यह ख़बर 19 जून, 2014 को प्रकाशित हुई थी

कैसे घटेगी महंगाई? नई सोच, नए कदम जरूरी

नई दिल्ली:

मंगलवार को केंद्र सरकार ने महंगाई को लेकर एक मीटिंग की, जिसमे खुद वित्तमंत्री जेटली, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और खाद्य मंत्री रामविलास पासवान मौजूद थे। इस बैठक में खराब मानसून की खबरों के बीच महंगाई रोकने का प्लान तैयार होना था। बैठक के बाद वित्त मंत्री ने जिस तरह की महंगाई रोकने की तैयारी की जानकारी मीडिया को दी उसको देखकर ऐसा तो लगा कि नई सरकार कुछ कदम तो उठा रही है, लेकिन वह कदम कितने कारगर साबित होंगे, उसको लेकर कुछ सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि मैंने खुद बहुत लम्बे समय तक खाने-पीने के सामान की महंगाई को बेहद करीब से देखा है और कवर किया है इसलिए एक समझ लिख रहा हूं।

सरकार ने कहा कि राज्यों को सलाह दी गई है कि की फल और सब्ज़ी को एपीएमसी की लिस्ट से बाहर कर दे, जिसे किसान के पास यह ऑप्शन होगा कि मंडी में बिना आढ़ती या कहें बिचौलिए के अपनी उपज को खुद बेच सकता है। इसमें तर्क यह है कि किसान जिस दाम में बेचता है और जिस दाम में खरीदार खरीदता है, उसमें जो अंतर होता है, वह कम होगा।

मैं आजादपुर मंडी गया और किसानों से बात की तो राजस्थान के झुंझुनू से आए प्याज किसान महावीर ने बताया, मैं अपना माल खुद नहीं बेच सकता, कोई किलो, दो किलो, थोड़े ही बेचना है, पूरे 250 कट्टे हैं।

कुछ और किसानों से बात की तो समझ आया कि किसान का खुद माल बेचना सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन आसान नहीं होगा। असल में किसान व्यापारी नहीं है, मंडी में जो खरीदार आता है, वह आढ़ती को जानता है, किसान को नहीं। सालों के संबंध होते हैं, जिसके आधार पर सौदे होते हैं। अनजान आदमी के पास कोई आसानी से माल खरीदने नहीं जाता। ऊपर से किसान और आढ़ती के बीच संबंध भी पुराना होता है इसलिए कभी किसान को उधार की जरूरत होती है तो आढ़ती से ले लेता है और आढ़ती बाद में कमीशन के रूप में उसको काट लेता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसान का माल नहीं बिक पाया तो वह आढ़ती के जिम्मे छोड़कर चले जाते हैं, बेशक बाद में आढ़ती औने-पौने दाम देकर किसान को बोल देता है कि उसका माल इतने में ही बिका, लेकिन न बिकने से और माल वापस ले जाने से तो अच्छा ही है। इसलिए किसान को लगता है कि माल तो हर हाल में आढ़ती के जरिये ही बिकेगा तो फिर इस कदम से कैसे और कितने दाम घटेंगे?

वैसे, आपको बता दूं कि पिछली सरकार के समय में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने भी यही आइडिया रखा था। सरकार ने ऐलान किया कि दिल्ली में मोबाइल वन के जरिये आलू-प्याज सस्ती दरों पर बेचेंगे, शुक्रवार शाम से दिल्ली में ये मोबाइल वैन मोहल्लों में जाएंगी हालांकि इसकी कामयाबी को परखने में अभी समय लगेगा, लेकिन ध्यान रहे कि दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार ऐसी कोशिश पहले भी करती रही हैं।

सफल के 380 बूथों पर आलू और प्याज की सप्लाई बढ़ाई जाएगी, जिससे बढ़ते दामों पर काबू पाया जाएगा। मैं जिस-जिस सफल बूथ पर गया वहां पर मौजूद लोगों ने बताया कि अभी कोई सप्लाई बढ़ाई तो नहीं गई, लेकिन सप्लाई तो पहले ही ठीक है। हमारे यहां आलू 24-26 रु/किलो और प्याज 20-22 रु/किलो है, चलिए देखते हैं इससे कितना असर पड़ेगा।

आलू और प्याज के निर्यात को रोकने या प्रभावित करने के लिए उसका न्यूनतम निर्यात मूल्य तय किया गया। यह कदम पहले भी समय-समय पर उठाए जाते रहे हैं फिर भी इसका असर देखने के लिए हमको इंतजार करना होगा।

50 लाख टन चावल को सरकार सरकारी गोदाम से खुले बाजार में लाएगी, यह कदम भी सरकार पहले उठाती रही है, लेकिन इसका रिस्पांस कोई खास अच्छा नहीं दिखा, क्योंकि सरकार जिस रेट पर बाजार में उतारती थी, वह आकर्षक नहीं होता था, अगर सरकार रेट कम रखे तो ही इससे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है।

सरकार ने जमाखोरों पर कार्रवाई करने के लिए कहा है, लेकिन यह तो हमेशा से ही कहा जाता रहा है। वैसे जहां तक मेरे पास खबर है व्यापारियों में एक तरह की दहशत तो है और यह नरेंद्र मोदी की छवि का असर है इसलिए दिल्ली और मध्य प्रदेश की मंडियों से मिली रिपोर्ट यही कहती है कि व्यापारी ज्यादा खरीदारी नहीं कर रहे हैं और मध्य प्रदेश में तो इसका असर यह हो रहा है कि देश में दालों का राजा कहा जाने वाला चना, जो देश में सबसे ज्यादा खाया जाता है उसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 3100 रु/क्विंटल है, लेकिन वह करीब 2000 रु /क्विंटल बिक रहा है। सरकार वहां खरीद नहीं रही और व्यापारी दहशत में हैं इसलिए नतीजा यह है।

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कुल मिलाकर बात यह है कि सरकार कदम तो उठा रही है, लेकिन ये वही कदम हैं, जो पिछली सरकार उठा चुकी है या फिर इस पर चर्चा कर चुकी है हालांकि इसके नतीजे देखने के लिए हमको इंतजार जरूर करना होगा, लेकिन फिर भी जब 'नई सोच नई उम्मीद' की बात चल रही हो तो नई सरकार से कोई नए कदम की उम्मीद करना गलत नहीं होगा।