नई दिल्ली:
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को एक ही रॉकेट से 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष विज्ञान में वो मुकाम हासिल कर लिया है जो अमेरिका, रूस, चीन जैसे विकसित देशों के वैज्ञानिकों के लिए सपना है. इसरो की इस उपलब्धि पर पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है. सोशल साइट्स पर लोग दिल खोलकर अपने वैज्ञानिकों की तारीफ कर रहे हैं. ऐसे में अगर इसरो के अब तक के रोमांचकारी सफर को याद करेंगे तो आपकी खुशी दोगुनी हो जाए.
बैलगाड़ी-साइकिल के सहारे शुरू हुआ आसमान मुट्ठी में करने का सफर
डॉ. विक्रम साराभाई ने 15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की थी. आपको जानकर हैरत होगी की हमारे वैज्ञानिक आसमान मुट्ठी करने के सफर पर साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे. वैज्ञानिकों ने पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल पर ले गए थे. इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और भारी था, जिसे बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था. (ISRO से जुड़ीं 10 खास बातें, सवाल और उनके जवाब)
इससे भी ज्यादा रोमांचकारी बात यह है कि भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था. हमारे वैज्ञानिकों के पास अपना दफ्तर नहीं था, वे कैथोलिक चर्च सेंट मैरी मुख्य कार्यालय में बैठकर सारी प्लानिंग करते थे. अब पूरे भारत में इसरो के 13 सेंटर हैं.
कलाम साहब ने देशवासियों को दी मुस्कुराने की वजह
इन्हीं मुश्किलों में हमारे वैज्ञानिकों ने पहला स्वदेशी उपग्रह एसएलवी-3 लांच किया था. यह 18 जुलाई 1980 को लांच किया गया था. दिलचस्प बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पूर्व राष्ट्रपति श्री डॉक्टर अब्दुल कलाम थे. इस लांचर के माध्यम से रोहिणी उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया गया.
अब तक के सफर में इसरो ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन इनमें से चार ऐसी हैं जो हमें दुनिया के नक्शे पर खास बनाते हैं. आइए उन चार उपलब्धियों पर एक नजर डालें-:
1. हमने रूस की बराबरी की: हमारे वैज्ञानिकों ने 1990 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) तैयार किया. पहली बार पीएसएलवी के जरिए 1993 में पहला उपग्रह ऑर्बिट में भेजा गया. इससे पहले दुनिया में केवल रूस ऐसा कर पाया था.
2. दूर नहीं रह गए 'चंदा मामा': दादी-नानी अक्सर बच्चों को लोरियों में सुनाती हैं, चंदा मामा दूर के... इसरो के वैज्ञानिकों ने 2008 में इसी दूरी को खत्म करते हुए चंद्रयान को अंतरिक्ष में भेजा. हमारे वैज्ञानिकों ने दुनिया में सबसे सस्ता चंद्रमा मिशन पूरा किया. हमसे पहले केवल छह देश ऐसा कर पाए थे, लेकिन उन्होंने इसपर काफी पैसे खर्च किए थे. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि अमेरिका का नासा जितने पैसे एक साल में खर्च करता है इसरो उतने में 40 साल तक काम करता है.
3. पहले प्रयास में हम मंगल सफर को पूरा किया: इसरो के वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार पहले प्रयास में मंगल ग्रह के सफर को पूरा कर लिया. अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली.
4. एक रॉकेट से प्रक्षेपित किए 104 सैटेलाइट: इसरो ने अपने सबसे सफल रॉकेट पीएसएलवी की मदद से 104 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किया. इसमें 101 विदेश सैटेलाइट हैं. इनमें भारत और अमेरिका के अलावा इजरायल, हॉलैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के छोटे आकार के सैटेलाइट शामिल हैं. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया.
इस अभियान के बारे में इसरो के चेयरमैन एएस किरण कुमार ने बताया कि एक उपग्रह का वजन 730 किलो का है, जबकि बाक़ी के दो का वजन 19-19 किलो है. इनके अलावा हमारे पास 600 किलो और वजन भेजने की क्षमता थी, इसलिए हमने 101 दूसरे सैटेलाइटों को भी लांच करने का निर्णय लिया.
हमारे वैज्ञानिकों के लिए उपग्रह छोड़ना पक्षी उड़ाने जितना आसान
इसरो प्रमुख किरण कुमार ने एनडीटीवी से कहा था कि उपग्रहों को अंतरिक्ष में छोड़ना एक तरह से पक्षियों को आसमान में उड़ाने जैसा है. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे इसरो के वैज्ञानिक कितने काबिल हैं जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में सिमित संसाधनों से विकसित देशों को पीछे छोड़ रहे हैं. इसरो में कई ऐसे वैज्ञानिक हुए, जिन्होंने अपना पूरा जीवन संगठन को समर्पित कर दिया. उन्होंने कभी विवाह नहीं किया.
बैलगाड़ी-साइकिल के सहारे शुरू हुआ आसमान मुट्ठी में करने का सफर
डॉ. विक्रम साराभाई ने 15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की थी. आपको जानकर हैरत होगी की हमारे वैज्ञानिक आसमान मुट्ठी करने के सफर पर साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे. वैज्ञानिकों ने पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल पर ले गए थे. इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और भारी था, जिसे बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था. (ISRO से जुड़ीं 10 खास बातें, सवाल और उनके जवाब)
इससे भी ज्यादा रोमांचकारी बात यह है कि भारत ने पहले रॉकेट के लिए नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था. हमारे वैज्ञानिकों के पास अपना दफ्तर नहीं था, वे कैथोलिक चर्च सेंट मैरी मुख्य कार्यालय में बैठकर सारी प्लानिंग करते थे. अब पूरे भारत में इसरो के 13 सेंटर हैं.
कलाम साहब ने देशवासियों को दी मुस्कुराने की वजह
इन्हीं मुश्किलों में हमारे वैज्ञानिकों ने पहला स्वदेशी उपग्रह एसएलवी-3 लांच किया था. यह 18 जुलाई 1980 को लांच किया गया था. दिलचस्प बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पूर्व राष्ट्रपति श्री डॉक्टर अब्दुल कलाम थे. इस लांचर के माध्यम से रोहिणी उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया गया.
अब तक के सफर में इसरो ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन इनमें से चार ऐसी हैं जो हमें दुनिया के नक्शे पर खास बनाते हैं. आइए उन चार उपलब्धियों पर एक नजर डालें-:
1. हमने रूस की बराबरी की: हमारे वैज्ञानिकों ने 1990 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) तैयार किया. पहली बार पीएसएलवी के जरिए 1993 में पहला उपग्रह ऑर्बिट में भेजा गया. इससे पहले दुनिया में केवल रूस ऐसा कर पाया था.
2. दूर नहीं रह गए 'चंदा मामा': दादी-नानी अक्सर बच्चों को लोरियों में सुनाती हैं, चंदा मामा दूर के... इसरो के वैज्ञानिकों ने 2008 में इसी दूरी को खत्म करते हुए चंद्रयान को अंतरिक्ष में भेजा. हमारे वैज्ञानिकों ने दुनिया में सबसे सस्ता चंद्रमा मिशन पूरा किया. हमसे पहले केवल छह देश ऐसा कर पाए थे, लेकिन उन्होंने इसपर काफी पैसे खर्च किए थे. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि अमेरिका का नासा जितने पैसे एक साल में खर्च करता है इसरो उतने में 40 साल तक काम करता है.
3. पहले प्रयास में हम मंगल सफर को पूरा किया: इसरो के वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार पहले प्रयास में मंगल ग्रह के सफर को पूरा कर लिया. अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली.
4. एक रॉकेट से प्रक्षेपित किए 104 सैटेलाइट: इसरो ने अपने सबसे सफल रॉकेट पीएसएलवी की मदद से 104 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किया. इसमें 101 विदेश सैटेलाइट हैं. इनमें भारत और अमेरिका के अलावा इजरायल, हॉलैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के छोटे आकार के सैटेलाइट शामिल हैं. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया.
इस अभियान के बारे में इसरो के चेयरमैन एएस किरण कुमार ने बताया कि एक उपग्रह का वजन 730 किलो का है, जबकि बाक़ी के दो का वजन 19-19 किलो है. इनके अलावा हमारे पास 600 किलो और वजन भेजने की क्षमता थी, इसलिए हमने 101 दूसरे सैटेलाइटों को भी लांच करने का निर्णय लिया.
हमारे वैज्ञानिकों के लिए उपग्रह छोड़ना पक्षी उड़ाने जितना आसान
इसरो प्रमुख किरण कुमार ने एनडीटीवी से कहा था कि उपग्रहों को अंतरिक्ष में छोड़ना एक तरह से पक्षियों को आसमान में उड़ाने जैसा है. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे इसरो के वैज्ञानिक कितने काबिल हैं जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में सिमित संसाधनों से विकसित देशों को पीछे छोड़ रहे हैं. इसरो में कई ऐसे वैज्ञानिक हुए, जिन्होंने अपना पूरा जीवन संगठन को समर्पित कर दिया. उन्होंने कभी विवाह नहीं किया.
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