गुजरात उच्च न्यायालय (Gujarat High Court) ने निर्देश दिए हैं कि रेलवे अधिकारी प्रवासी मजदूरों की ट्रेन यात्रा के लिए एक तरफ का किराया माफ करें या राज्य सरकार को वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में इसका खर्च उठाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि लॉकडाउन के कारण फंसे प्रवासी मजदूरों के निशुल्क परिवहन के लिए अदालत के निर्देश देने संबंधी आग्रह वाली जनहित याचिका पर सरकार का जवाब दिखाता है कि रेलवे अधिकारियों की ओर से लगाया गया किराया कुछ मेजबान राज्यों, गैर सरकारी संगठनों, नियोक्ताओं, स्वैच्छिक संगठनों की ओर से उठाया जा रहा है, और ‘ऐसा नहीं किया गया है.'
जस्टिस जी बी पारदीवाला और जस्टिस आई जे वोरा की बेंच ने शुक्रवार को कहा, ‘हम रेलवे अधिकारियों को निर्देश देते हैं कि वे इन प्रवासी मजदूरों के एक तरफ का किराया माफ करें या विकल्प के रूप में राज्य सरकार इस तरह के किराए का खर्च उठाए.'
राज्य सरकार ने एक लिखित जवाब में कहा था कि गुजरात में 22.5 लाख प्रवासी मजदूरों में से केवल 7,512 अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड हैं और इसके तहत वे यात्रा भत्ता पाने के योग्य हैं.
कोर्ट ने एक आदेश में कहा, ‘राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रवासी मजदूरों को अपने गृहराज्यों की यात्रा करने के लिए और कठिनाइयों का सामना न करना पड़े. इस संबंध में काम सही दिशा में जारी रहना चाहिए.'
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि राज्य के श्रम विभाग के आंकड़े के अनुसार गुजरात में लगभग 22.5 लाख अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक रहते हैं. लेकिन अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम के तहत केवल 7,512 श्रमिक ही इसके तहत रजिस्टर्ड हैं.
गुजरात सरकार ने दावा किया, ‘किसी भी प्रवासी मजदूर को किराया न चुकाने के कारण अपने गृह नगर की यात्रा करने से इनकार नहीं किया जा रहा है.'
कोरोनावायरस से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद अब तक 11 लाख से अधिक प्रवासी मजदूर गुजरात से श्रमिक विशेष ट्रेनों से अपने गृह राज्यों की ओर रवाना हुए है.
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