केंद्र सरकार ने दो महत्वपूर्ण बिलों पर विपक्ष के साथ फिलहाल युद्धविराम का रास्ता निकाल लिया है और माना जा रहा है कि अब गुरुवार को सरकार के लिए राज्यसभा में बीमा में विदेशी निवेश से जुड़ा बिल पास कराना आसान हो गया है, लेकिन जमीन अधिग्रहण कानून पर सरकार की दिक्कतें बरकरार हैं।
सरकार ने विपक्ष की मांग मानते हुए खान और खनिज (नियमन) बिल के साथ-साथ कोयला खान (संशोधन विधेयक) को भी सेलेक्ट कमेटी को भेज दिया। विपक्ष लगातार कह रहा था कि सरकार संसद की तय प्रक्रिया की अनदेखी कर इन बिलों को जल्दबाज़ी में पास करा रही है और इन बिलों पर चर्चा होनी चाहिए।
सरकार ने दोनों बिलों पर चर्चा के लिए राज्यसभा की दो सेलेक्ट कमेटियां गठित कर दी हैं, जो 18 मार्च से पहले अपनी रिपोर्ट संसद को देंगी। गौरतलब है कि संसद के बजट सत्र का पहला हिस्सा 20 मार्च को खत्म हो रहा है और सरकार उससे पहले इन दोनों बिलों को पास करा लेना चाहती है।
माना जा रहा है कि विपक्ष के तीखे विरोध को देखते हुए सरकार ने बीच का यह रास्ता निकाला है। विपक्ष अध्यादेशों के जरिये कानून बनाने और फिर बाद में संसद की सहमति लेने की बात का लगातार विरोध कर रहा है। खनिज और खान बिल को जहां अध्यादेश के जरिये 'थोपने' से विपक्ष नाराज है, वहीं कोयला बिल पर विपक्ष का कहना है कि यह निजी कंपनियों को खुले बाज़ार में कोयला बेचने का रास्ता तैयार करने वाला विधेयक है।
सीपीएम नेता तपन सेन ने कहा, ''यह कानून कोयला क्षेत्र का और निजीकरण करने की दिशा में कदम है, जिससे कोल इंडिया जैसी कंपनी कमज़ोर होगी और निजी कंपनियां कोयला निर्यात भी कर पाएंगी... हम इसका विरोध करते हैं...''
उधर ज़मीन अधिग्रहण कानून पर अब भी तलवारें खिंची हुई हैं। लगता है, संसद के बजट सत्र के पहले हिस्से में ज़मीन अधिग्रहण कानून राज्यसभा से पास न हो पाए। सरकार के पास संसद के इस सदन में बहुमत नहीं है और विपक्ष बिल के कई प्रावधानों के खिलाफ एकजुट है।
इस बीच, तृणमूल कांग्रेस ने सारी पार्टियों से अपील की है कि वे सरकार की ओर से लाए गए ज़मीन अधिग्रहण कानून के खिलाफ संसद भवन से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करें और राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया जाए। सूत्रों के मुताबिक जेडीयू नेता शरद यादव इस बारे में विपक्ष की सारी पार्टियों से बात कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि मंगलवार को सरकार ने ज़मीन अधिग्रहण कानून को लोकसभा से पास कराया था, लेकिन राज्यसभा में उसके पास बहुमत न होने से दिक्कत खड़ी हो गई है।
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