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This Article is From Sep 27, 2015

सासंदों के वेतन और भत्ते तय करने के लिए केंद्र ने रखा 3 सदस्यीय पैनल का प्रस्ताव

सासंदों के वेतन और भत्ते तय करने के लिए केंद्र ने रखा 3 सदस्यीय पैनल का प्रस्ताव
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली: इस बात को लेकर विरोध ही चल ही रहा था कि सासंदों को अपना वेतन खुद तय करने का हक़ नहीं दिया जाना चाहिए कि तभी एनडीए सरकार ने इस काम के लिए 3 सदस्यीय पैनल बनाने का प्रस्ताव रख दिया है। यह प्रस्ताव, अगले हफ्ते विशाखापत्तनम में होने वाले अखिल भारतीय सचेतक सम्मेलन के एजेंडा नोट का हिस्सा है।

नोट में लिखा गया है कि सांसदों के वेतन और भत्ते तय करने के लिए ये स्वतंत्र समिति बैठाने से वह आवाज़ भी शांत हो जाएगी जो सांसदों के स्वयं वेतन तय करने की खिलाफ उठ रही थी। साथ ही यह एक सही मौका है यह जानने का कि प्रजातंत्र में यह सासंद कितना अहम रोल निभाते हैं और इन पर कितनी जिम्मेदारियां हैं।

अधिकारियों का कहना है कि इस समिति से यह सुनिश्चित होगा कि सांसदों का वेतन बिना किसी पक्षपात और पारदर्शी तरीके से तय किया जाता है। बता दें कि भारतीय सासंदों के वेतन को आखिरी बार 2010 में संशोधन किया गया था जब दूसरी बार यूपीए की सरकार बनी थी।

फिलहाल एक सांसद को 50 हज़ार प्रति माह का वेतन दिया जाता है। इसके अलावा सासंद सत्र में उपस्थित होने और रजिस्टर साइन करने पर इन्हें  2000 रूपए प्रति दिन का भत्ता मिलता है।

हर सासंद को मासिक निर्वाचन क्षेत्र भत्ते के रूप में 45 हज़ार रूपए मिलते हैं, साथ ही 15 हज़ार स्टेश्नरी और 30 हज़ार रूपए सहायक स्टाफ रखने के लिए भी मिलते हैं। इसके अलावा सरकारी घर, हवाई टिकट, रेल टिकल, तीन लैंडलाइन और 2 मोबाइल फोन भी इसकी का हिस्सा हैं। यही नहीं गाड़ी खरीदने के लिए 4 लाख का लोन भी दिया जाता है।

एक तुलनात्मक विश्लेषण के अनुसार 37 विकसित और विकासशील देशों में केवल 6 ही देश (ट्युनिशिया, वेनेज़ुएला, श्रीलंका, नेपाल, हैती और पनामा) ऐसे हैं जो भारतीय सांसदों से कम वेतन पाते हैं।

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