अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई में नया पेंच आ गया है। अब सूत्रों से ख़बर आ रही है कि मसर्रत की रिहाई का फ़ैसला, मुफ़्ती मोहम्मद सईद के मुख्यमंत्री बनने से पहले ही ले लिया गया था।
एनडीटीवी को सूत्रों ने बताया कि मसर्रत के खिलाफ नया आरोप पत्र दायर ना करने का फैसाल मुफ्ती मोहम्मद सईद के सीएम बनने से पहले 49 दिनों के राज्यपाल शासन के दौरान ही ले लिया गया था।
सूत्रों की मानें तो, राज्य के गृह सचिव सुरेश कुमार ने जम्मू के डीएम को चिट्ठी लिख कर कहा कि सितंबर 2014 में पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत मसर्रत को हिरासत में लेने का फैसला निरस्त हो चुका है।
उन्होंने बताया कि पीएसए के तहत आदेश जारी होने के 12 दिनों के अंदर इसकी पुष्टि जरूर होती है, लेकिन राज्य गृह विभाग ने ऐसा नहीं किया, जिसकी वजह से यह निरस्त हो गया।
उन्होंने बताया कि डीएम से जब पूछा गया कि क्या मसर्रत को हिरासत में रखने का कोई नया आधार है। इस पर डीएम की ओर से मना किए जाने के बाद उसके खिलाफ मामले को बंद कर दिया गया।
गौरतलब है कि मसर्रत की रिहाई की वजह से राज्य में पीडीपी-बीजेपी की गठबंधन सरकार मुशकिल में पड़ती दिख रही है।
मर्सरत वही मुस्लिम लीग के प्रमुख हैं, जिन पर आरोप है कि उन्होंने 2010 में कश्मीर में भारत विरोधी हिंसा फैलाई। पत्थरबाजी की इन घटनाओं मे 112 लोगों की मौत हुई थी।
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