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This Article is From Aug 19, 2014

इंदिरा गांधी के हत्यारों को 'कौम के हीरे' बताने वाली फिल्म पर प्रतिबंध की मांग

इंदिरा गांधी के हत्यारों को 'कौम के हीरे' बताने वाली फिल्म पर प्रतिबंध की मांग
फिल्म ‘कौम दे हीरे’ का एक दृश्य
चंडीगढ़:

भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों - सतवंत सिंह और बेअंत सिंह - पर बनी एक पंजाबी फिल्म को कड़े चौतरफा राजनैतिक विरोध और प्रतिबंध की मांगों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, भूतपूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को 'कौम के हीरे' बताने वाली यह फिल्म शुक्रवार, 22 अगस्त को रिलीज़ होने जा रही है।

राज्य में विपक्षी पार्टी कांग्रेस की युवा शाखा के अध्यक्ष विक्रमजीत सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर फिल्म की रिलीज़ नहीं रोके जाने की स्थिति में राज्यव्यापी विरोध-प्रदर्शनों की चेतावनी दी है, जबकि राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन की घटक बीजेपी के एक सदस्य ने भी यही मांग की है।

बताया जाता है कि इसके बाद सत्तासीन शिरोमणि अकाली दल के मुखिया और मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अपने गृहसचिव से विवाद को सुलझाने के लिए कहा है, लेकिन वैसे राज्य सरकार का कहना है कि फिल्म की रिलीज़ पर निर्णय करना सेंसर बोर्ड का काम है।

उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा जून, 1984 में सिखों के सबसे पवित्र माने जाने वाले गुरुद्वारे - स्वर्ण मंदिर - में से आतंकवादियों को खदेड़ने के लिए सैन्य कार्रवाई (जिसे 'ऑपरेशन ब्लूस्टार' कहा जाता है) की अनुमति देने के चार महीने बाद उन्हीं के अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर, 1984 को उनकी गोलियां बरसाकर हत्या कर दी थी।

इस फिल्म 'कौम दे हीरे' (समुदाय के हीरे) की कहानी 'ऑपरेशन ब्लूस्टार' से शुरू होती है, और सतवंत सिंह की फांसी पर खत्म होती है। उल्लेखनीय है कि बेअंत सिंह को इंदिरा गांधी के अन्य अंगरक्षकों ने गोलियां बरसाए जाने के तुरन्त बाद मौका-ए-वारदात पर ही मार डाला था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख-विरोधी दंगे भड़क गए थे, जिनमें लगभग 3,000 सिख मार दिए गए थे।

शिरोमणि अकाली दल समर्थित शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने पिछले साल एक कार्यक्रम के दौरान सतवंत सिंह और बेअंत सिंह को 'शहीदों' के रूप में सम्मानित किया था, जिसकी चौतरफा आलोचना की गई थी। आलोचकों के अनुसार इस फिल्म में भी हत्यारों का महिमामंडन किया गया है।

बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत चावला ने कहा, "ऐसी फिल्मों को तो बनाने की भी इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए... मैं नहीं जानता, सेंसर बोर्ड ने इसे कैसे पास कर दिया... इंदिरा गांधी हमारी प्रधानमंत्री थीं... उनके हत्यारों का महिमामंडन किए जाने से न सिर्फ पंजाब में शांति और सद्भाव को नुकसान होगा, बल्कि पूरे उत्तर भारत में... ऐसी फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया ही जाना चाहिए..."

दरअसल, इस फिल्म को कई महीनों से विरोध का सामना कर पड़ रहा था, लेकिन निर्माताओं द्वारा सेंसर बोर्ड द्वारा बताए गए कुछ कट मंजूर कर लेने के बाद इसे रिलीज़ की अनुमति दे दी गई। लोकसभा चुनाव से पहले इस फिल्म की रिलीज़ को पहले 28 फरवरी को रोका गया, और फिर 14 मार्च को, लेकिन विदेशों में रिलीज़ कर दिया गया था, जहां इसे कुछ हद तक कामयाबी मिली है।

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