चीन के लिए आसान नहीं होगा युद्ध का फैसला, जानें इसके पीछे के 6 कारण

डोकलाम में चीन और भारत आमने-सामने हैं, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं इस मुद्दे पर आक्रामक होने के बावजूद चीन भी युद्ध नहीं चाहता.फिर भारत तो अपना रुख साफ कर ही चुका है.

चीन के लिए आसान नहीं होगा युद्ध का फैसला, जानें इसके पीछे के 6 कारण

तो इस तरह भारत पर निर्भर है चीन

खास बातें

  • 1962 से भारत-चीन सीमा पर एक भी गोली नहीं चली
  • चीन का भारत में 160 बिलियन डॉलर का निवेश
  • भारत चीन के लिए बड़ा बाजार है, उपेक्षा नहीं कर सकता
नई दिल्ली:

डोकलाम में चीन और भारत आमने-सामने हैं, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं इस मुद्दे पर आक्रामक होने के बावजूद चीन भी युद्ध नहीं चाहता. फिर भारत तो अपना रुख साफ कर ही चुका है कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है, लेकिन अगर कोई हमला होता है तो वह पूरी तरह से तैयार है. जबसे डोकलाम विवाद सामने आया है तब से चीनी मीडिया बार-बार भारत को 1962 का युद्ध याद रखने की धमकी देता रहा है. वहीं भारत के रक्षामंत्री अरुण जेटली भी साफ कर चुके हैं कि भारत अब 1962 वाला नहीं रह गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के साथ युद्ध करना चीन के लिए भी उतना ही जोखिम भरा होगा जितना कि किसी देश के लिए होता है.

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जानें क्या हैं कारण
1.1962 वाले युद्ध के बाद से अब तक भारत-चीन सीमा पर एक भी गोली नहीं चली. दोनों ही देश इस मामले में संयम रखते हैं. 
2. इन वजहों में सबसे अहम जरूरत ऊर्जा की भी है . चीन की इंर्धन आपूर्ति मलक्का की खाड़ी से होती है. वह इस जरूरत को पश्चिम एशिया और अफ्रीका से पूरी करता है.मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उसका 80 फीसदी हिन्द महासागर और मलक्का की खाड़ी के रास्ते आता है. मलक्का की खाड़ी भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से बहुत दूर नहीं है. भारत असानी से यहां से चीन को होने वाली ईधन आपूर्ति रोक सकता है.
3.विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में हाल ही में बयान दिया था कि 2014 में चीन ने भारत में 116 बिलियन डॉलर का निवेश किया जो आज की तारीख़ में 160 बिलियन डॉलर हो गया है.
4.भारत चीन के लिए बड़ा बाज़ार है. इस बाज़ार की चीन उपेक्षा नहीं कर सकता है. भारत में चीनी टेलीकॉम कंपनी 1999 से ही हैं और वे काफी पैसा कमा रही हैं.
5.भारत में चीनी मोबाइल का मार्केट भी बहुत बड़ा है. मोबाइल मार्केट में चीन का 55 से 56 फ़ीसदी का कब्ज़ा है.
6. सदन में विपक्षी नेता रामगोपाल यादव ने चीन से तनाव के बीच युद्ध की तैयारी और सामरिक शक्ति बढ़ाने की सलाह दी थी. सुषमा स्वराज ने इस सलाह को ख़ारिज कर दिया था और कहा था कि युग बदल गया है. सुषमा ने कहा था कि किसी देश की शक्ति की पहचान सामरिक नहीं बल्कि आर्थिक होती है. भारतीय विदेश मंत्री ने यहां तक कहा था कि भारत की आर्थिक प्रगति में चीन की भी भूमिका है और समाधान युद्ध से नहीं बातचीत से होगा. किसी भी देश के लिए युद्ध अच्छा नहीं हो सकता.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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