नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सहयोगी दल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के भारी दबाव के आगे झुकते हुए सोमवार को संसद को आश्वस्त किया कि भारत श्रीलंका के युद्ध अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र में लाए जाने वाले प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करना चाहेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि ऐसा किए जाने से तमिलों के लिए बराबरी, न्याय और आत्मसम्मान हासिल करना सुनिश्चित हो सकेगा।
डीएमके अध्यक्ष एम. करुणानिधि ने प्रधानमंत्री के इस आश्वासन का स्वागत करते हुए इसे श्रीलंकाई संघर्ष के लिए जीत करार दिया।
राष्ट्रपति के अभिभषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा कि जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में लाया जाने वाला प्रस्ताव, श्रीलंका में तमिलों का भविष्य सुनिश्चित कराने के भारत के उद्दश्यों को पूरा करने वाला होना चाहिए।
सिंह ने कहा, "हम यूएनएचआरसी में प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने का इरादा रखते हैं। हम संसद सदस्यों की चिंताओं में खुद को साझा करते हैं।"
मनमोहन ने कहा, "हम अभी प्रस्ताव के अंतिम मसौदे का इंतजार कर रहे हैं.. हमने श्रीलंका से कहा है कि वह सत्ता के अर्थपूर्ण बंटवारे पर जोर दे।"
प्रधानमंत्री ने कहा, "श्रीलंकाई तमिलों के कल्याण को लेकर सांसदों द्वारा व्यक्त की गई चिंता और भावनाओं से मेरी सरकार पूरा सरोकार रखती है।"
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि श्रीलंकाई तमिलों का पुनर्वास और उनका कल्याण उनकी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में है।
ज्ञात हो कि सरकार पर श्रीलंका में गृह युद्ध के दौरान तमिलों के खिलाफ किए गए युद्ध अपराधों के लिए श्रीलंका के खिलाफ मतदान करने का दबाव है।
केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसके पहले कहा था कि सरकार आमतौर पर किसी देश केंद्रित प्रस्ताव पर मतदान नहीं करती। इससे द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) भड़क उठा था, और उसने केंद्र सरकार से अलग होने की चेतावनी दे दी थी।
बहरहाल, संसद में प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद डीएमके अध्यक्ष एम. करुणानिधि ने चेन्नई में घोषणा की कि मंगलवार को होने वाली पार्टी की उच्चस्तरीय बैठक नहीं होगी और साथ ही उन्होंने गुरुवार का अपना उपवास भी वापस ले लिया।
करुणानिधि ने कहा, "यह श्रीलंकाइयों के लिए संघर्ष की और उनके लिए संघर्ष करने वालों की जीत है।"
श्रीलंका के लिए बड़ा कूटनीतिक संकट पैदा करने वाले जेनेवा प्रस्ताव पर शुक्रवार को मतदान होना है।
डीएमके अध्यक्ष एम. करुणानिधि ने प्रधानमंत्री के इस आश्वासन का स्वागत करते हुए इसे श्रीलंकाई संघर्ष के लिए जीत करार दिया।
राष्ट्रपति के अभिभषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा कि जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में लाया जाने वाला प्रस्ताव, श्रीलंका में तमिलों का भविष्य सुनिश्चित कराने के भारत के उद्दश्यों को पूरा करने वाला होना चाहिए।
सिंह ने कहा, "हम यूएनएचआरसी में प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने का इरादा रखते हैं। हम संसद सदस्यों की चिंताओं में खुद को साझा करते हैं।"
मनमोहन ने कहा, "हम अभी प्रस्ताव के अंतिम मसौदे का इंतजार कर रहे हैं.. हमने श्रीलंका से कहा है कि वह सत्ता के अर्थपूर्ण बंटवारे पर जोर दे।"
प्रधानमंत्री ने कहा, "श्रीलंकाई तमिलों के कल्याण को लेकर सांसदों द्वारा व्यक्त की गई चिंता और भावनाओं से मेरी सरकार पूरा सरोकार रखती है।"
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि श्रीलंकाई तमिलों का पुनर्वास और उनका कल्याण उनकी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में है।
ज्ञात हो कि सरकार पर श्रीलंका में गृह युद्ध के दौरान तमिलों के खिलाफ किए गए युद्ध अपराधों के लिए श्रीलंका के खिलाफ मतदान करने का दबाव है।
केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसके पहले कहा था कि सरकार आमतौर पर किसी देश केंद्रित प्रस्ताव पर मतदान नहीं करती। इससे द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) भड़क उठा था, और उसने केंद्र सरकार से अलग होने की चेतावनी दे दी थी।
बहरहाल, संसद में प्रधानमंत्री की इस घोषणा के बाद डीएमके अध्यक्ष एम. करुणानिधि ने चेन्नई में घोषणा की कि मंगलवार को होने वाली पार्टी की उच्चस्तरीय बैठक नहीं होगी और साथ ही उन्होंने गुरुवार का अपना उपवास भी वापस ले लिया।
करुणानिधि ने कहा, "यह श्रीलंकाइयों के लिए संघर्ष की और उनके लिए संघर्ष करने वालों की जीत है।"
श्रीलंका के लिए बड़ा कूटनीतिक संकट पैदा करने वाले जेनेवा प्रस्ताव पर शुक्रवार को मतदान होना है।
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