सीवर का नाला पार करते स्कूली बच्चे
मुंबई:
सुबह 7 बजे, करीब 200 स्कूली छात्र जिनमें छह साल के बच्चे भी शामिल हैं, को रोजाना घुटने तक के सीवर के पानी से होकर गुजरना पड़ता था। लेकिन अब उम्मीद है कि इन बच्चों की आसानी के लिए जल्द ही एक छोटा पुल बनाया जाएगा।
देखने से साफ अनुमान लग जाता है कि इन बच्चों को सीवर के पानी से काफी मशक्कत कर निकलना पड़ता था और इस बीच मच्छरों के हमले से बचने के लिए भी इन बच्चों की दिक्कतें देखकर किसी भी जागरूक नागरिक को काफी दुख होगा।
ये बच्चे मुंबई के साठे नगर के रहने वाले हैं और उनका स्कूल सीवर के इस खुले नाले के दूसरी ओर स्थित है और शिक्षा प्राप्ति के लिए इन बच्चों को इस छोटी सी उम्र में इतनी तपस्या करनी पड़ रही है।
ऐसा नहीं कि इलाके में नाले पर कोई पुल नहीं है। एक पुल है और अगर बच्चे उसका प्रयोग करते हैं तो उन्हें एक घंटे से ज्यादा पैदल चलना होता है और इससे वह थक जाते थे। अपने को इस लंबी गैर-जरूरी मेहनत से बचाने के लिए बच्चों ने यह शॉर्ट कट रास्ता निकाल लिया।
12 वर्षीय पासवान ने अन्य बच्चों की समस्या बताते हुए कहा, अगर हम लंबा रास्ता लेकर स्कूल जाते थे, तो लेट हो जाते थे और स्कूल में सजा मिलती थी। नाले के रास्ते से दिक्कत जरूर होती है, लेकिन कोई चारा नहीं है। अगर पुल बन जाएगा तो हमें इस समस्या से निजात मिल जाएगा।
एक सप्ताह पहले एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के बाद स्थानीय निकाय ने फिलहाल अस्थाई पुल बनाने का फैसला किया है और जल्द ही पक्का पुल बनाया जाएगा। सहायक निगम आयुक्त किरण एस दिघवकर ने कहा कि इलाके से मिली पुल संबंधी तमाम शिकायतों और सुझावों को हमने पुल विभाग के पास भेज दिया है। और लोगों के चलने के लिए पुल बनाने की संभावनाओं पर अध्ययन कर रहे हैं।
जानकारी के लिए बता दें कि साठे नगर और आस पास के इलाके में इसके अलावा भी तमाम समस्याएं हैं। इलाके में मानव विकास के प्रतिमान बहुत ही नीचे हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंस की सबा खान ने एनडीटीवी से कहा कि यहां पर पर्याप्त स्कूल, स्वास्थ्य सेवाए नहीं हैं और इसका असर यहां की आबादी और खासतौर पर बच्चों पर पड़ रहा है।
देखने से साफ अनुमान लग जाता है कि इन बच्चों को सीवर के पानी से काफी मशक्कत कर निकलना पड़ता था और इस बीच मच्छरों के हमले से बचने के लिए भी इन बच्चों की दिक्कतें देखकर किसी भी जागरूक नागरिक को काफी दुख होगा।
ये बच्चे मुंबई के साठे नगर के रहने वाले हैं और उनका स्कूल सीवर के इस खुले नाले के दूसरी ओर स्थित है और शिक्षा प्राप्ति के लिए इन बच्चों को इस छोटी सी उम्र में इतनी तपस्या करनी पड़ रही है।
ऐसा नहीं कि इलाके में नाले पर कोई पुल नहीं है। एक पुल है और अगर बच्चे उसका प्रयोग करते हैं तो उन्हें एक घंटे से ज्यादा पैदल चलना होता है और इससे वह थक जाते थे। अपने को इस लंबी गैर-जरूरी मेहनत से बचाने के लिए बच्चों ने यह शॉर्ट कट रास्ता निकाल लिया।
12 वर्षीय पासवान ने अन्य बच्चों की समस्या बताते हुए कहा, अगर हम लंबा रास्ता लेकर स्कूल जाते थे, तो लेट हो जाते थे और स्कूल में सजा मिलती थी। नाले के रास्ते से दिक्कत जरूर होती है, लेकिन कोई चारा नहीं है। अगर पुल बन जाएगा तो हमें इस समस्या से निजात मिल जाएगा।
एक सप्ताह पहले एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के बाद स्थानीय निकाय ने फिलहाल अस्थाई पुल बनाने का फैसला किया है और जल्द ही पक्का पुल बनाया जाएगा। सहायक निगम आयुक्त किरण एस दिघवकर ने कहा कि इलाके से मिली पुल संबंधी तमाम शिकायतों और सुझावों को हमने पुल विभाग के पास भेज दिया है। और लोगों के चलने के लिए पुल बनाने की संभावनाओं पर अध्ययन कर रहे हैं।
जानकारी के लिए बता दें कि साठे नगर और आस पास के इलाके में इसके अलावा भी तमाम समस्याएं हैं। इलाके में मानव विकास के प्रतिमान बहुत ही नीचे हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंस की सबा खान ने एनडीटीवी से कहा कि यहां पर पर्याप्त स्कूल, स्वास्थ्य सेवाए नहीं हैं और इसका असर यहां की आबादी और खासतौर पर बच्चों पर पड़ रहा है।
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