मौलाना कल्बे सादिक...
नई दिल्ली:
ट्रिपल तलाक़ पर चल रही बहस के बीच मुस्लिम धर्म गुरु और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक़ ने कहा है कि डेढ़ साल में ख़ुद मुस्लिम लॉ बोर्ड इस प्रथा को ख़त्म कर देगा. सोमवार को कल्बे सादिक ने कहा, "हम लोगों ने तय किया है कि हम खुद इस बुराई ('ट्रिपल तलाक') को समाज से मिटा देंगे. हमारा निवेदन सरकार से है कि वो हस्तक्षेप ना करे. हम एक-डेढ़ साल में इसे खत्म कर देंगे. कोलकाता में जो लॉ बोर्ड का सालाना कार्यक्रम हुआ उसमें एक प्रस्ताव पारित हुआ है." ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना कल्बे सादिक़ के इस बयान पर देश में एक बड़ी बहस छिड़ गयी है. मंगलवार को कई अहम राजनीतिक दलों के सांसदों ने तीन तलाक के खिलाफ कल्बे सादिक के प्रस्ताव का स्वागत किया है.
राज्यसभा के पूर्व उपसभापति और यूपीए सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रह चुके के रहमान खान ने इसका स्वागत किया और कहा कि संविधान की धारा 25 और धारा 26 में किसी भी धर्म को प्रैक्टिस करने का अधिकार नागरिकों को दिया गया है और इसमें सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये. पीडीपी के नेता मुज़्फ्फर बेग ने एनडीटीवी से कहा, "कुरान में ट्रिपल तलाक की इज़ाज़त नहीं है. जिस चीज़ का कुरान में सैन्कशन ना हो वो गैर-इस्लामिक है. लॉ बोर्ड को डेढ़ साल तक इंतज़ार नहीं करना चाहिये. एक हफ्ते में ही ये फैसला लेना चाहिये." जबकि एनसीपी के नेता माजिद मेमन ने कहा, "कल्बे सादिक ने सही कहा है... देश में 8 करोड़ 30 लाख मुस्लिम महिलाएं हैं. इस मसले पर उनकी राय भी लेना ज़रूरी होगा.
हालांकि समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद और आज़म खान की पत्नी तज़ीन फातिमा ने एनडीटीवी से कहा कि लॉ बोर्ड के पास तीन तलाक खत्म करने का अधिकार नहीं है. डॉ. तज़ीन फातिमा ने एनडीटीवी से कहा, "लॉ बोर्ड ट्रिपल तलाक खत्म नहीं कर सकता क्योंकि वो एक इस्लामिक कानून है. लेकिन इसका इस्तेमाल ज़रूर कम होना चाहिए. इसका दुरुपयोग रोकना बेहद ज़रूरी है." कुछ मुस्लिम नेताओं ने कल्बे के बयान का स्वागत करते हुए सलाह दी की लॉ बोर्ड सबकी राय लेकर आगे बढ़े. वैसे जानकार बताते हैं कि कल्बे सादिक को सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भीतर ही झेलनी होगी, जहां एक बड़ा तबका तीन तलाक के हक़ में है.
कल्बे सादिक के बयान पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव ज़फ़रयाब जिलानी ने कहा, "बोर्ड कानून में तब्दीली नहीं कर सकता है... बोर्ड सिर्फ कानूनी सलाह दे सकती है... कभी कभी औरत के कहने पर भी तलाक होता है जो वो छुटकारा पाना चाहती हैं. कुछ लोग इसका दुरुपयोग कर रहे हैं... जिसे रोकने के लिए बोर्ड पूरी कोशिश कर रहा है.' जबकि पूर्व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री और राज्यसभा के उप सभापति रह चुके के रहमान खान कहते हैं, "ट्रिपल तलाक के मसले पर मतभेद हैं. इन्हें दूर करना ज़रूरी होगा." ट्रिपल तलाक जैसे बेहद संवेदनशील और विवादित मसले पर कल्बे सादिक के बयान ने फिलहाल इस मसले पर राजनीतिक बहस छेड़ दी है. अब ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि लॉ बोर्ड कितनी जल्दी इस पर बोर्ड के अंदर आम राय बनाने में कामयाब हो पाता है.
इस बीच ट्रिपल तलाक़ पर योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी. सीएम योगी ने कैबिनेट की सभी महिला मंत्रियों से कहा है कि वो मुस्लिम महिलाओं और महिला संगठनों से मिलकर उनकी राय जानें जिसके आधार पर सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपनी राय रखेगी. विधानसभा चुनाव के दौरान ट्रिपल तलाक़ बीजेपी का बड़ा मुद्दा रहा था.
इससे पहले ट्रिपल तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लिखित जवाब दाखिल कर कहा था कि ट्रिपल तलाक के खिलाफ दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. साथ ही कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ को संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत प्रोटेक्शन है. उसे मूल अधिकार के कसौटी पर नहीं आंका जा सकता. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि कोर्ट पर्सनल लॉ को दोबारा रिव्यू नहीं कर सकती उसे नहीं बदला जा सकता. कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल नहीं दे सकती. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कोर्ट के सामने रखे गए थे. कहा गया था कि क्या ये ट्रिपल तलाक आदि के खिलाफ दाखिल याचिका विचार योग्य है. क्या पर्सनल लॉ को मूल अधिकार की कसौटी पर टेस्ट हो सकता है. क्या कोर्ट धर्म और धार्मिक लेख की व्याख्या कर सकता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद-25, 26 व 29 में प्रोटेक्टेड है और क्या इसका व्याख्या या रिव्यू हो सकता है.
राज्यसभा के पूर्व उपसभापति और यूपीए सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रह चुके के रहमान खान ने इसका स्वागत किया और कहा कि संविधान की धारा 25 और धारा 26 में किसी भी धर्म को प्रैक्टिस करने का अधिकार नागरिकों को दिया गया है और इसमें सरकार को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये. पीडीपी के नेता मुज़्फ्फर बेग ने एनडीटीवी से कहा, "कुरान में ट्रिपल तलाक की इज़ाज़त नहीं है. जिस चीज़ का कुरान में सैन्कशन ना हो वो गैर-इस्लामिक है. लॉ बोर्ड को डेढ़ साल तक इंतज़ार नहीं करना चाहिये. एक हफ्ते में ही ये फैसला लेना चाहिये." जबकि एनसीपी के नेता माजिद मेमन ने कहा, "कल्बे सादिक ने सही कहा है... देश में 8 करोड़ 30 लाख मुस्लिम महिलाएं हैं. इस मसले पर उनकी राय भी लेना ज़रूरी होगा.
हालांकि समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सांसद और आज़म खान की पत्नी तज़ीन फातिमा ने एनडीटीवी से कहा कि लॉ बोर्ड के पास तीन तलाक खत्म करने का अधिकार नहीं है. डॉ. तज़ीन फातिमा ने एनडीटीवी से कहा, "लॉ बोर्ड ट्रिपल तलाक खत्म नहीं कर सकता क्योंकि वो एक इस्लामिक कानून है. लेकिन इसका इस्तेमाल ज़रूर कम होना चाहिए. इसका दुरुपयोग रोकना बेहद ज़रूरी है." कुछ मुस्लिम नेताओं ने कल्बे के बयान का स्वागत करते हुए सलाह दी की लॉ बोर्ड सबकी राय लेकर आगे बढ़े. वैसे जानकार बताते हैं कि कल्बे सादिक को सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के भीतर ही झेलनी होगी, जहां एक बड़ा तबका तीन तलाक के हक़ में है.
कल्बे सादिक के बयान पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव ज़फ़रयाब जिलानी ने कहा, "बोर्ड कानून में तब्दीली नहीं कर सकता है... बोर्ड सिर्फ कानूनी सलाह दे सकती है... कभी कभी औरत के कहने पर भी तलाक होता है जो वो छुटकारा पाना चाहती हैं. कुछ लोग इसका दुरुपयोग कर रहे हैं... जिसे रोकने के लिए बोर्ड पूरी कोशिश कर रहा है.' जबकि पूर्व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री और राज्यसभा के उप सभापति रह चुके के रहमान खान कहते हैं, "ट्रिपल तलाक के मसले पर मतभेद हैं. इन्हें दूर करना ज़रूरी होगा." ट्रिपल तलाक जैसे बेहद संवेदनशील और विवादित मसले पर कल्बे सादिक के बयान ने फिलहाल इस मसले पर राजनीतिक बहस छेड़ दी है. अब ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि लॉ बोर्ड कितनी जल्दी इस पर बोर्ड के अंदर आम राय बनाने में कामयाब हो पाता है.
इस बीच ट्रिपल तलाक़ पर योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी. सीएम योगी ने कैबिनेट की सभी महिला मंत्रियों से कहा है कि वो मुस्लिम महिलाओं और महिला संगठनों से मिलकर उनकी राय जानें जिसके आधार पर सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपनी राय रखेगी. विधानसभा चुनाव के दौरान ट्रिपल तलाक़ बीजेपी का बड़ा मुद्दा रहा था.
इससे पहले ट्रिपल तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लिखित जवाब दाखिल कर कहा था कि ट्रिपल तलाक के खिलाफ दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. साथ ही कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ को संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत प्रोटेक्शन है. उसे मूल अधिकार के कसौटी पर नहीं आंका जा सकता. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि कोर्ट पर्सनल लॉ को दोबारा रिव्यू नहीं कर सकती उसे नहीं बदला जा सकता. कोर्ट पर्सनल लॉ में दखल नहीं दे सकती. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कोर्ट के सामने रखे गए थे. कहा गया था कि क्या ये ट्रिपल तलाक आदि के खिलाफ दाखिल याचिका विचार योग्य है. क्या पर्सनल लॉ को मूल अधिकार की कसौटी पर टेस्ट हो सकता है. क्या कोर्ट धर्म और धार्मिक लेख की व्याख्या कर सकता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद-25, 26 व 29 में प्रोटेक्टेड है और क्या इसका व्याख्या या रिव्यू हो सकता है.
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