मोदीनगर:
यूपी के किसानों ने पहले मौसम की मार झेली, अब मंडी की बेरूख़ी झेल रहे हैं। खेतों से जो फसल मिल सकी, उसकी भी उन्हें कीमत नहीं मिल रही है। जो गेहूं बीते साल 1600-1700 रुपये क्विंटल तक गया था वो इस साल 1300-1400 रुपये में बिक रहा है।
दरअसल भारी बारिश और ओले में जो तबाही हुई उसकी वजह से पहले तो काफी फसल खराब हो गयी। जो फसल बची उससे जो गेहूं निकला उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है। नतीजा ये हुआ है कि किसान जब ये गेहूं लेकर मंडियों में पहुंच रहे हैं तो वहां उन्हें उचित कीमत नहीं मिल पा रही है।
मोदीनगर के खंजरपुर गांव के किसान विपिन की खेत पर जब एनडीटीवी की टीम पहुंची उस वक्त वो अपनी थ्रशर मशीन से गेहूं निकलवा रहे थे। विपिन ने एनडीटीवी को दिखाया कि किस तरह मौसम की वजह से जो बरबादी हुई है, उसकी असली रंगत अब सामने आ रही है। विपिन ने एनडीटीवी से कहा, 'औसतन 1 बीघे में 4-5 क्विंटल गेहूं निकलता था। अब फसल खराब होने के बाद हर बीघे से 2.5 क्विंटल गेहूं ही निकला है। यानी 35 फीसदी का नुकसान।
गेहूं गिरने की वजह से काला पड़ चुका है। अब बाज़ार में बेचने के लिए सरप्लस गेहूं नहीं बचा है।' विपिन के पड़ोसी उपेन्द्र कहते हैं कि प्रशासन की बेरूखी ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उपेन्द्र कहते हैं, 'अगर मुआवज़ा नहीं मिला तो मुझे मजबूर होकर बच्चों को स्कूल से हटाना पड़ेगा। और क्या विकल्प है हमारे पास।'
इसी दौरान खेत में मोदीनगर तहसील के लेखपाल अरविंद गुप्ता भी आ गए। उन्हें ही तय करना है, मुआवज़ा मिलेगा या नहीं। एनडीटीवी से बातचीत में लेखपाल ने बताया कि वो फसल के दाने देखकर तय करते हैं कि नुकसान 33 फीसदी हुआ है या नहीं। उनका दावा है कि खंजरपुर गांव में किसानों को हुए नुकसान पर वो अपनी रिपोर्ट दे चुके हैं, लेकिन पैसा अब तक क्यों नहीं आया, ये तो ज़िला प्रशासन बताएगा।
मोदीनगर के खंजरपुर गांव से हम सीधे पहुंचे नज़फ़गढ़ मंडी ये देखने कि बची-खुची फसल का मोल किसानों को क्या मिल रहा है। भारी बारिश और ओले गिरने का सबसे बुरा असर गेहूं की पैदावार पर पड़ा है। जिन खेतों में नुकसान ज़्यादा हुआ था वहां से जो गेहूं यहां पहुंचा है उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है। अनाज मंडियों में पिछले साल के मुकाबले किसानों को कम पैसा मिल रहा है। सरकार ने कह तो दिया था कि गेहूं ख़रीद के नियम ढीले किए जाएंगे, कुछ कम क्वालिटी का गेहूं भी मंज़ूर किया जाएगा, लेकिन मंडी में किसान मायूस
हैं। गेहूं किसान महेन्द्र सिंह कहते हैं, 'FCI ने हमारा गेहूं रिजेक्ट कर दिया है, जबकि सरकार कहती है कि नॉर्म्स को रिलैक्स किया जा रहा है। हमें मजबूर होकर अपनी पैदावार प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टरों को बेचनी पड़ रही है। ज़ाहिर है, किसानों पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। प्रशासन की बेरूखी ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
दरअसल भारी बारिश और ओले में जो तबाही हुई उसकी वजह से पहले तो काफी फसल खराब हो गयी। जो फसल बची उससे जो गेहूं निकला उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है। नतीजा ये हुआ है कि किसान जब ये गेहूं लेकर मंडियों में पहुंच रहे हैं तो वहां उन्हें उचित कीमत नहीं मिल पा रही है।
मोदीनगर के खंजरपुर गांव के किसान विपिन की खेत पर जब एनडीटीवी की टीम पहुंची उस वक्त वो अपनी थ्रशर मशीन से गेहूं निकलवा रहे थे। विपिन ने एनडीटीवी को दिखाया कि किस तरह मौसम की वजह से जो बरबादी हुई है, उसकी असली रंगत अब सामने आ रही है। विपिन ने एनडीटीवी से कहा, 'औसतन 1 बीघे में 4-5 क्विंटल गेहूं निकलता था। अब फसल खराब होने के बाद हर बीघे से 2.5 क्विंटल गेहूं ही निकला है। यानी 35 फीसदी का नुकसान।
गेहूं गिरने की वजह से काला पड़ चुका है। अब बाज़ार में बेचने के लिए सरप्लस गेहूं नहीं बचा है।' विपिन के पड़ोसी उपेन्द्र कहते हैं कि प्रशासन की बेरूखी ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उपेन्द्र कहते हैं, 'अगर मुआवज़ा नहीं मिला तो मुझे मजबूर होकर बच्चों को स्कूल से हटाना पड़ेगा। और क्या विकल्प है हमारे पास।'
इसी दौरान खेत में मोदीनगर तहसील के लेखपाल अरविंद गुप्ता भी आ गए। उन्हें ही तय करना है, मुआवज़ा मिलेगा या नहीं। एनडीटीवी से बातचीत में लेखपाल ने बताया कि वो फसल के दाने देखकर तय करते हैं कि नुकसान 33 फीसदी हुआ है या नहीं। उनका दावा है कि खंजरपुर गांव में किसानों को हुए नुकसान पर वो अपनी रिपोर्ट दे चुके हैं, लेकिन पैसा अब तक क्यों नहीं आया, ये तो ज़िला प्रशासन बताएगा।
मोदीनगर के खंजरपुर गांव से हम सीधे पहुंचे नज़फ़गढ़ मंडी ये देखने कि बची-खुची फसल का मोल किसानों को क्या मिल रहा है। भारी बारिश और ओले गिरने का सबसे बुरा असर गेहूं की पैदावार पर पड़ा है। जिन खेतों में नुकसान ज़्यादा हुआ था वहां से जो गेहूं यहां पहुंचा है उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं है। अनाज मंडियों में पिछले साल के मुकाबले किसानों को कम पैसा मिल रहा है। सरकार ने कह तो दिया था कि गेहूं ख़रीद के नियम ढीले किए जाएंगे, कुछ कम क्वालिटी का गेहूं भी मंज़ूर किया जाएगा, लेकिन मंडी में किसान मायूस
हैं। गेहूं किसान महेन्द्र सिंह कहते हैं, 'FCI ने हमारा गेहूं रिजेक्ट कर दिया है, जबकि सरकार कहती है कि नॉर्म्स को रिलैक्स किया जा रहा है। हमें मजबूर होकर अपनी पैदावार प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टरों को बेचनी पड़ रही है। ज़ाहिर है, किसानों पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। प्रशासन की बेरूखी ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
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