रविशंकर प्रसाद
नई दिल्ली:
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शुक्रवार को कहा कि उच्च न्यायालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के लिए सुझाव लेने की उच्चतम न्यायालय की इच्छा दर्शाती है कि इस प्रक्रिया में कुछ गलत है।
कॉलेजियम प्रणाली में कुछ गलत है
फैसले के गुण-दोषों में नहीं जाते हुए प्रसाद ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह तीन नवंबर से कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के मुद्दे पर सुनवाई करेगा। यह दिखाता है कि कॉलेजियम प्रणाली में कुछ गलत है।’’
एनजेएसी न्यायिक सुधारों का हिस्सा
उच्चतम न्यायालय और देश में 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बनाया गया कानून खारिज करने के संविधान पीठ के फैसले के संबंध में प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम देश में न्यायिक सुधारों का हिस्सा था जिसे पूरी संसद और प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं का समर्थन था।
अचानक नहीं बना था एनजेएसी
उन्होंने कहा, ‘‘यह अचानक से नहीं हुआ था। संविधान समीक्षा आयोग, प्रशासनिक सुधार आयोग और संसदीय स्थाई समितियों ने अपनी तीन रिपोर्टों में इस तरह के कानून की सिफारिश की थी।’’
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जब पिछले साल विधेयक को मंजूरी दी थी और फिर संसद के दोनों सदनों ने इसे पारित किया था, तब प्रसाद कानून मंत्री थे।
अटॉर्नी जनरल की प्रतिक्रिया
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी इस अभूतपूर्व फैसले के बाद ऐसे ही विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, ‘‘नियुक्ति अपारदर्शी प्रणाली के तहत होना जारी रहेगा जहां सभी पक्षों की आवाज नहीं होगी। संविधान में कॉलेजियम प्रणाली की बात नहीं पाई गई है और मेरे अनुसार यह प्रणाली उपयुक्त नहीं है। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘कॉलेजियम प्रणाली बदलेगी या नहीं, यह अदालत का अधिकार है। लेकिन अगर इसे बेहतर बनाने की जरूरत हो तो इसका अर्थ है कि यह पहली नजर में सही नहीं थी।’’
कानून मंत्री की प्रतिक्रिया
बहरहाल, कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा, ‘‘केवल संसद के जरिए, विधानसभा के जरिए ही लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। इसे किसी अन्य माध्यम से पूरी दुनिया के ध्यान में नहीं लाया जा सकता।’’ गौड़ा और प्रसाद ने कहा कि सरकार फैसले का अध्ययन करने के बाद व्यवस्थित प्रतिक्रिया देगी।
एजी ने इस मामले में समीक्षा के विकल्प को खारिज करते हुए कहा, ‘‘मैं नहीं समझता कि यह समीक्षा का मामला है क्योंकि फैसला विस्तृत और हजार पन्नों का है।’’ इस बारे में गौड़ा ने कहा, ‘‘हम लोगों की इच्छा को लेकर आए थे। राज्यसभा और लोकसभा ने शत प्रतिशत इसका समर्थन किया था। जिन मतदाताओं ने मतदान किया है, उनका प्रतिनिधित्व सांसद करते हैं। 20 राज्यों की विधानसभाओं ने इस विधेयक का समर्थन किया है।’’
गौड़ा ने कहा, ‘‘सरकार लोगों की इच्छा का उचित प्रतिनिधित्व करती है और जहां तक आगे के कदम और अन्य चीजों का सवाल है, तो मैं दस्तावेज को विस्तार से पढ़ने और माननीय प्रधानमंत्री, हमारे कानूनी विशेषज्ञों एवं अन्य से विचार-विमर्श करने के बाद ही आपसे दोबारा बात करूंगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने कानून अधिकारियों से चर्चा करूंगा और कैबिनेट में अपने वरिष्ठ सहकर्मियों और प्रधानमंत्री से भी चर्चा करूंगा। इसके बाद हम यह निर्णय लेंगे कि हमें आगे क्या कदम उठाने की आवश्यकता है।’’
एम वेंकैया नायडू ने दिया यह बयान
संसदीय कार्यमंत्री एम वेंकैया नायडू ने भी कहा कि मतदान के दौरान इसे लोकसभा और राज्यसभा में एकमत से समर्थन प्राप्त था। इसे 20 राज्यों की विधानसभाओं ने भी मंजूरी दी। उच्चतम न्यायालय और देश में 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बनाया गया कानून खारिज करने के संविधान पीठ के फैसले के संबंध में प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम देश में न्यायिक सुधारों का हिस्सा था जिसे पूरी संसद और प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं का समर्थन था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जजों की नियुक्ति में नहीं होगी सरकार की भूमिका
उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की दो दशक से अधिक पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून लाया गया था।
प्रसाद ने कहा कि कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई थी कि कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव पर विचार की जरूरत है।
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ने कहा, ‘‘लोकसभा और राज्यसभा में इनके लिए सर्वसम्मति से समर्थन था। मत विभाजन के दौरान राज्यसभा में केवल एक वाकआउट हुआ था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘20 राज्यों की विधानसभाओं ने इसका अनुमोदन किया। 1993 के उच्चतम न्यायालय के फैसले (कॉलेजियम प्रणाली लाने वाले फैसले) के मुख्य रचनाकार (दिवंगत) न्यायमूर्ति जे एस वर्मा ने भी कॉलेजियम प्रणाली पर गंभीरता से पुनर्विचार का सुझाव दिया था और ऐसा ही मत न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर का था।’’
मिलिए जस्टिस चेलामेश्वर से जो चाहते थे जज-नियुक्ति में सरकार का दख़ल रहे...
कॉलेजियम प्रणाली की जगह लाई गई व्यवस्था के बचाव में उन्होंने कहा कि 1950 से 1993 के बीच जब कार्यपालिका न्यायाधीशों का चुनाव करती थी तो न्यायपालिका में ऐसे कई लोगों की नियुक्ति हुई जिन्होंने संस्था का नाम ऊंचा किया।
कॉलेजियम प्रणाली में कुछ गलत है
फैसले के गुण-दोषों में नहीं जाते हुए प्रसाद ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह तीन नवंबर से कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के मुद्दे पर सुनवाई करेगा। यह दिखाता है कि कॉलेजियम प्रणाली में कुछ गलत है।’’
एनजेएसी न्यायिक सुधारों का हिस्सा
उच्चतम न्यायालय और देश में 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बनाया गया कानून खारिज करने के संविधान पीठ के फैसले के संबंध में प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम देश में न्यायिक सुधारों का हिस्सा था जिसे पूरी संसद और प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं का समर्थन था।
अचानक नहीं बना था एनजेएसी
उन्होंने कहा, ‘‘यह अचानक से नहीं हुआ था। संविधान समीक्षा आयोग, प्रशासनिक सुधार आयोग और संसदीय स्थाई समितियों ने अपनी तीन रिपोर्टों में इस तरह के कानून की सिफारिश की थी।’’
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जब पिछले साल विधेयक को मंजूरी दी थी और फिर संसद के दोनों सदनों ने इसे पारित किया था, तब प्रसाद कानून मंत्री थे।
अटॉर्नी जनरल की प्रतिक्रिया
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी इस अभूतपूर्व फैसले के बाद ऐसे ही विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, ‘‘नियुक्ति अपारदर्शी प्रणाली के तहत होना जारी रहेगा जहां सभी पक्षों की आवाज नहीं होगी। संविधान में कॉलेजियम प्रणाली की बात नहीं पाई गई है और मेरे अनुसार यह प्रणाली उपयुक्त नहीं है। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘कॉलेजियम प्रणाली बदलेगी या नहीं, यह अदालत का अधिकार है। लेकिन अगर इसे बेहतर बनाने की जरूरत हो तो इसका अर्थ है कि यह पहली नजर में सही नहीं थी।’’
कानून मंत्री की प्रतिक्रिया
बहरहाल, कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा, ‘‘केवल संसद के जरिए, विधानसभा के जरिए ही लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। इसे किसी अन्य माध्यम से पूरी दुनिया के ध्यान में नहीं लाया जा सकता।’’ गौड़ा और प्रसाद ने कहा कि सरकार फैसले का अध्ययन करने के बाद व्यवस्थित प्रतिक्रिया देगी।
एजी ने इस मामले में समीक्षा के विकल्प को खारिज करते हुए कहा, ‘‘मैं नहीं समझता कि यह समीक्षा का मामला है क्योंकि फैसला विस्तृत और हजार पन्नों का है।’’ इस बारे में गौड़ा ने कहा, ‘‘हम लोगों की इच्छा को लेकर आए थे। राज्यसभा और लोकसभा ने शत प्रतिशत इसका समर्थन किया था। जिन मतदाताओं ने मतदान किया है, उनका प्रतिनिधित्व सांसद करते हैं। 20 राज्यों की विधानसभाओं ने इस विधेयक का समर्थन किया है।’’
गौड़ा ने कहा, ‘‘सरकार लोगों की इच्छा का उचित प्रतिनिधित्व करती है और जहां तक आगे के कदम और अन्य चीजों का सवाल है, तो मैं दस्तावेज को विस्तार से पढ़ने और माननीय प्रधानमंत्री, हमारे कानूनी विशेषज्ञों एवं अन्य से विचार-विमर्श करने के बाद ही आपसे दोबारा बात करूंगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने कानून अधिकारियों से चर्चा करूंगा और कैबिनेट में अपने वरिष्ठ सहकर्मियों और प्रधानमंत्री से भी चर्चा करूंगा। इसके बाद हम यह निर्णय लेंगे कि हमें आगे क्या कदम उठाने की आवश्यकता है।’’
एम वेंकैया नायडू ने दिया यह बयान
संसदीय कार्यमंत्री एम वेंकैया नायडू ने भी कहा कि मतदान के दौरान इसे लोकसभा और राज्यसभा में एकमत से समर्थन प्राप्त था। इसे 20 राज्यों की विधानसभाओं ने भी मंजूरी दी। उच्चतम न्यायालय और देश में 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बनाया गया कानून खारिज करने के संविधान पीठ के फैसले के संबंध में प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम देश में न्यायिक सुधारों का हिस्सा था जिसे पूरी संसद और प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं का समर्थन था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जजों की नियुक्ति में नहीं होगी सरकार की भूमिका
उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की दो दशक से अधिक पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून लाया गया था।
प्रसाद ने कहा कि कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई थी कि कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव पर विचार की जरूरत है।
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ने कहा, ‘‘लोकसभा और राज्यसभा में इनके लिए सर्वसम्मति से समर्थन था। मत विभाजन के दौरान राज्यसभा में केवल एक वाकआउट हुआ था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘20 राज्यों की विधानसभाओं ने इसका अनुमोदन किया। 1993 के उच्चतम न्यायालय के फैसले (कॉलेजियम प्रणाली लाने वाले फैसले) के मुख्य रचनाकार (दिवंगत) न्यायमूर्ति जे एस वर्मा ने भी कॉलेजियम प्रणाली पर गंभीरता से पुनर्विचार का सुझाव दिया था और ऐसा ही मत न्यायमूर्ति वी आर कृष्णा अय्यर का था।’’
मिलिए जस्टिस चेलामेश्वर से जो चाहते थे जज-नियुक्ति में सरकार का दख़ल रहे...
कॉलेजियम प्रणाली की जगह लाई गई व्यवस्था के बचाव में उन्होंने कहा कि 1950 से 1993 के बीच जब कार्यपालिका न्यायाधीशों का चुनाव करती थी तो न्यायपालिका में ऐसे कई लोगों की नियुक्ति हुई जिन्होंने संस्था का नाम ऊंचा किया।
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