जयललिता (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराई गईं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता व तीन अन्य की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में दायर याचिका पर कानूनी प्रावधान पर सवाल खड़े करने वाली याचिका को सलमान खान केस की सुनवाई के साथ जोड़ दिया गया है। वहीं हिट एंड रन केस में बाम्बे हाईकोर्ट के सलमान को बरी करने के फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर 5 जुलाई को सुनवाई होगी। ऐसी ही याचिका सलमान केस में भी दायर की गई है।
हाईकोर्ट ने सुनवाई से इनकार नहीं किया
वरिष्ठ वकील परमानंद कटारा ने याचिका में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 374 (2) के तहत अगर किसी व्यक्ति को सेशन कोर्ट या कोई अन्य कोर्ट दोषी करार देता है, जिसमें सात साल तक की या उससे अधिक सजा का प्रावधान हो, तो व्यक्ति अपनी सजा को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दे सकता है। जयललिता के मामले में केवल 4 साल की सजा दी गई थी। ऐसे में सीआरपीसी की धारा 374 (2) कहती है कि दोषियों को इस मामले में केवल हाईकोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका ही दायर करने का अधिकार था। उन्हें याचिका के माध्यम से सीधे निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने का अधिकार नहीं था। हाईकोर्ट को चाहिए था कि वह इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर देता। मगर ऐसा नहीं किया गया।
हालांकि इसी तरह की याचिका कटारा ने सलमान केस में भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। याचिका में यही कहा गया है कि बाम्बे हाईकोर्ट ने भी अपील की सुनवाई कर गलती की है। सलमान के खिलाफ याचिका जस्टिस खेहर की बेंच में चल रही है। मंगलवार को बेंच ने कटारा के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई भी सलमान के मामले के साथ होगी।
जयललिता के बरी किया था निचली अदालत ने
ज्ञात हो कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने जयललिता व अन्य आरोपियों की ओर से निचली अदालत द्वारा सुनाई गई 4 साल की सजा के फैसले को रद्द कर उन्हें आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में बरी कर दिया था। इस फैसले को राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। इस मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है।
अधिवक्ता परमानंद कटारा ने अपनी याचिका के माध्यम से कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द करने और दोषियों की याचिका को दोबारा हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका के तौर पर सुने जाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की है।
हाईकोर्ट ने सुनवाई से इनकार नहीं किया
वरिष्ठ वकील परमानंद कटारा ने याचिका में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 374 (2) के तहत अगर किसी व्यक्ति को सेशन कोर्ट या कोई अन्य कोर्ट दोषी करार देता है, जिसमें सात साल तक की या उससे अधिक सजा का प्रावधान हो, तो व्यक्ति अपनी सजा को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दे सकता है। जयललिता के मामले में केवल 4 साल की सजा दी गई थी। ऐसे में सीआरपीसी की धारा 374 (2) कहती है कि दोषियों को इस मामले में केवल हाईकोर्ट के समक्ष पुनर्विचार याचिका ही दायर करने का अधिकार था। उन्हें याचिका के माध्यम से सीधे निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने का अधिकार नहीं था। हाईकोर्ट को चाहिए था कि वह इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर देता। मगर ऐसा नहीं किया गया।
हालांकि इसी तरह की याचिका कटारा ने सलमान केस में भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। याचिका में यही कहा गया है कि बाम्बे हाईकोर्ट ने भी अपील की सुनवाई कर गलती की है। सलमान के खिलाफ याचिका जस्टिस खेहर की बेंच में चल रही है। मंगलवार को बेंच ने कटारा के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई भी सलमान के मामले के साथ होगी।
जयललिता के बरी किया था निचली अदालत ने
ज्ञात हो कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने जयललिता व अन्य आरोपियों की ओर से निचली अदालत द्वारा सुनाई गई 4 साल की सजा के फैसले को रद्द कर उन्हें आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में बरी कर दिया था। इस फैसले को राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। इस मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है।
अधिवक्ता परमानंद कटारा ने अपनी याचिका के माध्यम से कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द करने और दोषियों की याचिका को दोबारा हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका के तौर पर सुने जाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की है।
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