अयोध्या पर फैसला : AIMPLB के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा- ये कहां का इंसाफ है

अयोध्या मुद्दे पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा, 'इसके बदले हमें 100 एकड़ जमीन भी दे दो तो कोई फायदा नहीं है. हमारी 67 एकड़ जमीन पहले से ही अधिग्रहित की हुई है.

अयोध्या पर फैसला :  AIMPLB के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा- ये कहां का इंसाफ है

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

अयोध्या मुद्दे पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा, 'इसके बदले हमें 100 एकड़ जमीन भी दे दो तो कोई फायदा नहीं है. हमारी 67 एकड़ जमीन पहले से ही अधिग्रहित की हुई है तो हमको दान में क्‍या दे रहे हैं वो? हमारी 67 एकड़ जमीन लेने के बाद 5 एकड़ दे रहे हैं. ये कहां का इंसाफ है?' गौरतलब है कि इससे पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असंतुष्टि जाहिर की है. उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन फैसले पर संतुष्ट नही हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में गलत तथ्य पेश किए गए हैं और इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर विचार करेंगे. 

अयोध्या भूमि विवाद को लेकर पांच जजों की पीठ ने शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित ढांचे पर अपना एक्सक्लूसिव राइट साबित नहीं कर पाया. कोर्ट ने विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को देने का फैसला सुनाया, तो मुसलमानों को दूसरी जगह जमीन देने के लिए कहा है. कोर्ट ने साथ ही कहा कि इसके लिए केंद्र सरकार तीन महीने में योजना बनाए. कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन मिलेगी. फिलहाल अधिकृत जगह का कब्जा रिसीवर के पास रहेगा. पांचों जजों की सहमति से फैसला सुनाया गया है. फैसला पढ़ने के दौरान पीठ ने कहा कि ASI रिपोर्ट के मुताबिक नीचे मंदिर था. CJI ने कहा कि ASI ने भी पीठ के सामने विवादित जमीन पर पहले मंदिर होने के सबूत पेश किए हैं. CJI ने कहा कि हिंदू अयोध्या को राम जन्मस्थल मानते हैं. हालांकि, ASI यह नहीं बता पाया कि मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गई थी. मुस्लिम गवाहों ने भी माना कि वहां दोनों ही पक्ष पूजा करते थे. 

सीजेआई ने कहा, 'रंजन गोगोई ने कहा कि ASI की रिपोर्ट के मुताबिक खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनी थी. साथ ही सबूत पेश किए हैं कि हिंदू बाहरी आहते में पूजा करते थे. साथ ही CJI ने कहा कि सूट -5 इतिहास के आधार पर है जिसमें यात्रा का विवरण है. सूट 5 में सीता रसोई और सिंह द्वार का जिक्र है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए शांतिपूर्ण कब्जा दिखाना असंभव है. CJI ने कहा कि 1856-57 से पहले आंतरिक अहाते में हिंदुओ पर कोई रोक नहीं थी. मुसलमानों का बाहरी आहते पर अधिकार नहीं रहा'.
 

फैसला पढ़ने के बाद लेंगे आगे का फैसला - जफरयाब जिलानी​

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