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This Article is From Feb 26, 2019

आतंकी कैंपों पर हमले के बाद भारतीय सेना की पहली प्रतिक्रिया- "सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की"

आतंकवादी कैंपों पर हमले के बाद (Air strike by india) भारतीय सेना ने पहली प्रतिक्रिया व्यक्त की है. भारतीय सेना(Indian Army) ने राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता के जरिए भावनाओं का किया इजहार.

आतंकी कैंपों पर हमले के बाद भारतीय सेना की पहली प्रतिक्रिया- "सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की"
Air Strike by India : इंडियन एयर फोर्स की ओर से आतंकी कैंपों पर जबर्दस्त कार्रवाई के बाद भारतीय सेना ने पहली प्रतिक्रिया दी है.
नई दिल्ली:

आतंकवादी कैंपों पर हमले के बाद (Air strike by india) भारतीय सेना ने पहली प्रतिक्रिया व्यक्त की है. इंडियन एयर फोर्स के मिराज विमानों ने नियंत्रण रेखा के पार आतंकवादी कैम्पों पर 1,000 किलोग्राम के बम गिराए और उन्हें पूरी तरह तबाह कर दिया गया."भारतीय वायुसेना के सूत्रों के मुताबिक यह कार्रवाई 26 फरवरी को सुबह 03:30 बजे  हुई. इस बड़ी कार्रवाई के बाद भारतीय सेना ने @adgpi ट्विटर हैंडल से रामधारी सिंह दिनकर की कविता ट्वीट कर प्रतिक्रिया दी है. रामधारी सिंह दिनकर की पहचान राष्ट्रवादी कवि की रही है. उनका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय के सिमरिया गांव और निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ था. रामधारी सिंह दिनकर ने कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रेणुका, रश्मिरथी, द्वंदगीत, बापू, धूप छांह, मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह जैसी कृतियां की. काव्य संग्रह उर्वशी के लिए 1972 के ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किए गए.

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भारतीय सेना ने ट्वीट करते हुए लिखा-

'क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुए विनीत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की,
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।'

दरअसल यह कविता रामधारी सिंह दिनकर ने शक्ति और क्षमा शीर्षक से लिखी था. पूरी कविता यहां पढ़ें.

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।

वीडियो : भारतीय वायुसेना ने आतंकी कैंपो पर हमला कर किया तबाह​

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