पूर्व केंद्रीय मंत्री अनिल दवे के निधन के छह माह बाद उनकी मौत पर सवाल उठाए गए हैं.
इंदौर:
पूर्व केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे के निधन के छह माह बाद उनकी अचानक हुई मौत को लेकर सवाल उठने लगे हैं. दवे के एक मित्र ने उनकी मौत की जांच कराने की मांग की है और इसके लिए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका दाखिल की है.
मोदी सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे अनिल माधव दवे मध्यप्रदेश के निवासी थे. उनका गत 17 मई को दिल्ली में निधन हो गया था. अनिल दवे के करीबी मित्र तपन भट्टाचार्य ने उनकी मौत की जांच एजेंसी से कराने की मांग करते हुए हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका दायर की है. भट्टाचार्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने बुधवार को जनहित याचिका दायर की जिसमें दवे की मौत की निष्पक्ष जांच एजेंसी से कराने की मांग की गई है. इस याचिका में कई मुद्दों को उठाते हुए मौत को संदिग्ध बताया गया है.
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भट्टाचार्य ने बताया कि दवे उनके बचपन के मित्र थे. उनकी मौत के बाद जो तथ्य सामने आए वह शंका पैदा करने वाले हैं. दिल्ली स्थित उनके निवास से राम मनोहर लोहिया अस्पताल नजदीक था. इसके बावजूद उन्हें इलाज के लिए एम्स ले जाया गया. भट्टाचार्य ने बताया कि "निधन के तुरंत बाद दवे की वसीयत सामने आ गई. इसे किसने सार्वजनिक किया या वह वसीयत किसे मिली, इसका भी किसी को पता नहीं है. वसीयत वो होती है, जिसमें नाम, उम्र, पिता का नाम अपनी संपत्ति का जिक्र होता है, जो कागज मिला उसमें यह कुछ नहीं है. जो वसीयतनामा प्रचारित किया गया, वह तो एक सादे कागज पर ठीक वैसा ही था, जैसे कोई देहदान आदि के लिए लिखता है."
भट्टाचार्य बताते हैं कि उन्होंने अपनी वसीयत में अंत्येष्टि गृहनगर में किए जाने की बात लिखी थी. राज्य सरकार ने ऐलान किया था कि अंत्येष्टि इंदौर में होगी. इसके बाद कहा गया कि अंत्येष्टि इंदौर में नहीं, होशंगाबाद में होगी. अंत्येष्टि का समय पहले 10 बजे का तय किया गया और समय व स्थान बदलते हुए अंत्येष्टि नौ बजे कर दी गई.
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भट्टाचार्य का आरोप है कि दवे के शव पर कुछ नीले निशान थे, इतना ही नहीं उनके शव को पहले कांच के ताबूत (कॉफिन) में रखा गया. फिर बदलकर लकड़ी के ताबूत में रखा गया, जो सवाल खड़े करता है. इतना ही नहीं, शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया. इसके लिए क्या परिवार वालों से राय ली गई? भट्टाचार्य कहते हैं, "दवे कोई ऐसे व्यक्ति तो थे नहीं, जिन्हें कोई जानता न हो. आखिर उनका अंत्येष्टि कराने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई. उनके निवास पर भी पार्थिव देह को कुछ समय के लिए रखा गया और फिर उसे होशंगाबाद के बांद्राभान ले गए."
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भट्टाचार्य का कहना है कि दवे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के समर्थन में नहीं थे, वे किसानों की बात करने वाले नेता थे. उन पर कुछ आदेश जारी करने का दबाव था, मगर वे नहीं माने. यह बात उन्होंने कई लोगों से साझा भी की थी.
VIDEO : दिल का दौरा पड़ने से दवे का निधन
ज्ञात हो कि दवे की 17 मई, 2017 को दिल्ली के आवास में तबियत बिगड़ी थी. इसके बाद उन्हें एम्स ले जाया गया, जहां उनका का निधन हो गया. उनकी अंत्येष्टि होशंगाबाद के बांद्राभान में की गई थी. यह वह स्थान है, जहां दवे हर वर्ष नदी महोत्सव आयोजित करते थे. फिलहाल इस याचिका के आने से अनिल दवे के अकस्मात निधन पर सवाल उठ खड़े हुए हैं.
( इनपुट आईएएनएस से)
मोदी सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे अनिल माधव दवे मध्यप्रदेश के निवासी थे. उनका गत 17 मई को दिल्ली में निधन हो गया था. अनिल दवे के करीबी मित्र तपन भट्टाचार्य ने उनकी मौत की जांच एजेंसी से कराने की मांग करते हुए हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका दायर की है. भट्टाचार्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने बुधवार को जनहित याचिका दायर की जिसमें दवे की मौत की निष्पक्ष जांच एजेंसी से कराने की मांग की गई है. इस याचिका में कई मुद्दों को उठाते हुए मौत को संदिग्ध बताया गया है.
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भट्टाचार्य ने बताया कि दवे उनके बचपन के मित्र थे. उनकी मौत के बाद जो तथ्य सामने आए वह शंका पैदा करने वाले हैं. दिल्ली स्थित उनके निवास से राम मनोहर लोहिया अस्पताल नजदीक था. इसके बावजूद उन्हें इलाज के लिए एम्स ले जाया गया. भट्टाचार्य ने बताया कि "निधन के तुरंत बाद दवे की वसीयत सामने आ गई. इसे किसने सार्वजनिक किया या वह वसीयत किसे मिली, इसका भी किसी को पता नहीं है. वसीयत वो होती है, जिसमें नाम, उम्र, पिता का नाम अपनी संपत्ति का जिक्र होता है, जो कागज मिला उसमें यह कुछ नहीं है. जो वसीयतनामा प्रचारित किया गया, वह तो एक सादे कागज पर ठीक वैसा ही था, जैसे कोई देहदान आदि के लिए लिखता है."
भट्टाचार्य बताते हैं कि उन्होंने अपनी वसीयत में अंत्येष्टि गृहनगर में किए जाने की बात लिखी थी. राज्य सरकार ने ऐलान किया था कि अंत्येष्टि इंदौर में होगी. इसके बाद कहा गया कि अंत्येष्टि इंदौर में नहीं, होशंगाबाद में होगी. अंत्येष्टि का समय पहले 10 बजे का तय किया गया और समय व स्थान बदलते हुए अंत्येष्टि नौ बजे कर दी गई.
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भट्टाचार्य का आरोप है कि दवे के शव पर कुछ नीले निशान थे, इतना ही नहीं उनके शव को पहले कांच के ताबूत (कॉफिन) में रखा गया. फिर बदलकर लकड़ी के ताबूत में रखा गया, जो सवाल खड़े करता है. इतना ही नहीं, शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया. इसके लिए क्या परिवार वालों से राय ली गई? भट्टाचार्य कहते हैं, "दवे कोई ऐसे व्यक्ति तो थे नहीं, जिन्हें कोई जानता न हो. आखिर उनका अंत्येष्टि कराने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई. उनके निवास पर भी पार्थिव देह को कुछ समय के लिए रखा गया और फिर उसे होशंगाबाद के बांद्राभान ले गए."
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भट्टाचार्य का कहना है कि दवे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के समर्थन में नहीं थे, वे किसानों की बात करने वाले नेता थे. उन पर कुछ आदेश जारी करने का दबाव था, मगर वे नहीं माने. यह बात उन्होंने कई लोगों से साझा भी की थी.
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ज्ञात हो कि दवे की 17 मई, 2017 को दिल्ली के आवास में तबियत बिगड़ी थी. इसके बाद उन्हें एम्स ले जाया गया, जहां उनका का निधन हो गया. उनकी अंत्येष्टि होशंगाबाद के बांद्राभान में की गई थी. यह वह स्थान है, जहां दवे हर वर्ष नदी महोत्सव आयोजित करते थे. फिलहाल इस याचिका के आने से अनिल दवे के अकस्मात निधन पर सवाल उठ खड़े हुए हैं.
( इनपुट आईएएनएस से)
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