'सही वक्त पर करेंगे सुनवाई' : हिजाब मामले में सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का फिर इंकार

कर्नाटक हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिर सुनवाई की तारीख देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इसे बड़े स्तर पर न फैलाएं.

'सही वक्त पर करेंगे सुनवाई' : हिजाब मामले में सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का फिर इंकार

कर्नाटक हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिर सुनवाई की तारीख देने से किया इनकार

नई दिल्ली:

कर्नाटक हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिर सुनवाई की तारीख देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इसे बड़े स्तर पर न फैलाएं. हम जानते हैं कि क्या हो रहा है. अगर कुछ भी गलत है तो हम उसकी रक्षा करेंगे. सही वक्त का इंतजार कीजिए. बता दें कि हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की मांग की गई थी. 

यह मांग CJI एन वी रमना की बेंच के सामने मांग की गई थी. कर्नाटक हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती दी गई थी. वहीं इस मामले को लेकर CJI ने पूछा कि हाईकोर्ट का क्या आदेश है ? हम इस मामले में अभी नहीं पड़ रहे हैं. जब हाईकोर्ट का कोई आदेश नहीं है, तो इंतजार करना चाहिए. CJI ने कहा कि हम सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए बैठे हैं. समुचित समय आने पर हम सुनेंगे. इस मामले में मुस्लिम छात्राओं ने याचिका दाखिल की है. 

हिजाब मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को सुप्रीम कोर्ट में छात्र ने दी चुनौती

याचिका में कहा गया है कि कोई विशेष पोशाक पहनने की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि केवल उसी वर्दी के रंग के साथ अपने सिर को ढंकना चाहते हैं, जो स्कूल द्वारा निर्धारित की जा सकती है. हमारी धार्मिक प्रथा को भी राज्य की ओर से 05.02.2022 के जीओ द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है. याचिकाकर्ता पिछले कई वर्षों से सिर पर दुपट्टा पहने हुए अपने स्कूल/कॉलेज जा रही थी. 

गौरतलब है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है. कल, तीन सदस्यीय पीठ ने कहा था कि वह सोमवार को सुनवाई फिर से शुरू करेगी. हाई कोर्ट की टिप्पणियों को चुनौती देने वाली छात्रा ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील में कहा है कि प्रायोगिक परीक्षा 15 फरवरी से शुरू हो रही है और "शैक्षिक संस्थानों में छात्रों की पहुंच में कोई भी हस्तक्षेप उनकी शिक्षा में बाधा डाल सकता है. छात्रा ने तर्क दिया है कि हिजाब पहनना अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार, निजता के अधिकार और "स्वतंत्रता की स्वतंत्रता" के भीतर है, इसलिए उच्च न्यायालय का आदेश संविधान का उल्लंघन करता है. 

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