जयपुर:
राजस्थान में गुर्जरों का आंदोलन ख़त्म हो गया है। सरकार ने कानून बनाकर उन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग के तौर पर 5 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया है। इसके लिए राज्य विधानसभा में बिल पास करके केंद्र के पास भेजा जाएगा और इसे नौवीं अनुसूची में डाला जाएगा। इसके बाद ये अदालतों की समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाएगा। केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों की बातचीत के बाद ये फ़ैसला हुआ।
इस बार आठ दिन चले इस आंदोलन का सबसे बुरा असर ट्रेनों पर पड़ा। माना जा रहा है कि इस एक हफ़्ते में हुआ नुकसान 200 करोड़ रुपये से ऊपर का है।
इतिहास के आईने में गुर्जर आंदोलन
वैसे पिछले एक दशक में याद करें तो लगभग हर साल गुर्जरों का आंदोलन एक बार ज़रूर होता है। आरक्षण की व्यवस्था ने भारतीय राजनीति और समाज को जिस तरह बदला है, उसे देखते हुए ही गुर्जर भी अपने लिए अलग से आरक्षण चाहते रहे हैं। सरकारों ने कानून पास किए, लेकिन अदालतों में वो टिक नहीं पाए। एक नज़र इस उलझे हुए इतिहास पर।
साल 2006 में भी गुर्जर आंदोलन सुर्खियों में रहा था। 2007 में भी चले आंदोलन में 23 मार्च को पुलिस कार्रवाई में 26 लोग मारे गए थे। 2008 में भी ये आंदोलन फिर से चल पड़ा। दौसा से भरतपुर तक पटरियों और सड़कों पर बैठे गुर्जरों ने रास्ता रोके रखा। पुलिस की कार्रवाई में उन दिनों 38 लोग मारे गए।
दरअसल हर दो-एक साल पर राजस्थान के कुछ इलाकों से गुर्जर आंदोलन की ख़बर आती है और दिल्ली मुंबई का रास्ता रुक जाता है। सवाल है, क्या चाहते हैं ये गुर्जर और क्या है इनका आंदोलन।
- देश भर में उत्तर-पश्चिमी भारत के कई राज्यों में गुर्जर समुदाय के क़रीब साढ़े पांच करोड़ लोग हैं।
- इनमें 11 फ़ीसदी, यानी क़रीब 6 लाख लोग राजस्थान में हैं।
- जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में इन्हें अनुसूचित जनजाति, यानी आदिवासियों का दर्जा हासिल है।
- जबकि राजस्थान में वो ओबीसी में आते हैं और इस तौर पर उन्हें आरक्षण के फ़ायदे मिलते हैं।
लेकिन गुर्जर समुदाय को लगता रहा है कि उन तक पिछड़ा वर्ग के लाभ पहुंच नहीं पा रहे। उनकी मांग है कि उन्हें आदिवासियों में शामिल किया जाए। हालांकि इस मांग के ख़िलाफ़ राज्य का मीणा समुदाय भी आंदोलन कर चुका है जिसे लगता है कि अगर गुर्जरों को आदिवासी मान लिया गया तो उनके हक़ मारे जाएंगे।
सरकारें गुर्जरों की मांग मानती रही हैं लेकिन अदालतों से फ़ैसले ख़ारिज होते रहे हैं।
- 2003 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने गुर्जरों को एसटी स्टेटस देने का वादा किया।
- 2008 में वसुंधरा सरकार ने गुर्जरों को विशेष पिछड़ा वर्ग का दर्जा देते हुए 5 फ़ीसदी आरक्षण देने की घोषणा की। साथ ही 14 फ़ीसदी आरक्षण आर्थिक तौर पर कमज़ोर लोगों के लिए घोषित किया।
- लेकिन राजस्थान हाइकोर्ट ने अंतरिम आदेश में इसे रद्द कर दिया, ये कहते हुए कि इससे कुल आरक्षण 68 फ़ीसदी हो जाता है जो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ है।
- 2012 में राज्य सरकार ने गुर्जरों सहित पांच जातियों को 5 फीसदी का रिज़र्वेशन देने की बात की।
- लेकिन 2013 में हाइकोर्ट ने इसे भी ये कहते हुए खारिज कर दिया कि फिर आरक्षण 54 फ़ीसदी हो जाता है।
अब गुर्जर नेताओं का कहना है, अब आदिवासी दर्जा भले न मिले, उन्हें पचास फ़ीसदी की तय सीमा के भीतर ही पांच फ़ीसदी आरक्षण चाहिए। उनकी शिकायत ये भी है कि सरकार जाटों पर तो मेहरबान है, उन पर नहीं।
इस बार आठ दिन चले इस आंदोलन का सबसे बुरा असर ट्रेनों पर पड़ा। माना जा रहा है कि इस एक हफ़्ते में हुआ नुकसान 200 करोड़ रुपये से ऊपर का है।
इतिहास के आईने में गुर्जर आंदोलन
वैसे पिछले एक दशक में याद करें तो लगभग हर साल गुर्जरों का आंदोलन एक बार ज़रूर होता है। आरक्षण की व्यवस्था ने भारतीय राजनीति और समाज को जिस तरह बदला है, उसे देखते हुए ही गुर्जर भी अपने लिए अलग से आरक्षण चाहते रहे हैं। सरकारों ने कानून पास किए, लेकिन अदालतों में वो टिक नहीं पाए। एक नज़र इस उलझे हुए इतिहास पर।
साल 2006 में भी गुर्जर आंदोलन सुर्खियों में रहा था। 2007 में भी चले आंदोलन में 23 मार्च को पुलिस कार्रवाई में 26 लोग मारे गए थे। 2008 में भी ये आंदोलन फिर से चल पड़ा। दौसा से भरतपुर तक पटरियों और सड़कों पर बैठे गुर्जरों ने रास्ता रोके रखा। पुलिस की कार्रवाई में उन दिनों 38 लोग मारे गए।
दरअसल हर दो-एक साल पर राजस्थान के कुछ इलाकों से गुर्जर आंदोलन की ख़बर आती है और दिल्ली मुंबई का रास्ता रुक जाता है। सवाल है, क्या चाहते हैं ये गुर्जर और क्या है इनका आंदोलन।
- देश भर में उत्तर-पश्चिमी भारत के कई राज्यों में गुर्जर समुदाय के क़रीब साढ़े पांच करोड़ लोग हैं।
- इनमें 11 फ़ीसदी, यानी क़रीब 6 लाख लोग राजस्थान में हैं।
- जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में इन्हें अनुसूचित जनजाति, यानी आदिवासियों का दर्जा हासिल है।
- जबकि राजस्थान में वो ओबीसी में आते हैं और इस तौर पर उन्हें आरक्षण के फ़ायदे मिलते हैं।
लेकिन गुर्जर समुदाय को लगता रहा है कि उन तक पिछड़ा वर्ग के लाभ पहुंच नहीं पा रहे। उनकी मांग है कि उन्हें आदिवासियों में शामिल किया जाए। हालांकि इस मांग के ख़िलाफ़ राज्य का मीणा समुदाय भी आंदोलन कर चुका है जिसे लगता है कि अगर गुर्जरों को आदिवासी मान लिया गया तो उनके हक़ मारे जाएंगे।
सरकारें गुर्जरों की मांग मानती रही हैं लेकिन अदालतों से फ़ैसले ख़ारिज होते रहे हैं।
- 2003 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने गुर्जरों को एसटी स्टेटस देने का वादा किया।
- 2008 में वसुंधरा सरकार ने गुर्जरों को विशेष पिछड़ा वर्ग का दर्जा देते हुए 5 फ़ीसदी आरक्षण देने की घोषणा की। साथ ही 14 फ़ीसदी आरक्षण आर्थिक तौर पर कमज़ोर लोगों के लिए घोषित किया।
- लेकिन राजस्थान हाइकोर्ट ने अंतरिम आदेश में इसे रद्द कर दिया, ये कहते हुए कि इससे कुल आरक्षण 68 फ़ीसदी हो जाता है जो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ है।
- 2012 में राज्य सरकार ने गुर्जरों सहित पांच जातियों को 5 फीसदी का रिज़र्वेशन देने की बात की।
- लेकिन 2013 में हाइकोर्ट ने इसे भी ये कहते हुए खारिज कर दिया कि फिर आरक्षण 54 फ़ीसदी हो जाता है।
अब गुर्जर नेताओं का कहना है, अब आदिवासी दर्जा भले न मिले, उन्हें पचास फ़ीसदी की तय सीमा के भीतर ही पांच फ़ीसदी आरक्षण चाहिए। उनकी शिकायत ये भी है कि सरकार जाटों पर तो मेहरबान है, उन पर नहीं।
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