अहमदाबाद:
हाल ही में गुजरात हाइकोर्ट के दो जजों जस्टिस एम.आर. शाह और के.एस. झवेरी ने नरोडा पाटिया कांड की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। उन्होंने इस मामले में कहा कि आरोपी पक्ष के द्वारा उन्हें एप्रोच करने की कोशिश की गई थी।
इस घटना ने दंगा पीड़ितों को हैरान कर दिया है कि जब से इस मामले में फैसला आया है तब से न्यायपालिका के साथ कहीं न कहीं अड़चन पैदा करने की कोशिश हो रही है।
दंगा पीड़ितों के वकील शमशाद पठान का कहना है कि अब पीड़ित ये तैयारी कर रहे हैं कि जजों से गुज़ारिश की जाय कि जिन्होंने उनसे मिलने की कोशिश की थी, उनके नाम पता कर जांच की जाए।
नरोडा पाटिया गुजरात दंगों का सबसे दर्दनाक हत्याकांड था, जिसमें करीब 100 लोगों की हत्या कर दी गई थी, ज़्यादातर लोग ज़िंदा जला दिए गए थे। इस मामले में 61 आरोपी थे, जिसमें से 32 को सज़ा हुई थी और अन्य निर्दोष करार दिए गए थे। जिन्हें सज़ा हुई थी उनमें बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी भी थे।
इस मामले का जजमेंट दिया था तत्कालीन सेशन्स जज ज्योत्सना याग्निक ने। ज्योत्सना याग्निक को अति संवेदनशील मामला होने की वजह से जेड केटेगरी की सुरक्षा प्रदान की गई थी। लेकिन 2014 में रिटायर होने के बाद 1 सितम्बर 2014 को उनकी सुरक्षा घटाकर वाय केटेगरी कर दी गई। बस तभी से उनकी परेशानियां शुरू हो गईं।
देर रात उन्हें मिस्ड कॉल्स आने लगे, उन्हें चिट्ठियां लिखकर धमकियां दी जाने लगीं। उन्होंने इसकी शिकायत भी कि लेकिन अब तक इस मामले में पुलिस बदमाशों तक नहीं पहुंच पाई है।
लेकिन मानव अधिकार कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर चर्चा तेज़ है कि जब विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं जैसे प्रवीण तोगडिया, दिलीप त्रिवेदी और स्वामी अखिलेश्वर दास जैसे लोगों को भारी सुरक्षा दी जाती है ऐसे में जजों की सुरक्षा में कमी सवाल पैदा करते हैं।
दंगा पीड़ितों का ये भी कहना है कि ऐसे मामलों में दोषियों तक पुलिस पहुंचे तो पीड़ितों का न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा।
इस घटना ने दंगा पीड़ितों को हैरान कर दिया है कि जब से इस मामले में फैसला आया है तब से न्यायपालिका के साथ कहीं न कहीं अड़चन पैदा करने की कोशिश हो रही है।
दंगा पीड़ितों के वकील शमशाद पठान का कहना है कि अब पीड़ित ये तैयारी कर रहे हैं कि जजों से गुज़ारिश की जाय कि जिन्होंने उनसे मिलने की कोशिश की थी, उनके नाम पता कर जांच की जाए।
नरोडा पाटिया गुजरात दंगों का सबसे दर्दनाक हत्याकांड था, जिसमें करीब 100 लोगों की हत्या कर दी गई थी, ज़्यादातर लोग ज़िंदा जला दिए गए थे। इस मामले में 61 आरोपी थे, जिसमें से 32 को सज़ा हुई थी और अन्य निर्दोष करार दिए गए थे। जिन्हें सज़ा हुई थी उनमें बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी भी थे।
इस मामले का जजमेंट दिया था तत्कालीन सेशन्स जज ज्योत्सना याग्निक ने। ज्योत्सना याग्निक को अति संवेदनशील मामला होने की वजह से जेड केटेगरी की सुरक्षा प्रदान की गई थी। लेकिन 2014 में रिटायर होने के बाद 1 सितम्बर 2014 को उनकी सुरक्षा घटाकर वाय केटेगरी कर दी गई। बस तभी से उनकी परेशानियां शुरू हो गईं।
देर रात उन्हें मिस्ड कॉल्स आने लगे, उन्हें चिट्ठियां लिखकर धमकियां दी जाने लगीं। उन्होंने इसकी शिकायत भी कि लेकिन अब तक इस मामले में पुलिस बदमाशों तक नहीं पहुंच पाई है।
लेकिन मानव अधिकार कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर चर्चा तेज़ है कि जब विश्व हिन्दू परिषद के नेताओं जैसे प्रवीण तोगडिया, दिलीप त्रिवेदी और स्वामी अखिलेश्वर दास जैसे लोगों को भारी सुरक्षा दी जाती है ऐसे में जजों की सुरक्षा में कमी सवाल पैदा करते हैं।
दंगा पीड़ितों का ये भी कहना है कि ऐसे मामलों में दोषियों तक पुलिस पहुंचे तो पीड़ितों का न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा।
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