
सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
हरियाणा और पंजाब के बीच जल बंटवारे के विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। सतलज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के निर्माण के लिए पंजाब सरकार द्वारा किसानों से अधिग्रहित की गई जमीन को लौटाने की तैयारी को लेकर हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मामले में दखल देने और ऐसा करने से पंजाब सरकार को रोकने की मांग की है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ में हरियाणा सरकार ने दलील दी कि पंजाब सरकार ने एसवाईएल बिल पास कर दिया है। जिसके तहत सरकार किसानों से एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए अधिग्रहित जमीन किसानों को वापस लौटा रही है।
हरियाणा सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि पंजाब सरकार द्वारा उठाया जा रहा यह कदम 2004 प्रेजीडेंशियल रेफरेंस के तहत बनाए गए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 को बेकार कर देगा। जिसके तहत यह तय किया गया था कि पंजाब सरकार हरियाणा से रावी, ब्यास और सतलुज नदी का पानी साझा करेगी। इसके लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना का खाका तैयार किया गया था। जिससे कि पंजाब द्वारा हरियाणा को पानी की जलापूर्ति की जा सके। ऐसे में पंजाब सरकार इस परियोजना से पीछे हटकर अगर किसानों को अधिग्रहित जमीन लौटा देती है तो उनकी यह कार्रवाई संघीय प्रणाली पर प्रहार है और इससे अव्यवस्था कायम हो जाएगी। इस तरह से संवैधानिक ढांचे को नुकसान पहुंचाते हुए किसी को मनमानी नहीं करने दी जा सकती। पंजाब सरकार का यह कदम हरियाणा के साथ हुए जल बंटवारा संधि का भी उल्लंघन है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देते हुए पंजाब सरकार को ऐसा करने से रोकना चाहिए।
वहीं, हरियाणा सरकार की इस दलील पर आपत्ति जताते हुए पंजाब सरकार ने कहा कि वह हरियाणा सरकार की दलीलों से इत्तेफाक नहीं रखते। हरियाणा सरकार की ओर से संघीय ढांचे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सामने गलत तस्वीर पेश की जा रही है। पंजाब सरकार ने जो निर्णय लिया है वो उन किसानों की बेहतरी के लिए लिया है, जिन्होंने अपनी जमीन गंवाई थी और जो भूमिहीन हो गए थे।
उधर, केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह इस मामले को लेकर न तो पंजाब सरकार का पक्ष लेना चाहते हैं और न ही हरियाणा सरकार के पक्ष में हैं। सुप्रीम कोर्ट के लिए यह सही नहीं होगा कि वह पंजाब एसेंबली को रोकने संबंधी कोई आदेश जारी करे। अगर एसेंबली कोई कानून पास कर देती है तो हरियाणा सरकार उसे चुनौती देने के लिए स्वतंत्र है। उसके बाद कहीं जाकर सुप्रीम कोर्ट कानून की वैलिडिटी को लेकर अपना आदेश जारी कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 17 मार्च तक के लिए टाल दी है।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा और पंजाब सरकार के बीच जल बंटवारा मामले को लेकर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ में हरियाणा सरकार ने दलील दी कि पंजाब सरकार ने एसवाईएल बिल पास कर दिया है। जिसके तहत सरकार किसानों से एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए अधिग्रहित जमीन किसानों को वापस लौटा रही है।
हरियाणा सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि पंजाब सरकार द्वारा उठाया जा रहा यह कदम 2004 प्रेजीडेंशियल रेफरेंस के तहत बनाए गए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 को बेकार कर देगा। जिसके तहत यह तय किया गया था कि पंजाब सरकार हरियाणा से रावी, ब्यास और सतलुज नदी का पानी साझा करेगी। इसके लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना का खाका तैयार किया गया था। जिससे कि पंजाब द्वारा हरियाणा को पानी की जलापूर्ति की जा सके। ऐसे में पंजाब सरकार इस परियोजना से पीछे हटकर अगर किसानों को अधिग्रहित जमीन लौटा देती है तो उनकी यह कार्रवाई संघीय प्रणाली पर प्रहार है और इससे अव्यवस्था कायम हो जाएगी। इस तरह से संवैधानिक ढांचे को नुकसान पहुंचाते हुए किसी को मनमानी नहीं करने दी जा सकती। पंजाब सरकार का यह कदम हरियाणा के साथ हुए जल बंटवारा संधि का भी उल्लंघन है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देते हुए पंजाब सरकार को ऐसा करने से रोकना चाहिए।
वहीं, हरियाणा सरकार की इस दलील पर आपत्ति जताते हुए पंजाब सरकार ने कहा कि वह हरियाणा सरकार की दलीलों से इत्तेफाक नहीं रखते। हरियाणा सरकार की ओर से संघीय ढांचे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सामने गलत तस्वीर पेश की जा रही है। पंजाब सरकार ने जो निर्णय लिया है वो उन किसानों की बेहतरी के लिए लिया है, जिन्होंने अपनी जमीन गंवाई थी और जो भूमिहीन हो गए थे।
उधर, केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह इस मामले को लेकर न तो पंजाब सरकार का पक्ष लेना चाहते हैं और न ही हरियाणा सरकार के पक्ष में हैं। सुप्रीम कोर्ट के लिए यह सही नहीं होगा कि वह पंजाब एसेंबली को रोकने संबंधी कोई आदेश जारी करे। अगर एसेंबली कोई कानून पास कर देती है तो हरियाणा सरकार उसे चुनौती देने के लिए स्वतंत्र है। उसके बाद कहीं जाकर सुप्रीम कोर्ट कानून की वैलिडिटी को लेकर अपना आदेश जारी कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 17 मार्च तक के लिए टाल दी है।
उल्लेखनीय है कि हरियाणा और पंजाब सरकार के बीच जल बंटवारा मामले को लेकर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।
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