के विधायकों को तोड़ने का काम शुरू कर दिया. बीजेपी ने सात विधायकों पर डोरे डाले और इस तरह से ऑपरेशन लोटस के तहत कांग्रेस के तीन और जेडीएस के चार विधायकों को तोड़ने में कामयाब रहे. 

अब बीजेपी ने इनसे पहले इस्तीफा दिलवाया और उपचुनाव हुए. बीजेपी ने इन सातों को अपने टिकट पर सियासी मैदान में उतारा और इनमें से पांच विधायक उपचुनाव में जीत हासिल करने में कामयाब रहे. इस तरह से बीजेपी की संख्या विधानसभा में 115 हो गई जो बहुमत के आंकड़े से दो अधिक था. 2008 में इसी सियासी उठापटक को पहली बार ऑपरेशन लोटस यानी ऑपरेशन कमल के रूप में जाना गया. 
 

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