![ISRO जासूसी केस: गुजरात के पूर्व DGP की अग्रिम जमानत को CBI ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती ISRO जासूसी केस: गुजरात के पूर्व DGP की अग्रिम जमानत को CBI ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती](https://c.ndtvimg.com/2j720mu_isro-generic_625x300_29_August_18.jpg?downsize=773:435)
इसरो जासूसी मामले (ISRO Spy Case) में सीबीआई (CBI) ने गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार की अग्रिम जमानत को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी है. केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने याचिका दायर की. तीन अन्य आरोपियों की अग्रिम जमानत को भी चुनौती दी गई है. अगस्त में केरल हाईकोर्ट ने गुजरात के पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार को बड़ी राहत देते हुए अग्रिम जमानत दे दी थी. आरबी श्रीकुमार 1994 के इसरो जासूसी मामले में 7वें आरोपी हैं. इनके अलावा पूर्व आईबी अधिकारी पीएस जयप्रकाश और 2 पूर्व केरल पुलिस अधिकारियों, एस विजयन और थंपी एस दुर्गा दत्त को भी अग्रिम जमानत दी गई थी.
इससे पहले जुलाई में भी आरबी श्रीकुमार को इसरो जासूसी मामले में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के बाद से अंतरिम राहत दी गई थी. विभिन्न अपराधों को लेकर सीबीआई की तरफ से दर्ज मामले में अग्रिम जमानत का अनुरोध करने वाली श्रीकुमार की याचिका पर न्यायमूर्ति के. हरिपाल ने अंतरिम राहत प्रदान की थी. इन अपराधों में वैज्ञानिक एन नारायणन की गिरफ्तारी और हिरासत के संबंध में 1994 के मामले में आपराधिक साजिश, अपहरण और सबूत गढ़ना शामिल है.
श्रीकुमार तिरुवनंतपुरम में गुप्तचर ब्यूरो (आईबी) के उप निदेशक के रूप में तैनात थे और फिर आईबी में आईजीपी के तौर पर पदोन्नत किये गए और गुजरात कैडर में वापस भेजे जाने से पहले जुलाई 2000 तक इस पद पर बने रहे. सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में श्रीकुमार समेत 18 पूर्व पुलिस अधिकारियों को नामजद किया है. अंतरिक्ष एजेंसी के तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र में काम कर रहे नारायणन को सीबीआई जांच के बाद जासूसी के आरोप मुक्त कर दिया गया था. बाद में उन्होंने केरल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा था कि सीबीआई कानून के हिसाब से जांच के लिए स्वतंत्र है. साथ ही कहा कि सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने के बाद कानून के हिसाब से आगे बढ़ना चहिए. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई ने जस्टिस डीके जन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी को एफआईआर दर्ज करने के बाद सबूत एकत्र करना चाहिए और जस्टिस डीके जैन की रिपोर्ट पर निर्भर नहीं रहना चहिए.
कोर्ट ने कहा था कि आरोपी के खिलाफ जांच के लिए ये रिपोर्ट आधार नहीं हो सकती और सीबीआई को अब कानून के अनुसार स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने मामले में सीबीआई की रिपोर्ट देखी है और रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रासंगिक पहलू की जांच के बाद एफआईआर दर्ज की गई है.
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