झारखंड में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन बहुमत के करीब दिख रहा है. इस चुनाव में महागठबंधन ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था. यह इतिहास में पहली दफा है जब JMM के नेतृत्व वाले गठबंधन को इतनी बड़ी सफलता मिली है. JMM, RJD और कांग्रेस ने चुनाव पूर्व गठबंधन किया था. महागठबंधन ने सीटों के बंटवारे के समय ही हेमंत सोरेन के नाम को अपने नेता के रूप में घोषणा कर दी थी.
वर्ष 1975 में जन्में हेमंत सोरेन को झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता शिबू सोरेन का उत्तराधिकारी माना जाता है. हेमंत सोरेन वर्ष 2000 में राजनीति में पहली बार निरसा विधानसभा उपचुनाव के दौरान उतरे थे. हालांकि बाद में उन्होंने MCC के प्रत्याशी के पक्ष में अपना नामंकन वापस ले लिया था. वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन ने JMM की परंपरागत सीट दुमका से चुनाव लड़ा था, इस चुनाव में उन्हें अपने ही पार्टी के बागी उम्मीदवार स्टीफन मरांडी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
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वर्ष 2009 में बड़े भाई दुर्गा सोरेन के असमय मौत के बाद हेमंत सोरेन को शिबू सोरेन के बाद JMM के नेता के रूप में देखा जाने लगा. वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने दुमका सीट पर जीत दर्ज की और पहली बार विधानसभा पहुंचे. वर्ष 2010 में अर्जुन मुंडा की नेतृत्व वाली BJP-JMM गठबंधन सरकार में हेमंत सोरेन पहली बार राज्य के उपमुख्यमंत्री बने. जनवरी 2013 में JMM ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया और राज्य में राष्टपति शासन लगा दिए गए
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जुलाई 2013 में JMM ने कांग्रेस और RJD के साथ मिलकर झारखंड में सरकार बनाया और हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने. वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में JMM ने राज्य में अकेले चुनाव लड़ा और पार्टी को 19 सीटों पर जीत मिली थी. स्वयं हेमंत सोरेन दुमका विधानसभा क्षेत्र से BJP के प्रत्याशी लुईस मरांडी के हाथों चुनाव हार गए थे. हालांकि उन्होंने बरहैट विधानसभा सीट पर जीत दर्ज कर ली थी. झारखंड के चौथी विधानसभा में हेमंत सोरेन को विपक्ष का नेता चुना गया था.
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इस बार के चुनाव में JMM सत्ता में वापसी के प्रयास में थी. हालांकि चुनाव से पहले पार्टी के कुछ नेताओं के दल बदल से उनकी पार्टी को झटका लगा था. हेमंत सोरेन ने JMM की कमान संभालने के बाद पार्टी के जनाधार को गांव के साथ-साथ शहर में भी मजबूत करने के लिए प्रयास किया. हालांकि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
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