भारतीय सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को साफ कर दिया कि वह डॉक्टरों को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना करने के निर्देश नहीं दे सकता. न्यायालय ने इस प्रक्रिया के पीछे के ‘वैज्ञानिक तर्क’ पर भी सवाल उठाए. खतने को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसके पीछे शायद ही कोई तर्क है, क्योंकि गैर-मेडिकल कारणों से बच्ची को खतने के लिए मजबूर किया जाता है.
दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि ख़तना से जो बच्चों को नुकसान पहुंचता है उसकी भरपाई नहीं हो सकती. सती और देवदासी प्रथा भी खत्म की जा चुकी है. दुनिया के 42 देश ख़तना को प्रतिबंधित कर चुके हैं. इनकी आस्था ख़तने में हो सकती है लेकिन इन्हें संविधान के तहत ही प्रक्रिया को अपनाना होगा. ये प्रथा संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि सती और देवदासी की तरह ख़तना प्रथा को खत्म किया जाना चाहिए.
वहीं दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की तरफ से कहा गया कि वो कोशिश करेंगे कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए डॉक्टर की सहायता लें. हम चाहते हैं कि अदालत इस बात को रिकॉर्ड पर ले कि भविष्य में हम इसे प्रशिक्षित डॉक्टर से ही कराएंगे. इसे वैक्सिनेशन या मुंडन की तरह प्रथा ही समझा जाय. दाऊदी बोहरा मुस्लिम संगठनों के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'प्रक्रिया उतनी क्रूर नहीं है, जैसा याचिकाकर्ता बता रहे हैं. प्रथा सदियों से चलन में है. ये बोहरा समुदाय का अनिवार्य धार्मिक नियम है. इस मामले पर विस्तृत सुनवाई ज़रूरी है. मामला संविधान पीठ को भेजा जाए. बोहरा 100 फीसदी साक्षरता वाला प्रगतिशील समाज है. याचिकाकर्ता ने अफ्रीका के क्रूर रिवाजों के आधार पर यहां याचिका दाखिल कर दी. हमारा तरीका क्रूर नहीं. आइंदा सिर्फ डॉक्टरों से इसे करवाया जाएगा.'
कोर्ट ने कहा, बिना किसी वैज्ञानिक आधार के जननांग को काटने की इजाज़त कैसे दी जा सकती है? मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'हो सकता है धर्म को मानने वाले ज़्यादातर लोग इसे सही मानते हों. लेकिन ज़रूरी नहीं कि हम बहुमत वाला दृष्टिकोण मान लें.' 9 अगस्त को मामले की सुनवाई जारी रहेगी.
दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि ख़तना से जो बच्चों को नुकसान पहुंचता है उसकी भरपाई नहीं हो सकती. सती और देवदासी प्रथा भी खत्म की जा चुकी है. दुनिया के 42 देश ख़तना को प्रतिबंधित कर चुके हैं. इनकी आस्था ख़तने में हो सकती है लेकिन इन्हें संविधान के तहत ही प्रक्रिया को अपनाना होगा. ये प्रथा संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि सती और देवदासी की तरह ख़तना प्रथा को खत्म किया जाना चाहिए.
वहीं दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की तरफ से कहा गया कि वो कोशिश करेंगे कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए डॉक्टर की सहायता लें. हम चाहते हैं कि अदालत इस बात को रिकॉर्ड पर ले कि भविष्य में हम इसे प्रशिक्षित डॉक्टर से ही कराएंगे. इसे वैक्सिनेशन या मुंडन की तरह प्रथा ही समझा जाय. दाऊदी बोहरा मुस्लिम संगठनों के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'प्रक्रिया उतनी क्रूर नहीं है, जैसा याचिकाकर्ता बता रहे हैं. प्रथा सदियों से चलन में है. ये बोहरा समुदाय का अनिवार्य धार्मिक नियम है. इस मामले पर विस्तृत सुनवाई ज़रूरी है. मामला संविधान पीठ को भेजा जाए. बोहरा 100 फीसदी साक्षरता वाला प्रगतिशील समाज है. याचिकाकर्ता ने अफ्रीका के क्रूर रिवाजों के आधार पर यहां याचिका दाखिल कर दी. हमारा तरीका क्रूर नहीं. आइंदा सिर्फ डॉक्टरों से इसे करवाया जाएगा.'
कोर्ट ने कहा, बिना किसी वैज्ञानिक आधार के जननांग को काटने की इजाज़त कैसे दी जा सकती है? मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'हो सकता है धर्म को मानने वाले ज़्यादातर लोग इसे सही मानते हों. लेकिन ज़रूरी नहीं कि हम बहुमत वाला दृष्टिकोण मान लें.' 9 अगस्त को मामले की सुनवाई जारी रहेगी.
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