गौतमबुद्ध नगर:
नोटबंदी का असर सबसे ज़्यादा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ा है. नकदी की कमी ने फसल से लेकर उनके छोटे-छोटे कारोबार को भी चौपट कर डाला है. सरकार की नजर भी इन हालात पर है. राज्यों में नोटबंदी के असर का जायज़ा लेने के लिए केंद्र की ओर से गए करीब 50 अफ़सरों की टीम ने माना है कि हालात गांवों में कहीं ज़्यादा बुरे हैं.
गौतम बुद्ध नगर के सोरखा की रहने वाली निर्मला का परिवार सब्ज़ियां उगाकर गुजारा करता है, लेकिन इस साल उनकी फ़सल बरबाद हो गई. वजह है नोटबंदी. निर्मला ने एनडीटीवी को बताया कि कैश की कमी की वजह से गोभी और दूसरी सब्जियों की फसलों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी कीटनाशक नहीं खरीद पाईं. नतीजा ये हुआ कि कीड़ों ने फसल बर्बाद कर दी. जो गोभी की फसल थोड़ी-बहुत बची भी उसे मंडी के व्यापारियों ने दो रुपये किलो में खरीदने की पेशकश की, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया.
निर्मला ने कहा, 'अब इन खराब फसलों को जानवरों को ही खिला पाएंगे. बची हुई गोभी को मंडी तक ले जाने पर जो खर्च आता वो कमाई से ज़्यादा होता इसलिए हमने इन्हें नहीं बेचने का फैसला किया.' मां-बेटों को अभी तक नए नोट देखने को भी नहीं मिले हैं.'
निर्मला के खेत से बाहर आते ही हमें दो भाई प्रेम पाल और विजय पाल मिले. दोनों माल ढुलाई का काम करते हैं. कहते हैं, नोटबंदी के बाद पेमेंट नहीं मिला. प्रेम पाल ने बताया, 'मालिक कहता है कि कैश नहीं है, क्योंकि बैंकों में आठ-आठ घंटे लाइन लगने पर भी कैश नहीं मिल पा रहा है.'
हालत ये है कि यहां से क़रीब 5 किलोमीटर दूर मामुरा का ज़िला सहकारी बैंक बुधवार को ख़ाली पड़ा रहा. आरबीआई ने जनधन खाते से महीने में 10,000 की सीमा बांधी है, लेकिन ये पैसा भी तब मिलेगा जब बैंक में कैश हो.
बैंक मैनेजर सुरेश तिवारी कहते हैं, 'नोटबंदी के बाद कैश पेमेंट तेज़ी से घट गई है. नोटबंदी के ऐलान से पहले 8 नवंबर को बैंक से 10.31 लाख कैश पेमेंट लोगों को की गई, जबकि 29 नवंबर को ये घटकर 3.75 लाख रह गई. बुधवार को कैश आया नहीं और इस वजह से एक रुपया भी हम खाता धारकों को नहीं बांट पाए.'
केंद्र से राज्यों में भेजी गई करीब 50 अफ़सरों की एक टीम की राय है कि बुवाई के इस मौसम में नोटबंदी ने खेती पर बुरा असर डाला है और गुज़ारे के मौके ख़त्म हो रहे हैं. लोग अपनी उपज काफ़ी कम दाम पर बेचने को मजबूर हैं. इस संकट के बीच ये सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या नोटबंदी अर्थव्यवस्था को मंदी को ओर धकेल रहा है.
गौतम बुद्ध नगर के सोरखा की रहने वाली निर्मला का परिवार सब्ज़ियां उगाकर गुजारा करता है, लेकिन इस साल उनकी फ़सल बरबाद हो गई. वजह है नोटबंदी. निर्मला ने एनडीटीवी को बताया कि कैश की कमी की वजह से गोभी और दूसरी सब्जियों की फसलों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी कीटनाशक नहीं खरीद पाईं. नतीजा ये हुआ कि कीड़ों ने फसल बर्बाद कर दी. जो गोभी की फसल थोड़ी-बहुत बची भी उसे मंडी के व्यापारियों ने दो रुपये किलो में खरीदने की पेशकश की, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया.
निर्मला ने कहा, 'अब इन खराब फसलों को जानवरों को ही खिला पाएंगे. बची हुई गोभी को मंडी तक ले जाने पर जो खर्च आता वो कमाई से ज़्यादा होता इसलिए हमने इन्हें नहीं बेचने का फैसला किया.' मां-बेटों को अभी तक नए नोट देखने को भी नहीं मिले हैं.'
निर्मला के खेत से बाहर आते ही हमें दो भाई प्रेम पाल और विजय पाल मिले. दोनों माल ढुलाई का काम करते हैं. कहते हैं, नोटबंदी के बाद पेमेंट नहीं मिला. प्रेम पाल ने बताया, 'मालिक कहता है कि कैश नहीं है, क्योंकि बैंकों में आठ-आठ घंटे लाइन लगने पर भी कैश नहीं मिल पा रहा है.'
हालत ये है कि यहां से क़रीब 5 किलोमीटर दूर मामुरा का ज़िला सहकारी बैंक बुधवार को ख़ाली पड़ा रहा. आरबीआई ने जनधन खाते से महीने में 10,000 की सीमा बांधी है, लेकिन ये पैसा भी तब मिलेगा जब बैंक में कैश हो.
बैंक मैनेजर सुरेश तिवारी कहते हैं, 'नोटबंदी के बाद कैश पेमेंट तेज़ी से घट गई है. नोटबंदी के ऐलान से पहले 8 नवंबर को बैंक से 10.31 लाख कैश पेमेंट लोगों को की गई, जबकि 29 नवंबर को ये घटकर 3.75 लाख रह गई. बुधवार को कैश आया नहीं और इस वजह से एक रुपया भी हम खाता धारकों को नहीं बांट पाए.'
केंद्र से राज्यों में भेजी गई करीब 50 अफ़सरों की एक टीम की राय है कि बुवाई के इस मौसम में नोटबंदी ने खेती पर बुरा असर डाला है और गुज़ारे के मौके ख़त्म हो रहे हैं. लोग अपनी उपज काफ़ी कम दाम पर बेचने को मजबूर हैं. इस संकट के बीच ये सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या नोटबंदी अर्थव्यवस्था को मंदी को ओर धकेल रहा है.
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