यह ख़बर 24 मई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

जम्मू-कश्मीर पर संवैधानिक समिति बनाने की सिफारिश

खास बातें

  • जम्मू-कश्मीर पर केन्द्र द्वारा नियुक्त वार्ताकारों ने 1952 के बाद राज्य में लागू सभी केन्द्रीय कानूनों और भारतीय संविधान के अनुच्छेदों की समीक्षा के लिए संवैधानिक समिति बनाने का समर्थन किया है।
नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मीर पर केन्द्र द्वारा नियुक्त वार्ताकारों ने 1952 के बाद राज्य में लागू सभी केन्द्रीय कानूनों और भारतीय संविधान के अनुच्छेदों की समीक्षा के लिए संवैधानिक समिति बनाने का समर्थन किया है।

पत्रकार दिलीप पडगांवकर, शिक्षाविद राधा कुमार और पूर्व सूचना आयुक्त एमएम अंसारी को केन्द्र ने जम्मू-कश्मीर समस्या के राजनीतिक समाधान पर सिफारिशें देने के लिए वार्ताकार नियुक्त किया था। इनकी रपट को आज सार्वजनिक किया गया।

राजनीतिक समाधान के पहलू पर रपट केन्द्र और राज्य के बीच संबंधों का उल्लेख करते हुए विश्वास बहाली के उपाय सुझाती है जिसमें अशांत क्षेत्र कानून और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) की समीक्षा शामिल है।

रपट पिछले साल 12 अक्तूबर को गृहमंत्री पी चिदंबरम को सौंपी गई थी। इसमें केन्द्र और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के बीच जल्द से जल्द वार्ता बहाल करने का भी समर्थन किया गया है। रपट में कहा गया है कि इस वार्ता से देखने योग्य नतीजे आएंगे।

रपट में केन्द्र राज्य संबंध की चर्चा करते हुए 1952 के दिल्ली समझौते के बाद राज्य में लागू सभी केन्द्रीय कानूनों और संविधान के अनुच्छेदों की समीक्षा की बात कही गई है।

वार्ताकारों ने एक संवैधानिक समिति के गठन की सिफारिश की है। उन्होंने सुझाव दिया है कि संसद राज्य के लिए तब तक कोई कानून नहीं बनाएगी, जब तक देश की आंतरिक या बाह्य सुरक्षा का मसला न जुड़ा हो। मुख्य धारा से नहीं जुड़े लोगों सहित सभी संबद्ध पक्षों से बातचीत के जरिए राजनीतिक समाधान पर व्यापक सहमति की बात यह रपट करती है। इसमें कहा गया है कि राज्य में इस बात को लेकर व्यापक सहमति है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राज्य को मिले विशेष दर्जे को जारी रखना चाहिए।

वार्ताकारों ने सुझाव दिया है कि अनुच्छेद 356 में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। यदि राज्य सरकार बर्खास्त होती है तो चुनाव तीन महीने के भीतर होने चाहिए।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

रपट में नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रहने वाले लोगों के बीच सद्भावपूर्व संबंध विकसित करने के लिए कई सुझाव दिये गए हैं, जिनमें निर्बाध आवाजाही और सलाहकार तंत्र बनाना शामिल है। सलाहकार तंत्र में दोनों पक्षों की ओर से निर्वाचित प्रतिनिधियों को शामिल करने की सिफारिश की गई है ताकि दोनों पक्ष जल, अर्थव्यवस्था, पर्यटन और कारोबार जैसे साझा हित वाले मुद्दों पर बातचीत कर सकें।