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This Article is From Jan 30, 2015

जयंती नटराजन की चिट्ठी से उठे सवाल, कांग्रेस ने बीजेपी को भी कटघरे में खड़ा किया

जयंती नटराजन की चिट्ठी से उठे सवाल, कांग्रेस ने बीजेपी को भी कटघरे में खड़ा किया
फाइल तस्वीर
नई दिल्ली:

जयंती नटराजन की चिट्ठी के लीक होने के कुछ ही देर बाद वित्तमंत्री और पर्यावरण मंत्री ने साफ कहा कि उनके (जयंती नटराजन के) पर्यावरण मंत्री रहते जो भी परियोजनाएं रोकी गईं उनको जल्द ही रिव्यू किया जाएगा। बीजेपी के दूसरे मंत्रियों और नेताओं ने भी इस पर तुरंत ऐसे ही बयान देने शुरू कर दिए हैं, लेकिन पर्यावरण के जानकार और अदालतों में अलग-अलग मामलों को लेकर लड़ रहे लोग इससे चौकन्ने हो गए हैं।

कांग्रेस पार्टी ने भी इस पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बीजेपी सरकार ने जयंती नटराजन की चिट्ठी का इस्तेमाल उन प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी दिलाने के लिए करना चाहती है जो यूपीए सरकार के वक्त पास नहीं हो पाए। कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में कहा, 'भारतीय जनता पार्टी नटराजन की चिट्ठी का इस्तेमाल अपने जेबी उद्योगपतियों के वह सारे प्रोजेक्ट पास कराने के लिए करना चाहती है, जिनको पर्यावरण की मंज़ूरी खारिज़ कर दी गई थी।' सुरजेवाला ने यह सवाल भी किया कि बीजेपी सरकार आने के बाद अब तक एक भी प्रोजेक्ट को क्यों नहीं रोका गया है। सारी परियोजनाओं को कैसे हरी झंडी मिल गई हैं।

उधर पर्यावरण मामलों के वकील राहुल चौधरी कहते हैं, 'आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि देश की पूर्व पर्यावरण मंत्री इस बात के लिए सफाई दे रही हैं कि विकास परियोजनाओं की जांच के लिए उन पर दबाव था, जबकि पर्यावरण मंत्री का काम ही तमाम कानूनों के तहत परियोजनाओं की जांच करना है।'

इस बहस से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या अब पर्यावरण मंत्रालय प्रोजेक्ट पास करने में तेज़ी दिखाएगा, चाहे कंपनियां कानूनों के पालन में ढिलाई बरतती रहें। यह बहस इसलिए तेज़ हो रही है, क्योंकि जिन परियोजनाओं को लेकर विवाद हुआ है या रोके जाने पर सवाल उठे हैं उन्हें अदालतों ने भी कटघरे में खड़ा किया है। यूपीए सरकार के वक्त जिन बड़े मामलों पर विवाद हुआ उनमें वेदांता का मामला प्रमुख है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक लगाई है।

इस बीच जयंती नटराजन से पहले यूपीए सरकार में पर्यावरण मंत्री रह चुके जयराम रमेश राहुल गांधी के बचाव में खड़े हुए और कहा कि उन पर (जयराम पर) पर्यावरण मंत्री रहते राहुल ने सीधे या परोक्ष रूप से कोई दबाव नहीं डाला।

हालांकि यह भी एक सच है कि राहुल गांधी ने चुनाव से कुछ वक्त पहले फिक्की के कार्यक्रम में जो कुछ कहा उससे पर्यावरण को लेकर कांग्रेस के भीतर दुविधा होने की बात को हवा मिली। यह पैगाम गया कि कांग्रेस जल, जंगल, ज़मीन और आदिवासियों के साथ गरीबों को बचाना चाहती है या उद्योगों के पक्ष में खड़ा होना चाहती है।

बीजेपी ने इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा, 'यूपीए सरकार के वक्त पर्यावरण के मामले में मनमानी के साथ अनुमति दी जाती थी यह अफवाह सच साबित हुई है। देश की अर्थव्यवस्था के साथ खिलवाड़ हो रहा था। लोगों को तकलीफ देने में इन्हें (यूपीए सरकार को) मज़ा आता था।'  

लेकिन आंकड़े और तथ्य वित्तमंत्री के आरोप से भी मेल नहीं खाते। अगर जयराम रमेश और जयंती नटराजन के कार्यकाल को जोड़ दें तो ऐसे कई मामले हैं, जहां मंत्रालय ने परियोजना को हरी झंडी दी लेकिन अदालत ने उसे रोक दिया। इसमें कोरियाई स्टील कंपनी पॉस्को का ओडिशा में लगने वाला स्टील प्लांट, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ पावर प्लांट और मध्य प्रदेश के महान जंगलों में खनन के साथ कई मामले शामिल हैं।

गुजरात के भावनगर में निरमा के स्टील प्लांट के मामले में स्थानीय गांव वालों ने विरोध किया, जिसके बाद अदालत ने इस परियोजना पर रोक लगा दी। हालांकि बाद में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उसे ज़रूर हरी झंडी दी। पॉस्को का मामला उलझा रहा और अडानी ग्रुप की ओर से मुंदड़ा बंदरगाह इलाके में नियमों की अनदेखी के लिए लगाए गए जुर्माने का मामला अभी अदालत में है।

ये सवाल अभी इसलिए अहम हैं, क्योंकि मोदी सरकार के वक्त में पर्यावरण मंत्रालय ने न केवल अब तक सारे प्रोजेक्ट पास किए हैं, बल्कि वह पर्यावरण के सारे नियमों में बदलाव के लिए संसद में बिल लाने वाली है, लेकिन जिस टीएसआर सुब्रह्मण्यम कमेटी की सिफारिशों पर नया कानून बन रहा है उस पर पहले ही कई सवाल खड़े हैं।

पर्यावरण मामलों के वकील ऋत्विक दत्ता ने टीएसआर कमेटी की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए सरकार को पत्र भी लिखा। कांग्रेस नेता और पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि टीएसआर कमेटी की सिफारिशें पर्यावरण को बरबाद करने वाली हैं।'

साफ है कि जहां जयंती नटराजन का मामला राजनीतिक रूप से भानमती का पिटारा खोलने वाला लग रहा है। वहीं दूसरी ओर इसके पीछे कई परतें हैं जो आने वाले दिनों में विवाद खड़े करेंगी। पर्यावरण की फिक्र करने वाले और अब ज्यादा चौकन्ना होकर सरकार की ओर से परियोजनाओं को मिलने वाली हरी झंडी पर नज़र रखेंगे।

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