जस्टिस टीएस ठाकुर (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर कई मौकों पर भावुकता के लिए जाने जाते हैं. उर्दू से उन्हें खास लगाव है. इसका खुलासा उन्होंने हाल ही में जश्न-ए-रेख्ता में किया. जस्टिस ठाकुर एक बार तो अदालती कार्यवाही के दौरान वकील से गालिब की शायरी सुनकर मामले की जल्द सुनवाई के लिए राजी हो गए थे. जश्न-ए-रेख्ता महोत्सव में उर्दू के प्रति अपना लगाव प्रकट करते हुए ठाकुर ने कहा , "मैं दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मामले की सुनवाई कर रहा था और वकील जल्दी तारीख की गुहार लगा रहे थे. मैंने कहा कि मेरा कैलेंडर इसकी अनुमति नहीं देता और मामले की सुनवाई छह महीने के लिए स्थगित कर दी."
उन्होंने कहा, "जब अदालत कक्ष से निकलने लगा, मैंने वकील को गालिब की 'आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक..कौन जीता है तिरी जुल्फ के सर होने तक' बुदबुदाते हुए सुना. मैंने उनसे पूछा क्या वह पूरा शेर सुना सकते हैं. उन्होंने सुनाया . मैंने मामले की सुनवाई अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने का आदेश दिया.’’ जबान के तौर पर उर्दू की अभिव्यक्ति की ताकत के बारे में बात करते हुए विधिवेत्ता ने कहा कि अगर एक तस्वीर हजार शब्दों की तरह है तो भाषा में एक शायरी दो हजार शब्दों जैसी है और वकील अदालती कक्ष में बेहतर संवाद के लिए ऐसे शेरो-शायरी का इस्तेमाल कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, "अदालतों में वे कहते हैं कि एक वकील अपने न्यायाधीश को जानता है. इसका ये मतलब नहीं कि आपने अपने न्यायाधीश को घूस दिया है. इसकी जगह आपको उनकी बौद्धिक क्षमता को जानना चाहिए." उन्होंने कहा, "गालिब या दूसरे उर्दू शायरों को जानना ऐसे अवसरों पर बड़ा मददगार होता है . लेकिन आप अतार्किक शायरी नहीं कर सकते. पंक्ति ऐसी हो जो आपके नजरिए को बताए."
उन्होंने कहा, "जब अदालत कक्ष से निकलने लगा, मैंने वकील को गालिब की 'आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक..कौन जीता है तिरी जुल्फ के सर होने तक' बुदबुदाते हुए सुना. मैंने उनसे पूछा क्या वह पूरा शेर सुना सकते हैं. उन्होंने सुनाया . मैंने मामले की सुनवाई अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने का आदेश दिया.’’ जबान के तौर पर उर्दू की अभिव्यक्ति की ताकत के बारे में बात करते हुए विधिवेत्ता ने कहा कि अगर एक तस्वीर हजार शब्दों की तरह है तो भाषा में एक शायरी दो हजार शब्दों जैसी है और वकील अदालती कक्ष में बेहतर संवाद के लिए ऐसे शेरो-शायरी का इस्तेमाल कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, "अदालतों में वे कहते हैं कि एक वकील अपने न्यायाधीश को जानता है. इसका ये मतलब नहीं कि आपने अपने न्यायाधीश को घूस दिया है. इसकी जगह आपको उनकी बौद्धिक क्षमता को जानना चाहिए." उन्होंने कहा, "गालिब या दूसरे उर्दू शायरों को जानना ऐसे अवसरों पर बड़ा मददगार होता है . लेकिन आप अतार्किक शायरी नहीं कर सकते. पंक्ति ऐसी हो जो आपके नजरिए को बताए."
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