पीएम मोदी के सामने एक कार्यक्रम में भावुक हुए जस्टिस ठाकुर (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मंगलवार को जस्टिस टीएस ठाकुर भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर हो गए. एक चीफ़ जस्टिस के रूप में जस्टिस ठाकुर ने शानदार काम किया और अपने स्पष्टवादी बयान के लिए लोगों के दिल जीतने के साथ-साथ मीडिया का ध्यान भी आकर्षित किया.
एक साल से थोड़ा ज्यादा देर तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस ठाकुर ने कई बार सरकार के ऊपर सवाल उठाते हुए अपने रुख को साफ़ किया. जस्टिस ठाकुर ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे निर्णय लिए जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है. बीसीसीआई में सुधार लाने के लिए जस्टिस लोढा की समिति की सिफारिश पर जस्टिस ठाकुर की खंडपीठ ने जो कदम उठाया उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है.
चलिए आज कुछ ऐसे बेबाक बयान पर नज़र डालते है जिसके लिए जस्टिस ठाकुर हमेशा याद किए जाएंगे -
जज की नियुक्ति को लेकर जब प्रधानमंत्री के सामने जस्टिस ठाकुर हुए थे भावुक
जस्टिस ठाकुर ने तब सबसे ज्यादा मीडिया का ध्यान आकर्षित किया जब वह प्रधानमंत्री के सामने जजों की कमी को लेकर भावुक हो गए थे और पीएम मोदी से जजों की संख्या बढ़ाने की अपील की थी. जस्टिस ठाकुर ने अपने भावनात्मक भाषण में कहा था कि भारत का एक जज एक साल में 2600 केसों की सुनवाई करता है, इसे पता चलता है कि एक जज के ऊपर कितना दबाव है. जस्टिस ठाकुर ने कहा था कि जजों की कमी की वजह से हाईकोर्ट में 38 लाख से भी ज्यादा केस पेंडिंग है और केस की सुनवाई न हो पाने की वजह से लोग जेल में हैं.
जस्टिस ठाकुर के जजों की संख्या बढ़ाने वाले भावनात्मक भाषण के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कोर्ट की छुट्टियों में कटौती की सलाह दी थी जिस पर जस्टिस ठाकुर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था गर्मियों की छुट्टियों के दौरान जज मनाली नहीं जाते हैं, वह संवैधानिक बेंच के फैसलों को लिखते हैं.
जजों की नियुक्ति को लेकर जस्टिस ठाकुर ने केंद्र को चेताया था
जस्टिस ठाकुर तब खबर में आए थे जब जजों की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर वह सरकार पर बरस पड़े थे. दरअसल बात यह थी कि कॉलेजियम ने जजों की नियुक्ति के लिए 75 लोगों की लिस्ट भेजी थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की. जस्टिस ठाकुर ने केंद्र को चेताते हुए कहा कि कोर्ट को न्यायिक आदेश के ज़रिये इस गतिरोध को दूर करने पर मजबूर न करें. जस्टिस ठाकुर ने यह भी कहा था कि अगर केंद्र सरकार को कुछ नामों पर आपत्ति है तो उसे वापस भेजे.
जब जस्टिस ठाकुर ने कहा था “मैं भी सुप्रीम कोर्ट टीम का कप्तान हूं”
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लोढा पैनल और सुप्रीम कोर्ट के बीच कई दिनों से तनातनी चल रही थी. लोढा पैनल की कई सिफ़ारिशों को बीसीसीआई ने मान लिया था, लेकिन कुछ सिफ़ारिशें को मानने के लिए तैयार नहीं था. 26 अक्टूबर को एक सुनवाई के दौरान एक ऐसा वक्त आया था जब चीफ़ जस्टिस को यह भी कहना पड़ा कि “मैं जज वाली क्रिकेट टीम के कप्तान हूं.”
मामला यह था जब चीफ़ जस्टिस ठाकुर ने बीसीसीआई के सदस्यों की योग्यता के बारे में प्रश्न किया था. क्या बीसीसीआई के अध्यक्ष राजनेता हैं? बीसीसीआई की तरफ से कोर्ट में मौजूद वकील कपिल सिबल ने कहा कि अध्यक्ष यानी अनुराग ठाकुर पूर्व क्रिकेटर हैं. इसके बाद एमाइकस क्यूरी गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था कि हम सभी क्रिकेट खेल चुके हैं. सिबल का जवाब था, अनुराग ठाकुर गंभीर क्रिकेटर क्रिकेटर थे. फिर चीफ़ जस्टिस ने चुटकी ली और कहा कि यहां सब क्रिकेटर हैं, यहां तक कि मैं भी सुप्रीम कोर्ट की टीम का कप्तान हूं.
बीसीसीआई में सुधार लाने के लिए बड़ा फैसला
जस्टिस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने बीसीसीआई में सुधार के लिए कई कदम उठाए. लोढा कमेटी के द्वारा रिपोर्ट के आधार पर कहा कि बीसीसीआई के चुनाव में एक राज्य सिर्फ एक वोट दे सकता है. मंत्री एवं सरकारी अधिकारी बीसीसीआई के किसी भी पद में नहीं रह सकते. बीसीसीआई और राज्य बोर्ड के सदस्यों की उम्र 70 साल से ऊपर न हो. कोई भी सदस्य बीसीसीआई के पदाधिकारी के रूप में तीन साल से ज्यादा और तीन बार से ज्यादा नहीं रह सकता. कोई भी पदाधिकारी लगातार दो बार किसी भी पद पर नहीं रहा सकता है. ये कुछ ऐसी सिफ़ारिशें थी जिनको मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के अंदर पारदर्शिता लाने के लिए भरपूर कोशिश की. जस्टिस ठाकुर की सदस्यता वाली पीठ ने एक बहुत बड़ा निर्णय लेते हुए बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को पद से भी हटा दिया.
एक साल से थोड़ा ज्यादा देर तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस ठाकुर ने कई बार सरकार के ऊपर सवाल उठाते हुए अपने रुख को साफ़ किया. जस्टिस ठाकुर ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे निर्णय लिए जिसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है. बीसीसीआई में सुधार लाने के लिए जस्टिस लोढा की समिति की सिफारिश पर जस्टिस ठाकुर की खंडपीठ ने जो कदम उठाया उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है.
चलिए आज कुछ ऐसे बेबाक बयान पर नज़र डालते है जिसके लिए जस्टिस ठाकुर हमेशा याद किए जाएंगे -
जज की नियुक्ति को लेकर जब प्रधानमंत्री के सामने जस्टिस ठाकुर हुए थे भावुक
जस्टिस ठाकुर ने तब सबसे ज्यादा मीडिया का ध्यान आकर्षित किया जब वह प्रधानमंत्री के सामने जजों की कमी को लेकर भावुक हो गए थे और पीएम मोदी से जजों की संख्या बढ़ाने की अपील की थी. जस्टिस ठाकुर ने अपने भावनात्मक भाषण में कहा था कि भारत का एक जज एक साल में 2600 केसों की सुनवाई करता है, इसे पता चलता है कि एक जज के ऊपर कितना दबाव है. जस्टिस ठाकुर ने कहा था कि जजों की कमी की वजह से हाईकोर्ट में 38 लाख से भी ज्यादा केस पेंडिंग है और केस की सुनवाई न हो पाने की वजह से लोग जेल में हैं.
जस्टिस ठाकुर के जजों की संख्या बढ़ाने वाले भावनात्मक भाषण के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कोर्ट की छुट्टियों में कटौती की सलाह दी थी जिस पर जस्टिस ठाकुर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था गर्मियों की छुट्टियों के दौरान जज मनाली नहीं जाते हैं, वह संवैधानिक बेंच के फैसलों को लिखते हैं.
जजों की नियुक्ति को लेकर जस्टिस ठाकुर ने केंद्र को चेताया था
जस्टिस ठाकुर तब खबर में आए थे जब जजों की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर वह सरकार पर बरस पड़े थे. दरअसल बात यह थी कि कॉलेजियम ने जजों की नियुक्ति के लिए 75 लोगों की लिस्ट भेजी थी, लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की. जस्टिस ठाकुर ने केंद्र को चेताते हुए कहा कि कोर्ट को न्यायिक आदेश के ज़रिये इस गतिरोध को दूर करने पर मजबूर न करें. जस्टिस ठाकुर ने यह भी कहा था कि अगर केंद्र सरकार को कुछ नामों पर आपत्ति है तो उसे वापस भेजे.
जब जस्टिस ठाकुर ने कहा था “मैं भी सुप्रीम कोर्ट टीम का कप्तान हूं”
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लोढा पैनल और सुप्रीम कोर्ट के बीच कई दिनों से तनातनी चल रही थी. लोढा पैनल की कई सिफ़ारिशों को बीसीसीआई ने मान लिया था, लेकिन कुछ सिफ़ारिशें को मानने के लिए तैयार नहीं था. 26 अक्टूबर को एक सुनवाई के दौरान एक ऐसा वक्त आया था जब चीफ़ जस्टिस को यह भी कहना पड़ा कि “मैं जज वाली क्रिकेट टीम के कप्तान हूं.”
मामला यह था जब चीफ़ जस्टिस ठाकुर ने बीसीसीआई के सदस्यों की योग्यता के बारे में प्रश्न किया था. क्या बीसीसीआई के अध्यक्ष राजनेता हैं? बीसीसीआई की तरफ से कोर्ट में मौजूद वकील कपिल सिबल ने कहा कि अध्यक्ष यानी अनुराग ठाकुर पूर्व क्रिकेटर हैं. इसके बाद एमाइकस क्यूरी गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था कि हम सभी क्रिकेट खेल चुके हैं. सिबल का जवाब था, अनुराग ठाकुर गंभीर क्रिकेटर क्रिकेटर थे. फिर चीफ़ जस्टिस ने चुटकी ली और कहा कि यहां सब क्रिकेटर हैं, यहां तक कि मैं भी सुप्रीम कोर्ट की टीम का कप्तान हूं.
बीसीसीआई में सुधार लाने के लिए बड़ा फैसला
जस्टिस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने बीसीसीआई में सुधार के लिए कई कदम उठाए. लोढा कमेटी के द्वारा रिपोर्ट के आधार पर कहा कि बीसीसीआई के चुनाव में एक राज्य सिर्फ एक वोट दे सकता है. मंत्री एवं सरकारी अधिकारी बीसीसीआई के किसी भी पद में नहीं रह सकते. बीसीसीआई और राज्य बोर्ड के सदस्यों की उम्र 70 साल से ऊपर न हो. कोई भी सदस्य बीसीसीआई के पदाधिकारी के रूप में तीन साल से ज्यादा और तीन बार से ज्यादा नहीं रह सकता. कोई भी पदाधिकारी लगातार दो बार किसी भी पद पर नहीं रहा सकता है. ये कुछ ऐसी सिफ़ारिशें थी जिनको मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के अंदर पारदर्शिता लाने के लिए भरपूर कोशिश की. जस्टिस ठाकुर की सदस्यता वाली पीठ ने एक बहुत बड़ा निर्णय लेते हुए बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को पद से भी हटा दिया.
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