प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
राफेल समझौते को लेकर कांग्रेस लगातार सवाल खड़े कर रही है. रक्षा मंत्रालय ने बुधवार को इस बारे में एक बयान भी जारी किया. हालांकि लोकसभा में राफेल सौदे की जानकारी को लेकर सरकार अपना रुख बदलती रही है. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया था.
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गुरुवार को उनके मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि संसद को राफेल के बारे में जानकारी दी जा चुकी है, जबकि सोमवार को निर्मला सीतारमण ने ही कहा कि सौदे की शर्तों के लिहाज से ये गोपनीय मामला है. अब लोकसभा के कुछ दस्तावेज़ देखें. 18 नवंबर 2016 को कई सांसदों के सवाल का जवाब देते हुए रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भांबरे ने कहा कि फ्रांस से 36 राफेल विमानों का समझौता हुआ है. एक विमान 670 करोड़ रुपये का पड़ेगा. 2022 तक ये विमान भारत को मिल जाएंगे. हालांकि इस सोमवार, यानी 5 फ़रवरी को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में ऐसे ही सवाल का कुछ और जवाब दिया.
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उनसे पूछा गया था कि क्या फ्रांस के साथ हुए राफेल सौदे की शर्तों को सरकार सार्वजनिक नहीं करना चाहती है? अगर हां, तो क्यों? अगर नहीं, तो इस सौदे के महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं और क्या रक्षा क्षेत्र में अनुभवहीन किसी पार्टी को समझौते में शमिल किया गया है? तब रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत और फ्रांस के बीच राफेल खरीद को लेकर हुए अंतर सरकारी समझौते के अनुच्छेद 10 के मुताबिक सूचनाओं और सामग्री का लेनदेन गोपनीयता की शर्तों से बंधा है.
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23 सितंबर 2016 को 36 विमानों की सीधी ख़रीद के समझौते पर दस्तख़त हुए. किसी भी निजी या सरकारी उद्योग को इसमें शामिल नहीं किया गया है. यानी ये सौदा गोपनीयता के नियमों के तहत आता है और इसे उजागर नहीं किया जा सकता. यूपीए सरकार इसी आधार पर पहले भी ऐसे समझौतों को गोपनीय रखती रही हैं. लेकिन बुधवार को ही रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि संसद में राफेल की जानकारी दी जा चुकी है.
VIDEO : 2019 में वायुसेना को मिलने लगेंगे राफेल विमान
सवाल यह है कि पहले दी जा चुकी जानकारी को अब फिर से बताने से रक्षा मंत्री क्यों बच रही हैं और क्यों गोपनीयता की शर्त याद दिला रही हैं. राहुल गांधी ने गुरुवार को भी इस पर सवाल खड़े किए है. अब सरकार को साफ़ करना चाहिए कि राफेल पर उसका रुख़ क्यों बदल रहा है.
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गुरुवार को उनके मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि संसद को राफेल के बारे में जानकारी दी जा चुकी है, जबकि सोमवार को निर्मला सीतारमण ने ही कहा कि सौदे की शर्तों के लिहाज से ये गोपनीय मामला है. अब लोकसभा के कुछ दस्तावेज़ देखें. 18 नवंबर 2016 को कई सांसदों के सवाल का जवाब देते हुए रक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष भांबरे ने कहा कि फ्रांस से 36 राफेल विमानों का समझौता हुआ है. एक विमान 670 करोड़ रुपये का पड़ेगा. 2022 तक ये विमान भारत को मिल जाएंगे. हालांकि इस सोमवार, यानी 5 फ़रवरी को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में ऐसे ही सवाल का कुछ और जवाब दिया.
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उनसे पूछा गया था कि क्या फ्रांस के साथ हुए राफेल सौदे की शर्तों को सरकार सार्वजनिक नहीं करना चाहती है? अगर हां, तो क्यों? अगर नहीं, तो इस सौदे के महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं और क्या रक्षा क्षेत्र में अनुभवहीन किसी पार्टी को समझौते में शमिल किया गया है? तब रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत और फ्रांस के बीच राफेल खरीद को लेकर हुए अंतर सरकारी समझौते के अनुच्छेद 10 के मुताबिक सूचनाओं और सामग्री का लेनदेन गोपनीयता की शर्तों से बंधा है.
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23 सितंबर 2016 को 36 विमानों की सीधी ख़रीद के समझौते पर दस्तख़त हुए. किसी भी निजी या सरकारी उद्योग को इसमें शामिल नहीं किया गया है. यानी ये सौदा गोपनीयता के नियमों के तहत आता है और इसे उजागर नहीं किया जा सकता. यूपीए सरकार इसी आधार पर पहले भी ऐसे समझौतों को गोपनीय रखती रही हैं. लेकिन बुधवार को ही रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि संसद में राफेल की जानकारी दी जा चुकी है.
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सवाल यह है कि पहले दी जा चुकी जानकारी को अब फिर से बताने से रक्षा मंत्री क्यों बच रही हैं और क्यों गोपनीयता की शर्त याद दिला रही हैं. राहुल गांधी ने गुरुवार को भी इस पर सवाल खड़े किए है. अब सरकार को साफ़ करना चाहिए कि राफेल पर उसका रुख़ क्यों बदल रहा है.