पटना / नई दिल्ली:
जिसे ज़्यादातर लोग नुकसान की वजह मानते हैं, उसी बात को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक अवसर मान रहे हैं... जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के लिए कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित की गईं शीला दीक्षित की 78 साल की उम्र की...
प्रशांत किशोर के करीबी सूत्रों का कहना है कि दिल्ली की तीन कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित की उम्र को उत्तर प्रदेश में 'तजुर्बे के प्रतीक' और 'भावनात्मक अपील' के रूप में इस्तेमाल करने के लिए एक खास नारा बनाया गया है - "मेरे जीवन का एक ही सपना, उत्तर प्रदेश को दिल्ली जैसा बनाना..."
शीला के नाम की औपचारिक घोषणा कांग्रेस ने गुरुवार को ही की है, लेकिन उससे कई हफ्ते पहले से एक तरफ से मिल रहे संकेतों और दूसरी ओर से मिल रहे खंडनों ने घोषणा के उत्साह को काफी कम कर दिया, और इस बात को शीला खुद भी कबूल करती हैं।
NDTV से बातचीत में उन्होंने कहा, "बढ़िया होता, अगर यह (मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनाने का फैसला) पहले तय कर लिया गया होता... लेकिन चूंकि ऐसा नहीं हुआ है, तो हमें अब जो भी वक्त बचा है, उसका बेहतरीन इस्तेमाल करना होगा..."
सूत्रों का कहना है कि शीला दीक्षित की तुलना में आधी से भी कम उम्र के 37-वर्षीय प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में शीला के तीन कार्यकालों के बारे में जोरशोर से प्रचार करेंगे... वैसे, राजनेता के रूप में उनकी उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रशांत इस ओर भी यूपी की जनता का ध्यान आकर्षित करेंगे कि शीला दीक्षित का विवाह ब्राह्मण परिवार में हुआ है, ताकि ऊंची जाति के वोटों को कांग्रेस की ओर समेटा जा सके।
प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीति विशेषज्ञ के रूप में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव ने स्थापित किया था, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए रणनीति तैयार की थी, जिसकी मदद से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने शानदार जीत हासिल की थी। इसके बाद प्रशांत ने बीजेपी से नाता तोड़कर पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाथ मिलाया था, और सीएम के रूप में उन्हें लगातार तीसरा कार्यकाल दिलाने के निमित्त बने। इसके बाद प्रशांत अब पंजाब और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस की रणनीति बना रहे हैं।
इस तरह की ख़बरें भी आ रही थीं कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस में मौजूद अनिर्णय और हेरार्की (पदानुक्रम) के खिलाफ जूझना पड़ रहा है, लेकिन प्रशांत के करीबियों ने इस बात का खंडन किया है कि वह प्रदेश इकाई अध्यक्ष के रूप में फिल्म अभिनेता से राजनेता बने राज बब्बर को चुने जाने के खिलाफ थे। फिल्म अभिनेता के रूप में कामयाब पारी खेलने के बाद राज बब्बर समाजवादी पार्टी के नेता बने थे, और फिर वर्ष 2008 में कांग्रेस से जुड़े और कुछ ही महीने बाद उन्होंने अपनी महत्ता साबित कर दी, जब उन्होंने समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधू और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव को हराकर एक लोकसभा सीट जीत ली।
सो, अब जहां एक ओर राज बब्बर की स्टार अपील राज्यभर में भुनाई जाएगी. वहीं प्रशांत किशोर के करीबी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस प्रचार समिति के प्रमुख बनाए गए संजय सिंह अमेठी और आसपास के इलाकों में पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने में सफल रहेंगे। संजय अमेठी के पूर्व राजपरिवार का हिस्सा हैं, और अमेठी लोकसभा सीट राहुल गांधी का चुनाव क्षेत्र है, जो पार्टी में नंबर दो, यानी उपाध्यक्ष की हैसियत से सिर्फ अपनी मां और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को जवाबदेह हैं। यहां एक बात यह भी ध्यान देने लायक है कि संजय सिंह को दरकिनार किया जाना नुकसानदायक भी हो सकता था, क्योंकि वह एक बार कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, और वर्ष 2003 में कांग्रेस में लौटे थे। इसके बाद उन्हें वर्ष 2014 में राज्यसभा सदस्य बनवाया गया था, क्योंकि लगने लगा था कि वह फिर पार्टी को छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के अलावा प्रशांत किशोर पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए भी पार्टी की रणनीति तैयार कर रहे हैं, जहां सत्तासीन बीजेपी-अकाली दल सरकार की छवि कुछ खास अच्छी नहीं रही है। लेकिन फिलहाल दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी पंजाब में लोगों का ध्यान खींचने में ज़्यादा कामयाब रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान सिर्फ दो साल पुरानी पार्टी होने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने पंजाब से चार लोकसभा सीटें जीती थीं।
वैसे, यहां भी प्रशांत किशोर को एक वरिष्ठ उम्रदराज़ नेता का ही प्रचार करना पड़ रहा है। कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे 74-वर्षीय कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रचार के लिए भी प्रशांत किशोर ने नारा बनाया है - "मेरा एक ही सपना है, पंजाब को मजबूत बनाना..."
प्रशांत किशोर के करीबी सूत्रों का कहना है कि दिल्ली की तीन कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित की उम्र को उत्तर प्रदेश में 'तजुर्बे के प्रतीक' और 'भावनात्मक अपील' के रूप में इस्तेमाल करने के लिए एक खास नारा बनाया गया है - "मेरे जीवन का एक ही सपना, उत्तर प्रदेश को दिल्ली जैसा बनाना..."
शीला के नाम की औपचारिक घोषणा कांग्रेस ने गुरुवार को ही की है, लेकिन उससे कई हफ्ते पहले से एक तरफ से मिल रहे संकेतों और दूसरी ओर से मिल रहे खंडनों ने घोषणा के उत्साह को काफी कम कर दिया, और इस बात को शीला खुद भी कबूल करती हैं।
NDTV से बातचीत में उन्होंने कहा, "बढ़िया होता, अगर यह (मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बनाने का फैसला) पहले तय कर लिया गया होता... लेकिन चूंकि ऐसा नहीं हुआ है, तो हमें अब जो भी वक्त बचा है, उसका बेहतरीन इस्तेमाल करना होगा..."
सूत्रों का कहना है कि शीला दीक्षित की तुलना में आधी से भी कम उम्र के 37-वर्षीय प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में शीला के तीन कार्यकालों के बारे में जोरशोर से प्रचार करेंगे... वैसे, राजनेता के रूप में उनकी उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रशांत इस ओर भी यूपी की जनता का ध्यान आकर्षित करेंगे कि शीला दीक्षित का विवाह ब्राह्मण परिवार में हुआ है, ताकि ऊंची जाति के वोटों को कांग्रेस की ओर समेटा जा सके।
प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीति विशेषज्ञ के रूप में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव ने स्थापित किया था, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए रणनीति तैयार की थी, जिसकी मदद से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने शानदार जीत हासिल की थी। इसके बाद प्रशांत ने बीजेपी से नाता तोड़कर पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाथ मिलाया था, और सीएम के रूप में उन्हें लगातार तीसरा कार्यकाल दिलाने के निमित्त बने। इसके बाद प्रशांत अब पंजाब और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस की रणनीति बना रहे हैं।
इस तरह की ख़बरें भी आ रही थीं कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस में मौजूद अनिर्णय और हेरार्की (पदानुक्रम) के खिलाफ जूझना पड़ रहा है, लेकिन प्रशांत के करीबियों ने इस बात का खंडन किया है कि वह प्रदेश इकाई अध्यक्ष के रूप में फिल्म अभिनेता से राजनेता बने राज बब्बर को चुने जाने के खिलाफ थे। फिल्म अभिनेता के रूप में कामयाब पारी खेलने के बाद राज बब्बर समाजवादी पार्टी के नेता बने थे, और फिर वर्ष 2008 में कांग्रेस से जुड़े और कुछ ही महीने बाद उन्होंने अपनी महत्ता साबित कर दी, जब उन्होंने समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधू और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव को हराकर एक लोकसभा सीट जीत ली।
सो, अब जहां एक ओर राज बब्बर की स्टार अपील राज्यभर में भुनाई जाएगी. वहीं प्रशांत किशोर के करीबी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस प्रचार समिति के प्रमुख बनाए गए संजय सिंह अमेठी और आसपास के इलाकों में पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने में सफल रहेंगे। संजय अमेठी के पूर्व राजपरिवार का हिस्सा हैं, और अमेठी लोकसभा सीट राहुल गांधी का चुनाव क्षेत्र है, जो पार्टी में नंबर दो, यानी उपाध्यक्ष की हैसियत से सिर्फ अपनी मां और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को जवाबदेह हैं। यहां एक बात यह भी ध्यान देने लायक है कि संजय सिंह को दरकिनार किया जाना नुकसानदायक भी हो सकता था, क्योंकि वह एक बार कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, और वर्ष 2003 में कांग्रेस में लौटे थे। इसके बाद उन्हें वर्ष 2014 में राज्यसभा सदस्य बनवाया गया था, क्योंकि लगने लगा था कि वह फिर पार्टी को छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के अलावा प्रशांत किशोर पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए भी पार्टी की रणनीति तैयार कर रहे हैं, जहां सत्तासीन बीजेपी-अकाली दल सरकार की छवि कुछ खास अच्छी नहीं रही है। लेकिन फिलहाल दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी पंजाब में लोगों का ध्यान खींचने में ज़्यादा कामयाब रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान सिर्फ दो साल पुरानी पार्टी होने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने पंजाब से चार लोकसभा सीटें जीती थीं।
वैसे, यहां भी प्रशांत किशोर को एक वरिष्ठ उम्रदराज़ नेता का ही प्रचार करना पड़ रहा है। कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे 74-वर्षीय कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रचार के लिए भी प्रशांत किशोर ने नारा बनाया है - "मेरा एक ही सपना है, पंजाब को मजबूत बनाना..."
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