गुजरात सरकार अब दलितों के साथ अन्य समाजों की गोलबंदी से चिंतित

गुजरात सरकार अब दलितों के साथ अन्य समाजों की गोलबंदी से चिंतित

दलित अस्मिता यात्रा का दृश्य.

खास बातें

  • जातिगत समीकरण साधने के लिए बनाए जा रहे संसदीय सचिव
  • तीन दिनों में की गईं 11 नियुक्तियां
  • मुस्लिम समुदाय भी दलितों के साथ
अहमदाबाद:

गुजरात सरकार ने शुक्रवार को तीन नए संसदीय सचिवों की नियुक्ति की. कोली समुदाय से हीरा सोलंकी, दलित समुदाय से पूनम मकवाणा और सूरत के शहरी इलाके से पूर्णेश मोदी. मौजूदा सरकार ने अभी दो दिन पहले ही गुजरात में आठ संसदीय सचिव बनाए थे. लेकिन इस पर अंदरूनी तौर पर विरोध के सुर सुनाई देने लगे थे. आखिर आंदोलन करने वाले पटेल समुदाय को उप मुख्यमंत्री के पद के अलावा राज्य पार्टी अध्यक्ष का पद भी मिला था.

राष्ट्रीय स्तर पर एक ही परिवार के दो लोगों को पद न देने की दुहाई देने वाली भाजपा ने गुजरात में पुरुषोत्तम सोलंकी को राज्यमंत्री बनाया था तो उनके भाई हीरा सोलंकी को अब संसदीय सचिव का पद भी मिल गया है. कोशिश राज्य में सबसे बड़े मतदाता समूह कोली को नाराजगी से बचाने की है.

विकास की राजनीति की दुहाई देने वाली भाजपा ने 25 मंत्रियों के बावजूद 11 संसदीय सचिवों बनाए हैं. इसे जातिगत समीकरण बिठाने के गणित के तौर पर देखा जा रहा है. यह इसलिए क्योंकि गुजरात में सिर्फ दलित ही नहीं, अन्य समाजों के भी दलितों से जुड़ने के कारण सरकार के खिलाफ एक मोर्चा बनता दिख रहा है.

अहमदाबाद से ऊना की दलित अस्मिता यात्रा के पहले दिन ही इसमें दलितों के साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम भी दिखे थे. दलित आंदोलन के अगुवा जिग्नेश मेवाणी ने साफ कर दिया कि दलित अस्मिता के साथ ही वे पूरे हिन्दुत्व और जातिवाद के खिलाफ संदेश लेकर चल रहे हैं. उन्होंने कहा था कि पूरा भारत वर्ष आज कॉर्पोरेट ग्रुपों की पकड़ में है. हिन्दुत्ववादी, मनुवादी और जातिवादी शक्तियों की गिरफ्त में है. उससे निजात पाने के लिए हम लोग यह सवाल खड़ा करेंगे कि आजादी के इतने सालों के बाद संविधान के मूल्यों का क्या हुआ? इस गुजरात मॉडल में दलितों और वंचितों का क्या हुआ, यह सवाल हम पूरे देश के सामने रखना चाहते हैं.

पटेल आरक्षण आंदोलन को लेकर गुजरात सरकार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले हार्दिक पटेल ने भी दलितों के समर्थन का ऐलान कर दिया है. इसीलिए कई जगह हार्दिक पटेल से जुड़े पटेल नेताओं ने भी दलित यात्रा का स्वागत किया. साल 1985 में आरक्षण विरोध दंगों में जातिगत दंगे भी हुए थे जो बाद में साम्प्रदायिक हो गए थे. ऐसा दोबारा न हो इसे रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय पहले से दलितों के सभी आंदोलनों में जुड़ रहा है और समर्थन की घोषणा हो रहा है. मुस्लिम वकील शमशाद पठान ने दलित महासम्मेलन में ही घोषणा कर दी थी कि पूरे हिन्दुस्तान के मुसलमान हमेशा दलितों के साथ खड़े हैं और आगे भी दलितों के साथ खड़े रहेंगे.

विरोधियों के बढ़ रहे इस कुनबे से मौजूदा भाजपा सरकार थोड़ी सकपकाई जरूर है. इसीलिए दो दिनों के भीतर ही जातिगत समीकरण ने उसे 11 संसदीय सचिव बनाने के लिए मजबूर कर दिया. ऐसे में पिछले 16 सालों में पहली बार भाजपा पर जातिगत समीकरण का दबाव हावी होता दिख रहा है और प्रदेश नेतृत्व कमजोर.


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