पुष्करालु मेले में भगदड़ का फाइल फोटो
आंध्र प्रदेश:
आंध्र प्रदेश के पुष्करालु मेले में हुई भगदड़ हादसे पर सरकारी रिपोर्ट आ गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मेले में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ थी, जिसे नियंत्रित करने में पुलिस नाकाम रही। यह भगदड़ की वजह रही और नतीजतन 29 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
हालांकि इस रिपोर्ट में अति विशिष्ट लोगों (VIPs), जिनमें मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी शामिल थे, के मेले में तय समय से काफी देर तक रूकने, को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है।
जिला कलेक्टर एच. अरुण कुमार द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया, ''श्रद्धालुओं की भारी भीड़ ने चीफ मिनिस्टर के जाने के बाद वहां बैरिकेड्स लांघ दिए। वहां तैनात पुलिस और सुरक्षा कर्मी इतनी अधिक भीड़ को पुष्कर घाट के सामने रोक नहीं सकते थे। हर तरफ से अनियंत्रित भीड़ आ रही थी। यही भगदड़ की वजह रही।''
दरअसल, आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर हिन्दू उत्सवों में सबसे बड़ा उत्सव समझे जाने वाले कार्यक्रम के शुरूआती दो घंटों के भीतर ही 29 लोगों की भगदड़ में मौत हो गई थी। इनमें से 26 महिलाएं थीं।
हादसे के एक दिन बाद तमाम लोग दुर्घटना के लिए वीआईपी लोगों पर उंगलियां उठा रहे हैं। लोगों का आरोप है कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, जिन्होंने महा पुशकरालू उत्सव की शुरुआत गोदावरी में स्नान के साथ की, ने पूजा के लिए करीब 90 मिनट वहीं पर बिताए। सुरक्षा मानकों के हिसाब से ऐसे मौकों पर वीआईपी लोगों को कोशिश यही करनी होती है कि जल्दी से जल्दी वह अपना काम कर वहां से चले जाएं। इतना ही नहीं, उन्हें इस बात का ख्याल रखना होता है कि वह अपने तय कार्यक्रम के अनुसार ही गतिविधि रखें ताकि सुरक्षा तंत्र अपना ध्यान लोगों के सुचारू संचालन पर रख सके।
भीड़ नियंत्रण करने वालों का कहना था कि प्रत्येक 10 मिनट में वहां पर करीब 10 हजार लोगों की भीड़ आ रही थी और जब तक मुख्यमंत्री और उनके मंत्री मौके से जाते भीड़ अथाह हो चुकी थी और अनियंत्रित हो गई। वहीं, पुलिस की नाकामी यह रही कि वह लोगों को दर्जनों अन्य घाट की ओर मोड़ने में सफल नहीं हो पाई। यह घाट नजदीक के 15 किलोमीटर के इलाके में फैले हुए थे। इसके अलावा वहां पर बैरिकेड्स की व्यवस्था भी उचित नहीं थी कि लोगों के जत्थों को नियंत्रित किया जा सकता।
उत्सव के आरंभ से पहले सरकार का दावा किया गया था कि करीब 1600 करोड़ रुपये का खर्चा कर लोगों को उचित व्यवस्था दी जाएगी। बताया तो यह भी जा रहा है कि अधिकतर तैनात पुलिसकर्मियों को भीड़ नियंत्रण की न तो ट्रेनिंग दी गई थी न ही उनके पास इलाके का मैप था, न ही श्रद्धालुओं निपटने का अनुभव। आकस्मिक चिकित्सा व्यवस्था भी नहीं थी। जानकारी के अनुसार उत्सव के लिए 18000 पुलिस वालों की तैनाती की गई थी।
हालांकि इस रिपोर्ट में अति विशिष्ट लोगों (VIPs), जिनमें मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी शामिल थे, के मेले में तय समय से काफी देर तक रूकने, को लेकर कोई जिक्र नहीं किया गया है।
जिला कलेक्टर एच. अरुण कुमार द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया, ''श्रद्धालुओं की भारी भीड़ ने चीफ मिनिस्टर के जाने के बाद वहां बैरिकेड्स लांघ दिए। वहां तैनात पुलिस और सुरक्षा कर्मी इतनी अधिक भीड़ को पुष्कर घाट के सामने रोक नहीं सकते थे। हर तरफ से अनियंत्रित भीड़ आ रही थी। यही भगदड़ की वजह रही।''
दरअसल, आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर हिन्दू उत्सवों में सबसे बड़ा उत्सव समझे जाने वाले कार्यक्रम के शुरूआती दो घंटों के भीतर ही 29 लोगों की भगदड़ में मौत हो गई थी। इनमें से 26 महिलाएं थीं।
हादसे के एक दिन बाद तमाम लोग दुर्घटना के लिए वीआईपी लोगों पर उंगलियां उठा रहे हैं। लोगों का आरोप है कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, जिन्होंने महा पुशकरालू उत्सव की शुरुआत गोदावरी में स्नान के साथ की, ने पूजा के लिए करीब 90 मिनट वहीं पर बिताए। सुरक्षा मानकों के हिसाब से ऐसे मौकों पर वीआईपी लोगों को कोशिश यही करनी होती है कि जल्दी से जल्दी वह अपना काम कर वहां से चले जाएं। इतना ही नहीं, उन्हें इस बात का ख्याल रखना होता है कि वह अपने तय कार्यक्रम के अनुसार ही गतिविधि रखें ताकि सुरक्षा तंत्र अपना ध्यान लोगों के सुचारू संचालन पर रख सके।
भीड़ नियंत्रण करने वालों का कहना था कि प्रत्येक 10 मिनट में वहां पर करीब 10 हजार लोगों की भीड़ आ रही थी और जब तक मुख्यमंत्री और उनके मंत्री मौके से जाते भीड़ अथाह हो चुकी थी और अनियंत्रित हो गई। वहीं, पुलिस की नाकामी यह रही कि वह लोगों को दर्जनों अन्य घाट की ओर मोड़ने में सफल नहीं हो पाई। यह घाट नजदीक के 15 किलोमीटर के इलाके में फैले हुए थे। इसके अलावा वहां पर बैरिकेड्स की व्यवस्था भी उचित नहीं थी कि लोगों के जत्थों को नियंत्रित किया जा सकता।
उत्सव के आरंभ से पहले सरकार का दावा किया गया था कि करीब 1600 करोड़ रुपये का खर्चा कर लोगों को उचित व्यवस्था दी जाएगी। बताया तो यह भी जा रहा है कि अधिकतर तैनात पुलिसकर्मियों को भीड़ नियंत्रण की न तो ट्रेनिंग दी गई थी न ही उनके पास इलाके का मैप था, न ही श्रद्धालुओं निपटने का अनुभव। आकस्मिक चिकित्सा व्यवस्था भी नहीं थी। जानकारी के अनुसार उत्सव के लिए 18000 पुलिस वालों की तैनाती की गई थी।
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