केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह (फाइल तस्वीर)
नई दिल्ली:
गृहमंत्री राजनाथ सिंह कहने को तो सरकार में नंबर दो का ओहदा रखते हैं, लेकिन हाल फिलहाल में जितने भी अहम फैसले सरकार ने उनके मंत्रालय से मुतालिक लिए हैं उनमें उनकी एक नहीं चली है। नॉर्थ ब्लॉक में जहां गृह मंत्रालय है, वहीं कई अफसर इस बात की तस्दीक करते हैं।
सबसे ताजा मिसाल है गृह सचिव एलसी गोयल की। अफसरों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से फैसला लिया और वित्त मंत्रालय से एक सचिव को लाकर गृह सचिव बना दिया, उसमें राजनाथ सिंह से पूछा तक नहीं गया। अब राजनाथ सिंह खफा बताए जा रहे हैं।
जब नए गृह सचिव राजीव महर्षि ने आकर अपना कार्यभार संभाला तब गृहमंत्री अपने दफ्तर से नदारद थे। वैसे जब भी कोई बड़ी घटना या फैसला लिया जाता है उस वक़्त गृहमंत्री नदारद पाए जाते हैं।
अब आप भारत और पाकिस्तान के बीच नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के बीच बातचीत को ही ले लीजिए, पूरा का पूरा जिम्मा एनएसए ने उठाया हुआ था, जो भी डोजियर तैयार किए जा रहे थे, बेशक से उसमें गृह मंत्रालय और आईबी के अफसर शामिल थे, लेकिन बात सिर्फ डोभाल की हो रही थी। बातचीत होगी या नहीं होगी ये तय नहीं हुआ था, लेकिन गृहमंत्री अपने इलाके के दौरे के लिए चले गए थे।
जब बातचीत कैंसिल हुई तब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आकर बात संभाली। इस पूरे विवाद में गृहमंत्री कहीं न दिखे, न सुनाई पड़े जबकि बातचीत से जुड़ा हर काम गृह मंत्रालय ने किया था। चाहे वह आतंक से जुड़ा मसला हो, दाऊद इब्राहिम से जुड़ा या फिर बॉर्डर फायरिंग से, लेकिन पूरे मामले में गृहमंत्रालय को साइड लाइन किया गया।
जब नगा एकॉर्ड हुआ, तब भी गृह मंत्रालय को पीएमओ ने पूरे मामले से दूर रखा जबकि गृह मंत्रालय में एक नॉर्थ ईस्ट डेस्क है। खुद गृह राज्यमंत्री ने जिस दिन एकॉर्ड पर दस्तखत हुए उस दिन अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस ख़ारिज कर दी क्योंकि उन्हें मालूम था लोग सिर्फ एकॉर्ड के बारे में पूछेंगे और एकॉर्ड के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था।
गृह मंत्रालय के गलियारे वैसे भी इस बात से गर्म हैं कि ज्यादातर अफसरों की नियुक्तियां पीएमओ करता है सिर्फ आर्डर की कॉपी गृह मंत्रालय को भेज दी जाती है। वैसे इस बात पर भी बहस अफसरों में आम होती जा रही है कि गृहमंत्री काम काज में ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं उनका सारा ध्यान पार्टी में लगा रहता है।
कभी हर छोटे बड़े फैसले इस मंत्रालय से या तो होते थे या कहीं न कहीं उन फैसलों में मंत्रालय का रोल होता था। अब दोनों नहीं है। एक के बाद एक विवाद गृह मंत्रालय से जुड़ रहा है और ऐसा आरोप लग रहा है कि देश के गृहमंत्री उनमें से किसी एक विवाद को भी सुलझा नहीं पा रहे हैं और न ही मंत्रालय ठीक ढंग से चला पा रहे हैं।
उधर, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपनी पोजीशन पार्टी में ऐसी कर ली है कि जब कोई समस्या होती है तो उन्हें सरकार आगे करती है जबकि सरकार के नंबर दो के नेता हमेशा मुसीबत के समय गायब रहते हैं।
सबसे ताजा मिसाल है गृह सचिव एलसी गोयल की। अफसरों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से फैसला लिया और वित्त मंत्रालय से एक सचिव को लाकर गृह सचिव बना दिया, उसमें राजनाथ सिंह से पूछा तक नहीं गया। अब राजनाथ सिंह खफा बताए जा रहे हैं।
जब नए गृह सचिव राजीव महर्षि ने आकर अपना कार्यभार संभाला तब गृहमंत्री अपने दफ्तर से नदारद थे। वैसे जब भी कोई बड़ी घटना या फैसला लिया जाता है उस वक़्त गृहमंत्री नदारद पाए जाते हैं।
अब आप भारत और पाकिस्तान के बीच नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के बीच बातचीत को ही ले लीजिए, पूरा का पूरा जिम्मा एनएसए ने उठाया हुआ था, जो भी डोजियर तैयार किए जा रहे थे, बेशक से उसमें गृह मंत्रालय और आईबी के अफसर शामिल थे, लेकिन बात सिर्फ डोभाल की हो रही थी। बातचीत होगी या नहीं होगी ये तय नहीं हुआ था, लेकिन गृहमंत्री अपने इलाके के दौरे के लिए चले गए थे।
जब बातचीत कैंसिल हुई तब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आकर बात संभाली। इस पूरे विवाद में गृहमंत्री कहीं न दिखे, न सुनाई पड़े जबकि बातचीत से जुड़ा हर काम गृह मंत्रालय ने किया था। चाहे वह आतंक से जुड़ा मसला हो, दाऊद इब्राहिम से जुड़ा या फिर बॉर्डर फायरिंग से, लेकिन पूरे मामले में गृहमंत्रालय को साइड लाइन किया गया।
जब नगा एकॉर्ड हुआ, तब भी गृह मंत्रालय को पीएमओ ने पूरे मामले से दूर रखा जबकि गृह मंत्रालय में एक नॉर्थ ईस्ट डेस्क है। खुद गृह राज्यमंत्री ने जिस दिन एकॉर्ड पर दस्तखत हुए उस दिन अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस ख़ारिज कर दी क्योंकि उन्हें मालूम था लोग सिर्फ एकॉर्ड के बारे में पूछेंगे और एकॉर्ड के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था।
गृह मंत्रालय के गलियारे वैसे भी इस बात से गर्म हैं कि ज्यादातर अफसरों की नियुक्तियां पीएमओ करता है सिर्फ आर्डर की कॉपी गृह मंत्रालय को भेज दी जाती है। वैसे इस बात पर भी बहस अफसरों में आम होती जा रही है कि गृहमंत्री काम काज में ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं उनका सारा ध्यान पार्टी में लगा रहता है।
कभी हर छोटे बड़े फैसले इस मंत्रालय से या तो होते थे या कहीं न कहीं उन फैसलों में मंत्रालय का रोल होता था। अब दोनों नहीं है। एक के बाद एक विवाद गृह मंत्रालय से जुड़ रहा है और ऐसा आरोप लग रहा है कि देश के गृहमंत्री उनमें से किसी एक विवाद को भी सुलझा नहीं पा रहे हैं और न ही मंत्रालय ठीक ढंग से चला पा रहे हैं।
उधर, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपनी पोजीशन पार्टी में ऐसी कर ली है कि जब कोई समस्या होती है तो उन्हें सरकार आगे करती है जबकि सरकार के नंबर दो के नेता हमेशा मुसीबत के समय गायब रहते हैं।
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