भोपाल:
हम बच्चे चाहते हैं कि दुनिया से भूख, गरीबी, भेदभाव का अंत हो। दुनिया के हर बच्चे को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, अभिव्यक्ति के साथ हर संसाधन के समान उपयोग का अधिकार मिले। बच्चे शांति के साथ खुशहाल जिंदगी चाहते हैं। हमारी चाहतों, हमारे सपनों को पूरा करने के लिए तय किए गए स्थायी विकास लक्ष्यों के अमल को सुनिश्चित करने हमारे बड़े, लीडर्स और संयुक्त राष्ट्र जैसी सर्वोच्च संस्था ठोस कदम उठाएं, यही हम बच्चों की अपेक्षा है।
भोपाल की यशस्वी कुमुद ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय में बच्चों के अधिकारों की आवाज बुलंद करते हुए ये बातें कहीं। यशस्वी संयुक्त राष्ट्र संघ साधारण सभा के प्रतिनिधि के रूप में 'नाइन इज माइन एडवोकेसी' कैम्पेन के लिए देश के 15 बच्चों में चुनी गई मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से इकलौती प्रतिनिधि थीं। वह कैम्पेन की कुल 16 दिवसीय यात्रा पूरी कर हाल ही भोपाल लौटीं हैं। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश..
स्थायी विकास लक्ष्यों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर दुनिया के तमाम देशों के नेता जब संयुक्त राष्ट्र में मंथन कर रहे हैं, तो आप बच्चों का वहां जाने का क्या उद्देश्य था?
बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना केवल बड़ों की ही जिम्मेदारी नहीं, क्योंकि हम बच्चे कल के भविष्य ही नहीं, बल्कि वर्तमान के सक्रिय नागरिक हैं, यह हम बच्चों का अधिकार है कि हम बताएं कि दुनिया कैसी हो। सन 2000 में जब मिलेनियम डेवलेपमेंट गोल पर हस्ताक्षर हुए थे। तब मैं एक साल की थी, आज मैं 16 साल की हूं और देखती हूं कि उनमें काफी लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाए हैं। हम आवाज उठा रहे हैं, क्योंकि हम चाहते हैं कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (स्थायी विकास लक्ष्य), जिन पर दुनिया के तमाम नेताओं ने अभी हस्ताक्षर किए हैं, उन पर अमल हो और 15 साल बाद जब मैं 31 साल की हो जाऊं, तब भूखमरी, अशिक्षा, अशांति, रंग, नस्ल, जाति, लैंगिक सहित किसी भी प्रकार का भेदभाव केवल इतिहास के पन्नों में पढ़ने को मिले। ये दुनिया हम बच्चों के लिए पूरी तरह से अनुकूल हो, कोई बच्चा विकास की धारा से न छूट जाए, बच्चों के बारे में कोई भी योजना या फैसला बच्चों से बिना पूछे न तय हो। यही बात कहने हम संयुक्त राष्ट्र तक गए थे।
आपने संयुक्त राष्ट्र में किस तरह से आवाज उठाई?
विकास लक्ष्यों को अपनाने के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा के 70 सत्र के लिए 24 सितंबर को जब पीएम मोदी का भाषण होना था, उससे एक दिन पहले मुख्यालय में हम बच्चों ने कहा, भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य पर जीडीपी के हिसाब से बजट और बढ़ाया जाना चाहिए, ये बहुत ही कम है। मातृ, शिशु मृत्यु दर कम हो। इसके अलावा हमने शिक्षा, स्वास्थ्य, अवसरों की उपलब्धता में हर स्तर पर भेदभाव खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की बात कही। मैंने महात्मा गांधी जी के उस संदेश का यूएन में उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया में सबकी जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधन पर्याप्त हैं, लेकिन कुछ लोगों के लालच को पूरा करने के लिए नहीं। लालच छोड़ेंगे, तब सबको सब संसाधन मिल जाएंगे। इसके अलावा हमने उन 20 सिफारिशों की रिपोर्ट भी यूएन में रखी, जो खुशहाल बचपन, शांति और सुरक्षित जीवन के अधिकारों से जुड़ी थी। इस बैठक में भारतीय योजना आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया, यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक कुमार मुखर्जी, यूएन स्थायी मिशन के प्रतिनिधि, राजदूत डेविड डोंगे. यूनिसेफ के वरिष्ठ अधिकारियों सहित अनेक प्रतिनिधि और अधिकारी उपस्थित थे।
न्यूयॉर्क में आपके और क्या कार्यक्रम थे?
हम न्यूयॉर्क में यूएन और यूनिसेफ के मुख्यालय में भी गए और वहां के अधिकारियों के साथ मीटिंग में भी हम बच्चों द्वारा बच्चों के लिए तैयार सिफारिशों की रिपोर्ट पेश की तथा मैंने मध्य प्रदेश बाल विवाह के खिलाफ और सेव गर्ल चाइल्ड मूवमेंट के तरीकों के बारे में जानकारी दी, जो यूनिसेफ के अधिकारियों को बहुत पसंद आए। हमारे दल के साथ निशक्त मूक बधिर साथी और तेलुगु भाषी छात्राएं भी थी। मैंने दिल्ली में सांकेतिक भाषा सीखी और यूएन हेडक्वार्टर में इन बच्चों की आवाज बनी। ये मेरी लिए बहुत खुशी का पल था। मैं अपने इस कार्य से यह संदेश भी देना चाहती थी कि कुछ बच्चे भले ही निशक्त हो, विभिन्न भाषा-भाषी हों, अगर हम बेहतर समन्वय के साथ एक-दूसरे का हाथ थाम लें तो बच्चों की साझा आवाज बहुत ही ताकतवर साबित हो सकती है।
-न्यूयॉर्क में हम बच्चों ने दलितों के अधिकारों के लिए एक रैली निकाली, इसमें संदेश दिया कि जाति, नस्ल, रंग, वर्ग से ऊपर उठकर उन सभी को बेहतर जिंदगी का अधिकार मिलना चाहिए, जिन्हें सबसे नीचे और सबसे पीछे माना जाता है।
-न्यूयॉर्क में भारतीय समुदाय के बीच हम बच्चो ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। मैने वहां देश और मध्यप्रदेश में चलाए रहे बेटी बचाओ अभियान (सेव गर्ल चाइल्ड मूवमेंट) के बारे में बताया और अपनी संस्था सरोकार के कोख से संसार तक बचे बेटी ससम्मान जिए बेटी का संदेश देते हुए चंद गीतों की प्रस्तुति दी। वहां हम बच्चों ने एक लंगर में भाग लिया, जहां सबके बीच समानता का संदेश दिया।
जानिए कौन हैं यशस्वी
यशस्वी अभी कक्षा 11 में ह्यूमिनिटीस (मानविकी शास्त्र) की पढ़ाई कर रही हैं और भोपाल के सेंट जोसेफ गर्ल्स स्कूल की छात्रा हैं। वह चार साल की उम्र में बेटियों के जीवन, रक्षा और सम्मान के लिए काम कर रही हैं।
भोपाल की यशस्वी कुमुद ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय में बच्चों के अधिकारों की आवाज बुलंद करते हुए ये बातें कहीं। यशस्वी संयुक्त राष्ट्र संघ साधारण सभा के प्रतिनिधि के रूप में 'नाइन इज माइन एडवोकेसी' कैम्पेन के लिए देश के 15 बच्चों में चुनी गई मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से इकलौती प्रतिनिधि थीं। वह कैम्पेन की कुल 16 दिवसीय यात्रा पूरी कर हाल ही भोपाल लौटीं हैं। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश..
स्थायी विकास लक्ष्यों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर दुनिया के तमाम देशों के नेता जब संयुक्त राष्ट्र में मंथन कर रहे हैं, तो आप बच्चों का वहां जाने का क्या उद्देश्य था?
बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना केवल बड़ों की ही जिम्मेदारी नहीं, क्योंकि हम बच्चे कल के भविष्य ही नहीं, बल्कि वर्तमान के सक्रिय नागरिक हैं, यह हम बच्चों का अधिकार है कि हम बताएं कि दुनिया कैसी हो। सन 2000 में जब मिलेनियम डेवलेपमेंट गोल पर हस्ताक्षर हुए थे। तब मैं एक साल की थी, आज मैं 16 साल की हूं और देखती हूं कि उनमें काफी लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाए हैं। हम आवाज उठा रहे हैं, क्योंकि हम चाहते हैं कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (स्थायी विकास लक्ष्य), जिन पर दुनिया के तमाम नेताओं ने अभी हस्ताक्षर किए हैं, उन पर अमल हो और 15 साल बाद जब मैं 31 साल की हो जाऊं, तब भूखमरी, अशिक्षा, अशांति, रंग, नस्ल, जाति, लैंगिक सहित किसी भी प्रकार का भेदभाव केवल इतिहास के पन्नों में पढ़ने को मिले। ये दुनिया हम बच्चों के लिए पूरी तरह से अनुकूल हो, कोई बच्चा विकास की धारा से न छूट जाए, बच्चों के बारे में कोई भी योजना या फैसला बच्चों से बिना पूछे न तय हो। यही बात कहने हम संयुक्त राष्ट्र तक गए थे।
आपने संयुक्त राष्ट्र में किस तरह से आवाज उठाई?
विकास लक्ष्यों को अपनाने के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र साधारण सभा के 70 सत्र के लिए 24 सितंबर को जब पीएम मोदी का भाषण होना था, उससे एक दिन पहले मुख्यालय में हम बच्चों ने कहा, भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य पर जीडीपी के हिसाब से बजट और बढ़ाया जाना चाहिए, ये बहुत ही कम है। मातृ, शिशु मृत्यु दर कम हो। इसके अलावा हमने शिक्षा, स्वास्थ्य, अवसरों की उपलब्धता में हर स्तर पर भेदभाव खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की बात कही। मैंने महात्मा गांधी जी के उस संदेश का यूएन में उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया में सबकी जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधन पर्याप्त हैं, लेकिन कुछ लोगों के लालच को पूरा करने के लिए नहीं। लालच छोड़ेंगे, तब सबको सब संसाधन मिल जाएंगे। इसके अलावा हमने उन 20 सिफारिशों की रिपोर्ट भी यूएन में रखी, जो खुशहाल बचपन, शांति और सुरक्षित जीवन के अधिकारों से जुड़ी थी। इस बैठक में भारतीय योजना आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया, यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक कुमार मुखर्जी, यूएन स्थायी मिशन के प्रतिनिधि, राजदूत डेविड डोंगे. यूनिसेफ के वरिष्ठ अधिकारियों सहित अनेक प्रतिनिधि और अधिकारी उपस्थित थे।
न्यूयॉर्क में आपके और क्या कार्यक्रम थे?
हम न्यूयॉर्क में यूएन और यूनिसेफ के मुख्यालय में भी गए और वहां के अधिकारियों के साथ मीटिंग में भी हम बच्चों द्वारा बच्चों के लिए तैयार सिफारिशों की रिपोर्ट पेश की तथा मैंने मध्य प्रदेश बाल विवाह के खिलाफ और सेव गर्ल चाइल्ड मूवमेंट के तरीकों के बारे में जानकारी दी, जो यूनिसेफ के अधिकारियों को बहुत पसंद आए। हमारे दल के साथ निशक्त मूक बधिर साथी और तेलुगु भाषी छात्राएं भी थी। मैंने दिल्ली में सांकेतिक भाषा सीखी और यूएन हेडक्वार्टर में इन बच्चों की आवाज बनी। ये मेरी लिए बहुत खुशी का पल था। मैं अपने इस कार्य से यह संदेश भी देना चाहती थी कि कुछ बच्चे भले ही निशक्त हो, विभिन्न भाषा-भाषी हों, अगर हम बेहतर समन्वय के साथ एक-दूसरे का हाथ थाम लें तो बच्चों की साझा आवाज बहुत ही ताकतवर साबित हो सकती है।
-न्यूयॉर्क में हम बच्चों ने दलितों के अधिकारों के लिए एक रैली निकाली, इसमें संदेश दिया कि जाति, नस्ल, रंग, वर्ग से ऊपर उठकर उन सभी को बेहतर जिंदगी का अधिकार मिलना चाहिए, जिन्हें सबसे नीचे और सबसे पीछे माना जाता है।
-न्यूयॉर्क में भारतीय समुदाय के बीच हम बच्चो ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी। मैने वहां देश और मध्यप्रदेश में चलाए रहे बेटी बचाओ अभियान (सेव गर्ल चाइल्ड मूवमेंट) के बारे में बताया और अपनी संस्था सरोकार के कोख से संसार तक बचे बेटी ससम्मान जिए बेटी का संदेश देते हुए चंद गीतों की प्रस्तुति दी। वहां हम बच्चों ने एक लंगर में भाग लिया, जहां सबके बीच समानता का संदेश दिया।
जानिए कौन हैं यशस्वी
यशस्वी अभी कक्षा 11 में ह्यूमिनिटीस (मानविकी शास्त्र) की पढ़ाई कर रही हैं और भोपाल के सेंट जोसेफ गर्ल्स स्कूल की छात्रा हैं। वह चार साल की उम्र में बेटियों के जीवन, रक्षा और सम्मान के लिए काम कर रही हैं।
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