सम्मेलन में योगेंद्र यादव।
नई दिल्ली:
'हमारे गांव में पानी पीने की समस्या है। हमारे गांव में जानवरों को चारा नहीं है। मजदूरी करने वालों को काम नही हैं।' यह पंक्तियां हैं महाराष्ट्र के लातूर जिले के एक किसान नंद कुशाल गिरी की चिट्ठी की जो आज स्वराज अभियान के संयोजक योगेन्द्र यादव ने एक सम्मेलन में पढ़ीं। चिट्ठी में महाराष्ट्र के इस किसान ने अपना दर्द बयां किया है। उधर दूसरी तरफ राजस्थान के जैसलमेर के एक किसान चतर सिंह जाम ने कहा कि रेगिस्तान में सबसे कम वर्षा वाली क्षेत्र में आज भी भरपूर पानी है, अनाज है और पशुओं के लिए चारा भी है।
खुद की पहल के बिना नहीं समस्या का अंत
दिल्ली में स्वराज अभियान की ओर से सूखे पर आयोजित सम्मेलन में उक्त दो तरह की बातें सामने आईं। सम्मेलन में स्वीकारा गया कि अगर लोगों ने बिना किसी सरकारी मदद के समस्या से निपटने की ठान ली तो कोई भी उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता, लेकिन अगर खुद पहल नहीं की तो फिर हालत शायद ही सुधरे।
'दिल और दिमाग नहीं सूखा'
'दिल और दिमाग नहीं सूखा' नाम के इस सम्मेलन में देशभर के किसान और खेती के जानकार जुटे। देश के बारह राज्यों में सूखे के हालात हैं। सरकार मानती है कि 33 करोड़ लोग सूखे की चपेट में हैं जबकि गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 54 करोड़ लोग सूखे की चपेट में हैं। पी साईनाथ जैसे जानकार मानते हैं कि मॉनसून अगर उम्मीद के मुताबिक अच्छा रहा तो भी किसानों की हालत पर ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं है।
सूखे के हालात और किसानों की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट भी चितिंत है। इस मामले पर 14 बार में सुप्रीम कोर्ट में 40 घंटे सुनवाई हो चुकी है। केन्द्र और राज्य सरकारों को कई बार कोर्ट की फटकार भी झेलनी पड़ी है। जल्द ही इस मामले में फैसला आने की उम्मीद है।
खुद की पहल के बिना नहीं समस्या का अंत
दिल्ली में स्वराज अभियान की ओर से सूखे पर आयोजित सम्मेलन में उक्त दो तरह की बातें सामने आईं। सम्मेलन में स्वीकारा गया कि अगर लोगों ने बिना किसी सरकारी मदद के समस्या से निपटने की ठान ली तो कोई भी उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता, लेकिन अगर खुद पहल नहीं की तो फिर हालत शायद ही सुधरे।
'दिल और दिमाग नहीं सूखा'
'दिल और दिमाग नहीं सूखा' नाम के इस सम्मेलन में देशभर के किसान और खेती के जानकार जुटे। देश के बारह राज्यों में सूखे के हालात हैं। सरकार मानती है कि 33 करोड़ लोग सूखे की चपेट में हैं जबकि गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 54 करोड़ लोग सूखे की चपेट में हैं। पी साईनाथ जैसे जानकार मानते हैं कि मॉनसून अगर उम्मीद के मुताबिक अच्छा रहा तो भी किसानों की हालत पर ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं है।
सूखे के हालात और किसानों की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट भी चितिंत है। इस मामले पर 14 बार में सुप्रीम कोर्ट में 40 घंटे सुनवाई हो चुकी है। केन्द्र और राज्य सरकारों को कई बार कोर्ट की फटकार भी झेलनी पड़ी है। जल्द ही इस मामले में फैसला आने की उम्मीद है।
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