झारखंड में आयकर विभाग ने की छापेमारी, समूह के खातों में पाई गई गड़बड़ियां

समूह ने रांची के बाहरी इलाके में 1458 एकड़ जमीन का एक बहुत बड़ा हिस्सा खरीदा है और आवासीय अपार्टमेंट का निर्माण और बिक्री करके इसे विकसित कर रहा है.

झारखंड में आयकर विभाग ने की छापेमारी, समूह के खातों में पाई गई गड़बड़ियां

प्रतीकात्मक तस्वीर.

रांची:

आयकर विभाग ने 28 जुलाई को झारखंड में भवन निर्माण और अचल संपत्ति का कारोबार करने वाले एक प्रमुख समूह के यहां छापेमारी की. छापेमारी रांची और कोलकाता समेत 20 से ज्यादा जगहों पर की गई. तलाशी के दौरान यह पाया गया कि समूह खातों में गड़बड़ी है. इसके मद्देनजर, आयकर विभाग को प्रस्तुत किए गए ऑडिट प्रमाण पत्र और बयानों की सत्यता की जांच की जा रही है. तलाशी अभियान के दौरान मिले विवरण के अनुसार, यह देखा गया कि समूह भवन निर्माण व्यवसाय में बही-खातों के बाहर भारी लेन-देन कर रहा है और  आय के एक बड़े हिस्से का लेनदेन नकदी में कर रहा था जो कि बेहिसाब था. 

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नकदी का एक हिस्सा फर्जी शेयर और मुखौटा कंपनियों से दिखाया जा रहा था, जांच से पता चला है कि कम से कम 8 मुखौटा कंपनियां शामिल थीं. केवल कागजों पर मौजूद इन 'कंपनियों' के निदेशकों के रूप में रिश्तेदारों और बिना किसी साधन के व्यक्तियों को नियुक्त किया गया था. इन 'निदेशकों' ने स्वीकार किया है कि वे केवल 'डमी निर्देशक' थे और जहां भी समूह ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था, वे हस्ताक्षर कर देते थे. इसमें 25 करोड़ के लेनदेन का पता चला है. समूह में पैसा लगाने वाली शेल कंपनियों को कोलकाता में नहीं पाया गया, मुखौटा कंपनियों से शेयर पूंजी और असुरक्षित ऋण प्राप्त करने वाली प्रमुख कंपनियों के निदेशक के रूप में कर्मचारियों के बारे में आपत्तिजनक दस्तावेज जब्त किए गए हैं.

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समूह ने रांची के बाहरी इलाके में 1458 एकड़ जमीन का एक बहुत बड़ा हिस्सा खरीदा है और आवासीय अपार्टमेंट का निर्माण और बिक्री करके इसे विकसित कर रहा है. यह देखा गया था कि भूमि को स्टाम्प शुल्क के उद्देश्य से मूल्य के दसवें हिस्से के प्रतिफल पर पंजीकृत किया गया है. दलालों को करोड़ों में नकद में शुल्क का भुगतान किया गया है. जमीन की खरीद के संबंध में अन्य खर्च भी करोड़ों में हैं. जमीन के विक्रेताओं की भी तलाशी ली गई है और उन्होंने स्वीकार किया है कि पंजीकृत दस्तावेज में शामिल 25 प्रतिशत से अधिक भूमि वन भूमि है, जो उनके स्वामित्व में नहीं है और जिसके लिए उन्हें कोई प्रतिफल नहीं मिला है. तलाशी के दौरान जुटाए गए सबूतों से पता चला कि ग्रुप ने धोखाधड़ी से 300 एकड़ से ज्यादा वन भूमि अपने नाम दर्ज करा ली है.