भारतीय वायुसेना सुखोई-30 लड़ाकू विमानों को और ज्यादा मारक बनाने की तैयारी में है. अब से ठीक दो साल के भीतर इंडियन एयरफोर्स सुखोई-30 लड़ाकू विमानों को इजरायली डर्बी मिसाइलों से लैस करने की योजना बना रहा है. ऐसा 27 फरवरी को पाकिस्तानी वायुसेना के साथ हुई भिड़ंत के बाद किया जा रहा है, जिसमें F-16 का मुकाबला करने में रूस में बनी आर-77 से लैस हमारे लड़ाकू विमान पीछे रह गए थे. एयरफोर्स के सूत्रों ने NDTV को बताया कि हमारे पास पहले से ही स्पाइडर (जमीन से हवा में मार करने वाली) सिस्टम के तहत वो मिसाइल मौजूद है. सुखोई-30 से उसका इंटीग्रेशन अगला कदम होगा.
26 फरवरी को बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर भारतीय वायुसेना के एयर स्ट्राइक का जवाब देते हुए पाकिस्तानी एयरफोर्स ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर 24 लड़ाकू विमानों को तैनात किया था. इनमें से कुछ विमानों ने राजौरी सेक्टर में भारतीय सैन्य ठिकानों और सेना की पोजिशंस को निशाना बनाने के लिए एलओसी पार कर आए थे.
जैसे ही भारत को पता चला कि पाकिस्तान की तरफ से अमेरिका द्वारा निर्मित AIM-120 C5 एडवांस्ड मीडियम रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल्स (AMRAAM) लॉन्च की गई हैं, इधर से दो सुखोई-30 एमकेआई समेत 8 लड़ाकू विमानों को पीछा करने भेजा गया. AMRAAM ने भारत की एयर-टू-एयर मिसाइलों को पीछे छोड़ दिया.
करगिल की लड़ाई लड़ चुके समीर जोशी ने कहा कि पाकिस्तानी एयरफोर्स ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के अंदर हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल लॉन्च कर भारतीय वायुसेना को चौंका दिया. उन्होंने कहा कि AMRAAM ने प्रभावी रूप से आईएएफ की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल को पीछे छोड़ दिया, जिसे लॉन्च करने का कोई निर्देश नहीं दिया गया था.
भारतीय वायु सेना के जिन लड़ाकू विमानों को निशाना बनाया गया उनमें से दो सुखोई -30 थे, जो AMRAAMs से बच निकलने में कामयाब रहे. इन्हें उनकी अधिकतम 100 किलोमीटर की सीमा से फायर किया गया था. इन AMRAAMs से इंडियन एयफोर्स के सुखोई-30 मार गिराए जाने से तो बच निकले लेकिन ये F-16 विमानों का जवाब देने में असक्षम थे क्योंकि वे पोजिशन से बाहर थे और उनकी आर-77 रूसी मिसाइलों की इतनी रेंज नहीं थी कि वे पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को निशाना बना सकें. भारतीय वायु सेना के सूत्रों ने NDTV को बताया कि रूसी मिसाइलें 80 किलोमीटर से अधिक दूर के लक्ष्यों को निशाना नहीं बना पातीं.
अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, भारतीय वायुसेना इज़राइली मिसाइल के आई-डर्बी संस्करण की ओर देख रहा है, जिसका 2015 में पेरिस एयर शो में अनावरण किया गया था. मिसाइल को रूसी लड़ाकू विमानों के साथ जोड़ना एक चुनौती होगी. साथ ही सूत्रों के अनुसार, इसके लिए खास तौर से सुखोई -30 और मिसाइल के बीच डेटा-लिंक विकसित करने में इजरायल की विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी. फाइटर जेट डेटा लिंक के माध्यम से मिसाइल के साथ कम्युनिकेट करता है और लड़ाकू विमान के अपडेटेड वैक्टर (स्थान) से गुजरता है, जिसे निशाना बनाया जाना है.
भारतीय नौसेना ने पहली बार रिटायर हो चुके सी हारियर लड़ाकू विमानों के साथ डर्बी मिसाइल के पुराने वैरिएंट को जोड़ा था. यह मिसाइल स्वदेशी तेजस फाइटर का प्राथमिक एयर-टू-एयर हथियार भी है, जो भारतीय सेना में शामिल हो चुका है. डर्बी वायुसेना की सतह से हवा में मार करने वाली SPYDER मिसाइल बैटरियों का एक भाग भी है.
आई-डर्बी मिसाइल, जिस पर अब विचार किया जा रहा है वह वर्तमान में सेवा में शामिल मिसाइलों से बहुत अधिक एडवांस है. एविएशन वीक के एक लेख के अनुसार नई मिसाइल अपने से पहले वाली मिसाइलों की तुलना में हल्की और ज्यादा कॉम्पैक्ट है. यही वजह है कि आई-डर्बी ईआर मिसाइल की रेंज 100 किमी से अधिक बढ़ जाती है.
आई-डर्बी एकमात्र मिसाइल नहीं है जिस पर वायु सेना अपने सुखोई -30 बेड़े को आधुनिक बनाने के लिए विचार कर रही है. यूरोपीय MBDA द्वारा बनाई गई एडवांस शॉर्ट रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल (ASRAAM) पहली मिसाइल है, जिसका 2014 में एयर फोर्स के जगुआर बेड़े के लिए अधिग्रहण किया गया था. ये 250 मिलियन पाउंड डील का हिस्सा थी. इसका परीक्षण बेंगलुरू स्थित राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं में सुखोई 30 के मॉडल के साथ विंड टनल्स में किया गया था. एक बार पूरी तरह से जुड़ जाने के बाद, यह वर्तमान में सुखोई -30 बेड़े में इस्तेमाल हो रही आर -73 शॉर्ट रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल को रिप्लेस कर देगी.
इसके साथ ही, भारतीय वायु सेना सुखोई -30 के लिए स्वदेशी एस्ट्रा एयर-टू-एयर मिसाइल का मूल्यांकन कर रहा है. वायु सेना के सूत्रों ने NDTV से कहा कि एस्ट्रा पर अभी काम किया जा रहा है. फिलहाल सीमित सीरीज उत्पादन के तहत फिलहाल इन 50 मिसाइलों का ऑर्डर दे दिया गया है. ' कहने का मतलब ये है कि वायुसेना एक्सटेंडेड रेंज वैरिएंट वाली मिसाइलें चाहती है. लेकिन फिलहाल सूत्रों की माने तो एस्ट्रा एम के 2 को अभी हमारे पास आने में दस साल लग जाएंगे यही वजह है कि आई-डर्बी की ओर प्राथमिक तौर पर देखा जा रहा है.
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