
दिल्ली−हरियाणा बॉर्डर पर नरेला के अलीपुर गांव में गुरुवार को देश की पहली किसान मंडी का शिलान्यास हुआ। ये मोदी सरकार की बेहद महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है, जिसमें वो ये दावा करती है कि किसान अपनी उपज सीधे उपभोक्ता को बेच सकेगा।
इससे किसान को उपज के सही दाम मिलेंगे और उपभोक्ता को भी फल−सब्ज़ी सस्ते मिल सकेंगे। इसके लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने स्मॉल फार्मर एग्री बिजनेस कंसोर्शियम यानि एसएफ़एसी नाम की संस्था बनाई जिसपर इस पूरे नए तंत्र को विकसित करने का जिम्मा है।
एसएफ़एसी ने छोटे किसानों के समूह कंपनी में तबदील करवाएं हैं और इन कंपनियों के नाम पर मंडी में स्टॉल मिलेगा और वहां पर किसान अपना माल बेच सकेंगे। खास बात ये है कि किसान को अपना माल सीधे मंडी में नहीं लाना होगा मंडी में केवल सैंपल लाए जाएंगे और उसके आधार पर खरीदार बोली लगाकर माल खरीद सकेंगे।
एसएफ़एसी किसानों के खेत के पास ही गोदाम बनाएगी जिसमें ग्रेडिंग करके उपज को रखा जाएगा हालांकि गोदाम में माल रखने का खर्चा कितना सरकार और कितना किसान के ऊपर आएगा इसका फॉर्मूला तय नहीं है।
लेकिन किसान इस मंडी की लोकेशन को लेकर चिंतित हैं, किसानों का कहना है कि अलीपुर गांव में मंडी में सब्जी बेचना ऐसा होगा जैसे हम अपने खेतों में ही बैठकर उपज बेच रहे हैं। ये गांव का इलाका है। शहर से कोई ग्राहक यहां खरीदारी करने क्यों आएगा जबकि यहां से कुछ ही दूरी पर देश की सबसे बड़ी मंडी आज़ादपुर है, जहां पर सारा सिस्टम पहले से बना हुआ है।
अलीपुर में किसान मंडी केवल 1.6 एकड़ में बनेगी, लेकिन आज़ादपुर 78 एकड़ में फैली हुई मंडी है और आबादी के बीच बनी हुई है।
इस बारे में जब केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहन सिंह से सवाल किया और पूछा कि आबादी से इतनी दूर कौन उपभोक्ता गांव में सब्जी खरीदने आएगा तो उन्होंने कोई सीधा जवाब नहीं दिया और बोले कि क्नॉट प्लेस जैसी जगह पर एक एक़ड़ कहां से लाएं और अगर सब्जी के ट्रक उस इलाके में घुसेंगे तो क्या होगा।
असल सवाल तो यही है कि रिटेलर के यहां सब्ज़ी इसलिए महंगी होती है क्योंकि लोग घर से दूर भीड़भाड़ में थोक मंडी में घुसकर रोजाना सब्जी नहीं खरीद सकते और किसान हर जगह जाकर खुद सब्जी बेच नहीं सकते।
वैसे आपको बता दूं कि कुछ साल पहले अंधेरिया मोड़ पर किसान हाट खुला था जहां किसान आए ही नहीं और वो बंद हो गया आज वहां प्रदर्शनी लगा करती हैं।
खैर सरकार के इस कदम की तारीफ या आलोचना की बजाय इंतज़ार करते हैं, किसान मंडी के बनकर खुलने का। क्योंकि तभी पता चलेगा कि नई सरकार की ये नई सोच कितनी हिट है और कितनी फ्लॉप।
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