नरेंद्र मोदी क्योटो की तर्ज पर बनारस को बचाने और गंगा की सफाई में जापान की मदद का वादा लेकर जब भारत पहुंचे, उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने गंगा सफाई पर उनकी सरकार के कामकाज को कठघरे में ला खड़ा किया। अदालत ने यहां तक कह डाला कि गंगा की सफाई में 200 साल लग जाएंगे, और क्या आने वाली पीढ़ियां गंगा को कभी उसकी पुरानी गरिमा के साथ देख पाएंगी।
सुप्रीम कोर्ट में गंगा सफाई के मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि हमें नहीं पता कि हम कभी गंगा को वास्तविक रूप में देख पाएंगे, लेकिन सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि वह गंगा को उसके गौरवपूर्णँ रूप में वापस लाए, जिसे अगली पीढ़ियां देख सकें।
केंद्र सरकार के हलफनामे को बिल्कुल सरकारी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने दफ्तरी ढंग से ब्योरे दे डाले हैं, और हमें कमेटियों के ब्योरे से मतलब नहीं है, लेकिन हम जानना चाहते हैं कि गंगा सफाई की जो प्रक्रिया बनेगी, उसे आम आदमी कैसे समझे। बेहतर होगा कि सरकार हमें पॉवरप्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से अपनी चरणबद्ध योजना कोर्ट के सामने रखे, और साथ ही वह पैमाने तय करे, जिनसे सफाई की प्रगति का आकलन हो सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार गंगा सफाई की चरणबद्ध योजना का खाका तैयार करे और तीन हफ्तों में अदालत के सामने पेश करे। इससे पहले, सुनवाई में सालिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने सरकारी हलफनामे का जिक्र करते हुए कोर्ट को बताया था कि गंगा की सफाई के लिए सरकार प्रतिबद्ध है और उन्होंने तमाम योजनाओं का हवाला भी दिया था।
हालांकि सरकार ने यह भी कहा कि आईआईटी की रिपोर्ट इस साल दिसंबर में आने की उम्मीद है और इसके बाद ही काम शुरू हो पाएगा। करीब 2,500 किलोमीटर लंबी और पांच राज्यों से गुजरने वाली गंगा की सफाई का मामला वर्ष 1985 से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।
कोर्ट ने सरकार को कहा है कि वह चरणबद्ध तरीके से सफाई की योजना तैयार करे और इसके लिए समयसीमा भी तय करे। दो हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट सरकार को याद दिला चुका है कि गंगा को उसने अपने चुनावी घोषणापत्र में अहम जगह दी है।
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