
मनोहर लाल खट्टर (फाइल फोटो)
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उन्होंने कहा, ''खामियों की पहचान की गई है और उपयुक्त कदम उठाए जा रहे हैं. इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए थी.'' हालांकि मुख्यमंत्री खट्टर ने पत्रकारों के इस प्रश्न का सीधा जवाब नहीं दिया कि जब पहले से ही कोर्ट के फैसले की तारीख पता थी और पुख्ता पुलिसिया इंतजाम की बात सरकार की तरफ से कही जा रही थी तो उन हालात में तकरीबन डेढ़ लाख डेरा समर्थकों को पंचकूला और सिरसा जैसे शहरों में घुसने की इजाजत क्यों दी गई? यहीं से सवाल उठता है कि जब डेरा समर्थक अपने मुखिया के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए एकत्र हो रहे थे तो खट्टर सरकार क्या कर रही थी? सवाल यह भी उठता है कि क्या इन हालात को टाला जा सकता था?
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दरअसल डेरा सच्चा सौदा मामले के अलावा हालिया वर्षों के जाट आरक्षण या संत रामपाल के मामलों पर गौर करें तो इनमें एक बात समान दिखती है कि इनमें सरकार ने भीड़ को एकत्र होने से रोकने के लिए खास इंतजाम नहीं किए.
हाई कोर्ट के सवाल
जब डेरा प्रमुख का केस हाई कोर्ट में पहुंचा था तो एक वकील ने याचिका डाली थी कि सरकार पंचकूला में व्यवस्था बनाने में नाकाम रही है. हजारों लोग एकत्र हो गए हैं और लोगों में असुरक्षा का भाव है. इस याचिका पर सरकार से कोर्ट ने पूछा कि आपके क्या इंतजाम हैं? इस पर सरकार ने कहा कि हमने सेक्शन 144 का ऑर्डर देकर निषेधाज्ञा लागू कर दी है. जब उसे पढ़ा गया तो उसमें लिखा था कि शस्त्र ले जाने पर पाबंदी है, लोगों के जाने पर पाबंदी नहीं है.
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इस पर चीफ जस्टिस की बेंच ने जब सरकार से पूछा तो जवाब दिया गया कि यह 'क्लैरिकल मिस्टेक' है. इस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार और डेरा के बीच मिलीभगत है. शुक्रवार को भी हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि यदि जरूरत पड़े तो सरकार 'बल' प्रयोग का इस्तेमाल करे. कोर्ट की इन टिप्पणियों से ही स्पष्ट होता है कि सरकार से जो अपेक्षा कोर्ट द्वारा की जा रही थी, उसको पूरा करने में सरकार से कहीं न कहीं चूक हुई?
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