लांस नायक हनुमंतप्पा कोप्पड़ की फाइल फोटो
जम्मू:
सियाचिन ग्लेशियर में छह दिन तक 35 फुट बर्फ के नीचे दबे रहे जवान लांस नायक हनुमंतप्पा अब नहीं रहे। आज सुबह करीब 11.45 मिनट पर हनुमंतप्पा ने आखिरी सांस ली। भारतीय सेना के इस बहादुर जवान ने शांति वाले क्षेत्रों की पोस्टिंग के बजाय मुश्किल क्षेत्रों को चुना और संघर्ष के क्षेत्रों में 10 साल तक डटे रहे।
13 साल की कुल सेवा में से 10 साल मुश्किल और चुनौतीपूर्ण जगहों में सेवा दी है
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'बहादुर सैनिक ने उच्च स्तर की पहल दिखाई और अपनी 13 साल की कुल सेवा में से 10 साल मुश्किल और चुनौतीपूर्ण जगहों में सेवा दी है।' इस बार भी हनुमंतप्पा मुश्किलों से भरे सियाचिन में तैनात थे। पाकिस्तान के साथ लगी नियंत्रण रेखा के करीब 19 हजार 600 फुट की ऊंचाई पर हिमस्खलन ने उनकी चौकी को अपनी जद में लिया। उस ऊंचाई पर तापमान शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस कम था।
मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में शामिल हुए थे
अधिकारी ने कहा, '33 वर्षीय हनुमंतप्पा 25 अक्तूबर 2002 को मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में शामिल हुए थे और बेहद प्रेरित और शारीरिक रूप से तंदरूस्त थे। उन्होंने शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों को चुना।' उन्होंने कहा, 'सैनिक ने महोर (जम्मू कश्मीर) में 2003 से 2006 के बीच काम किया, जहां वह आतंकवाद निरोधी अभियान में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्होंने एक बार फिर 2008 से 2010 के बीच स्वेच्छा से 54वीं राष्ट्रीय राइफल्स में सेवा देने की बात कही, जहां उन्होंने आतंकवाद से लड़ने में अदम्य साहस और वीरता दिखाई।' इसके बाद साल 2010 से 2012 के बीच उन्होंने पूर्वोत्तर में स्वेच्छा से सेवा दी, जहां वह नेशनल डेमोक्रेटिक फंट्र ऑफ बोडोलैंड और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के खिलाफ सफल अभियानों में सक्रियता से हिस्सा लिया।
अगस्त 2015 से सियाचिन ग्लेशियर में सेवा दे रहे थे
अधिकारी ने बताया कि वह अगस्त 2015 से सियाचिन ग्लेशियर के बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेवा दे रहे थे और दिसंबर 2015 से 19, 600 फुट की ऊंचाई पर सर्वाधिक ऊंची चौकियों में से एक पर अपनी तैनाती को चुना। उन्होंने कहा, 'एक इंसान के रूप में हनुमंतप्पा हमेशा मुस्कुराते रहने वाले व्यक्ति थे। उनके अपने साथियों और कनिष्ठों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते थे।'
13 साल की कुल सेवा में से 10 साल मुश्किल और चुनौतीपूर्ण जगहों में सेवा दी है
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'बहादुर सैनिक ने उच्च स्तर की पहल दिखाई और अपनी 13 साल की कुल सेवा में से 10 साल मुश्किल और चुनौतीपूर्ण जगहों में सेवा दी है।' इस बार भी हनुमंतप्पा मुश्किलों से भरे सियाचिन में तैनात थे। पाकिस्तान के साथ लगी नियंत्रण रेखा के करीब 19 हजार 600 फुट की ऊंचाई पर हिमस्खलन ने उनकी चौकी को अपनी जद में लिया। उस ऊंचाई पर तापमान शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस कम था।
मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में शामिल हुए थे
अधिकारी ने कहा, '33 वर्षीय हनुमंतप्पा 25 अक्तूबर 2002 को मद्रास रेजीमेंट की 19वीं बटालियन में शामिल हुए थे और बेहद प्रेरित और शारीरिक रूप से तंदरूस्त थे। उन्होंने शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों को चुना।' उन्होंने कहा, 'सैनिक ने महोर (जम्मू कश्मीर) में 2003 से 2006 के बीच काम किया, जहां वह आतंकवाद निरोधी अभियान में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्होंने एक बार फिर 2008 से 2010 के बीच स्वेच्छा से 54वीं राष्ट्रीय राइफल्स में सेवा देने की बात कही, जहां उन्होंने आतंकवाद से लड़ने में अदम्य साहस और वीरता दिखाई।' इसके बाद साल 2010 से 2012 के बीच उन्होंने पूर्वोत्तर में स्वेच्छा से सेवा दी, जहां वह नेशनल डेमोक्रेटिक फंट्र ऑफ बोडोलैंड और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम के खिलाफ सफल अभियानों में सक्रियता से हिस्सा लिया।
अगस्त 2015 से सियाचिन ग्लेशियर में सेवा दे रहे थे
अधिकारी ने बताया कि वह अगस्त 2015 से सियाचिन ग्लेशियर के बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेवा दे रहे थे और दिसंबर 2015 से 19, 600 फुट की ऊंचाई पर सर्वाधिक ऊंची चौकियों में से एक पर अपनी तैनाती को चुना। उन्होंने कहा, 'एक इंसान के रूप में हनुमंतप्पा हमेशा मुस्कुराते रहने वाले व्यक्ति थे। उनके अपने साथियों और कनिष्ठों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते थे।'
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