भारतीय लोगों की सुरक्षा और उनका हित सबसे बड़ी प्राथमिकता है. यह बात इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने शनिवार को कही. काउंसिल ने यह सफाई विपक्ष और मेडिकल विशेषज्ञों द्वारा उठाए गए उस सवाल पर दी जिसमें कहा गया था कि आईसीएमआर 15 अगस्त तक कोरोना की वैक्सीन बनाना चाहता है.
आईसीएमआर प्रमुख द्वारा इस सप्ताह की शुरुआत में भेजे गए एक पत्र में कहा गया था कि संस्था स्वतंत्रता दिवस पर कोरोनावायरस वैक्सीन लॉन्च करने के बारे में सोच रही है. इस पर विपक्ष द्वारा आरोप लगाया गया है कि आईसीएमआर ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के लिए कर रही है.
आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव के पत्र ने 12 अस्पतालों में डॉक्टरों को "फास्ट ट्रैक" क्लिनिकल ट्रायल करने के लिए कहा था. इससे कुछ डॉक्टरों और शोधकर्ताओं को भी झटका लगा, जिन्होंने कहा कि वैक्सीन के लिए छह सप्ताह की समय सीमा निर्धारित करना अवास्तविक है.
अपने संदेश का बचाव करते हुए, आईसीएमआर ने शनिवार को कहा, "डीजी-आईसीएमआर ने पत्र अनावश्यक लालफीताशाही को कम करने, बिना किसी आवश्यक प्रक्रिया को दरकिनार किए और प्रतिभागियों की भर्ती में तेजी लाने के लिए लिखा था."
आईसीएमआर ने कहा कि लाल फीताशाही से स्वदेशी परीक्षण किटों पर सहमति में बाधा न हो साथ ही प्रक्रिया को धीमी गति से अछूता रखने के लिए पत्र लिखा गया था. इस पत्र का उद्देश्य इन चरणों को जल्द से जल्द पूरा करना है, ताकि वैक्सीन का असर जानने के लिए लोगों पर टेस्ट बिना किसी देरी के शुरू किया जा सके.
आईसीएमआर ने कहा कि हमारी प्रक्रिया विश्व स्तर पर स्वीकृत मानदंडों के अनुसार महामारी की संभावित बीमारियों के लिए टीके के विकास को तेजी से ट्रैक करने के लिए है, जिसमें मानव और पशु परीक्षण समानांतर रूप से जारी रह सकते हैं. डेटा सुरक्षा निगरानी बोर्ड यह तय करेगा कि वैक्सीन का परीक्षण सबसे बेहतरीन तरीके से किया जाए, बोर्ड आवश्यकतानुसार समीक्षा करने का काम भी करेगा.
आईसीएमआर ने कहा," सार्वजनिक क्षेत्र में उठाए गए मुद्दों का स्वागत है, क्योंकि वे फीडबैक लूप का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. आईसीएमआर भारत के लोगों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में मानने के लिए प्रतिबद्ध है.''
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