नई दिल्ली:
राजधानी दिल्ली में 23-वर्षीय पैरा मेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार एवं उसकी हत्या के आरोपियों का मुकदमा लड़ने से वकीलों के इनकार के बीच दो महिला न्यायाधीशों ने मुकदमे की प्रभावी त्वरित सुनवाई के लिए सुझाव दिए हैं।
उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र ने सुझाव दिया है कि अलग-अलग स्तरों पर बयान दर्ज करने से बचने और सुनवाई की पूरी प्रक्रिया को कम करने के लिए साक्ष्य कानून में संशोधन किया जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति उषा मेहरा ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश को आरोपियों को सुनवाई शुरू होते ही वकीलों की सेवा मुहैया कराना सुनिश्चित करना चाहिए। न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा, मेरा मानना है कि महिलाओं के खिलाफ ऐसे जघन्य अपराध के मामलों को आरोपियों और पीड़ित के बयानों के आधार पर चलाया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी प्रकृति के मामले अंतत: पुलिस द्वारा एकत्रित सबूतों पर निर्भर होते हैं।
उन्होंने कहा, पुलिस को आरोपियों और पीड़ित पक्ष का बयान एक न्यायिक अधिकारी के समक्ष दर्ज करना चाहिए। अभियोजन और बचाव पक्ष के बयान विभिन्न स्तरों पर दर्ज क्यों किए जाने चाहिए? हमें भारतीय साक्ष्य कानून में परिवर्तन करना चाहिए।
न्यायाधीश मिश्र ने कहा, यदि आरोपियों और पीड़ित के बयान एक न्यायिक अधिकारी के समक्ष दर्ज किए जाते हैं, तो एक वकील के लिए उसे दूसरी बार अदालत में दर्ज करने की क्या आवश्यकता है, जैसा कि अब तक किया जाता रहा है। न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा, अदालतों के लिए केवल जो चीज बचेगी, वह जिरह और बहस होगी और त्वरित अदालतों में सुनवाई ऐसे ही तेज हो सकेगी। दूसरी बार बयान के अदालत में दर्ज होने से छल-कपट होने की संभावना होती है, गवाह मुकर जाते हैं और कई मामलों में तो मुख्य गवाह की हत्या हो जाती है।
सामूहिक बलात्कार मामले की जांच के लिए गठित एक-सदस्यीय जांच आयोग की प्रमुख न्यायमूर्ति मेहरा ने हालांकि पहले भी कहा है कि कई मामलों में वकील आरोपियों का मुकदमा लड़ने से इनकार कर देते हैं और उन्हें आरोपियों का मुकदमा लड़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। हालांकि निचली अदालत के न्यायाधीश के पास यह अधिकार है कि वह आरोपियों का बचाव करने के लिए विधिक सहायता से वकील मुहैया करा सकते हैं या न्याय मित्र नियुक्त कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति मेहरा ने कहा, यदि वकील आरोपियों का मुकदमा नहीं लड़ने का फैसला करते हैं, तो हम उन्हें इसके लिए बाध्य नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, यह वह समय है, जब मामले की सुनवाई करने वाले सत्र न्यायाधीश अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए आरोपियों के लिए न्याय मित्र नियुक्त करें या दिल्ली राज्य विधि सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) से आरोपियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए कहें।
दिल्ली बार काउंसिल के अध्यक्ष आरएस गोस्वामी ने दिल्ली सामूहिक बलात्कार पीड़ित की मौत पर दुख जताते हुए कहा कि हालांकि काउंसिल वकीलों से इस मामले में आरोपियों का मुकदमा नहीं लड़ने के लिए कहते हुए कोई नियम नहीं बना सकता, लेकिन वह उनसे ऐसे जघन्य मामलों में आरोपियों की तरफ से पेश नहीं होने का अनुरोध कर सकता है।
साकेत अदालत के बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अरुण राठी ने कहा, साकेत बार एसोसिएशन 23-वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार मामले में आरोपियों का मुकदमा नहीं लड़ने के अपने संकल्प पर कायम है। सामूहिक बलात्कार मामला साकेत अदालत के न्याय क्षेत्र में ही आता है।
उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र ने सुझाव दिया है कि अलग-अलग स्तरों पर बयान दर्ज करने से बचने और सुनवाई की पूरी प्रक्रिया को कम करने के लिए साक्ष्य कानून में संशोधन किया जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति उषा मेहरा ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश को आरोपियों को सुनवाई शुरू होते ही वकीलों की सेवा मुहैया कराना सुनिश्चित करना चाहिए। न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा, मेरा मानना है कि महिलाओं के खिलाफ ऐसे जघन्य अपराध के मामलों को आरोपियों और पीड़ित के बयानों के आधार पर चलाया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी प्रकृति के मामले अंतत: पुलिस द्वारा एकत्रित सबूतों पर निर्भर होते हैं।
उन्होंने कहा, पुलिस को आरोपियों और पीड़ित पक्ष का बयान एक न्यायिक अधिकारी के समक्ष दर्ज करना चाहिए। अभियोजन और बचाव पक्ष के बयान विभिन्न स्तरों पर दर्ज क्यों किए जाने चाहिए? हमें भारतीय साक्ष्य कानून में परिवर्तन करना चाहिए।
न्यायाधीश मिश्र ने कहा, यदि आरोपियों और पीड़ित के बयान एक न्यायिक अधिकारी के समक्ष दर्ज किए जाते हैं, तो एक वकील के लिए उसे दूसरी बार अदालत में दर्ज करने की क्या आवश्यकता है, जैसा कि अब तक किया जाता रहा है। न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा, अदालतों के लिए केवल जो चीज बचेगी, वह जिरह और बहस होगी और त्वरित अदालतों में सुनवाई ऐसे ही तेज हो सकेगी। दूसरी बार बयान के अदालत में दर्ज होने से छल-कपट होने की संभावना होती है, गवाह मुकर जाते हैं और कई मामलों में तो मुख्य गवाह की हत्या हो जाती है।
सामूहिक बलात्कार मामले की जांच के लिए गठित एक-सदस्यीय जांच आयोग की प्रमुख न्यायमूर्ति मेहरा ने हालांकि पहले भी कहा है कि कई मामलों में वकील आरोपियों का मुकदमा लड़ने से इनकार कर देते हैं और उन्हें आरोपियों का मुकदमा लड़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। हालांकि निचली अदालत के न्यायाधीश के पास यह अधिकार है कि वह आरोपियों का बचाव करने के लिए विधिक सहायता से वकील मुहैया करा सकते हैं या न्याय मित्र नियुक्त कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति मेहरा ने कहा, यदि वकील आरोपियों का मुकदमा नहीं लड़ने का फैसला करते हैं, तो हम उन्हें इसके लिए बाध्य नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, यह वह समय है, जब मामले की सुनवाई करने वाले सत्र न्यायाधीश अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए आरोपियों के लिए न्याय मित्र नियुक्त करें या दिल्ली राज्य विधि सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) से आरोपियों को कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए कहें।
दिल्ली बार काउंसिल के अध्यक्ष आरएस गोस्वामी ने दिल्ली सामूहिक बलात्कार पीड़ित की मौत पर दुख जताते हुए कहा कि हालांकि काउंसिल वकीलों से इस मामले में आरोपियों का मुकदमा नहीं लड़ने के लिए कहते हुए कोई नियम नहीं बना सकता, लेकिन वह उनसे ऐसे जघन्य मामलों में आरोपियों की तरफ से पेश नहीं होने का अनुरोध कर सकता है।
साकेत अदालत के बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अरुण राठी ने कहा, साकेत बार एसोसिएशन 23-वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार मामले में आरोपियों का मुकदमा नहीं लड़ने के अपने संकल्प पर कायम है। सामूहिक बलात्कार मामला साकेत अदालत के न्याय क्षेत्र में ही आता है।
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