वर्ष 2004 से 2014 तक 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह ने कहा, "बहुत भारी मन से मैं यह लिख रहा हूं... मैं खतरों के इस जमघट से बेहद चिंतित हूं, जो न सिर्फ भारत की आत्मा को तोड़ सकते हैं, बल्कि आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में हमारी वैश्विक छवि को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं..."
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दिल्ली के कुछ हिस्सों में पिछले सप्ताह हुई हिंसा का ज़िक्र करते हुए डॉ सिंह ने कहा कि 'हमारे समाज के उद्दंड वर्ग, जिसमें राजनेता भी शामिल थे,' द्वारा साम्प्रदायिक तनाव को हवा दी गई, और धार्मिक असहिष्णुता की आग को भड़काया गया. कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी संस्थाओं ने नागरिकों और न्याय संस्थानों की रक्षा के अपने धर्म को छोड़ दिया और 'मीडिया ने भी हमें निराश किया...'
जाने-माने अर्थशास्त्री तथा पूर्व प्रधानमंत्री ने लिखा, "रोक की कोई व्यवस्था नहीं, सो, सामाजिक तनाव की आग तेज़ी से देशभर में फैल रही है और हमारे देश की आत्मा को तार-तार कर देने का खतरा पेश कर रही है... इसे वही लोग बुझा सकते हैं, जिन्होंने इसे भड़काया है..."
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उन्होंने लिखा, "कुछ ही सालों में, उदार लोकतांत्रिक तरीकों से वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास का मॉडल बनने से लेकर भारत अब बहुसंख्यकों की सुनने वाला ऐसा विवादग्रस्त देश बन गया है, जो आर्थिक संकट से जूझ रहा है..."
डॉ मनमोहन सिंह ने लिखा, "छटपटाती अर्थव्यवस्था के दौर में इस तरह की सामाजिक अशांति के असर से मंदी को गति ही मिलेगी... आर्थिक विकास का आधार होता है सामाजिक सद्भाव, और इस समय वही खतरे में है... टैक्स दरों को कितना भी बदल दिया जाए, कॉरपोरेट वर्ग को कितनी भी सहूलियतें दी जाएं, भारतीय तथा विदेशी कंपनियां यहां निवेश नहीं करेंगी, जब तक हिंसा के अचानक भड़क उठने का खतरा बना रहेगा..."
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पूर्व प्रधानमंत्री ने सरकार के लिए तीन-सूत्री योजना का सुझाव भी दिया है - "सबसे पहले, सरकार को सारी ताकत और प्रयास कोरोनावायरस को काबू करने पर लगा देने चाहिए और पर्याप्त तैयारी करनी चाहिए... दूसरे, नागरिकता संशोधन कानून को बदला जाए, या वापस लिया जाए, ताकि ज़हरीला हो चुका सामाजिक वातावरण खत्म हो व राष्ट्रीय एकता बहाल हो... तीसरे, विस्तृत तथा सटीक वित्तीय योजना लागू की जाए, ताकि खपत की मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सके..."
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