पानीपत के मेहराना का कब्रिस्तान 2007 के समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में मारे गए लोगों का है। 42 कब्रों वाले इस कब्रिस्तान में पांच कब्र पाकिस्तान के राणा शौकत अली और उनकी पत्नी रुखसाना अख्तर के बच्चों की है। जहां ये परिवार पिछले 5 सालों से जाने की जद्दोजहद में जुटा है।
राणा शौकत अली कहते हैं कि शुरू के तीन साल तक तो बरसी के मौके पर कब्र पर जाने की अनुमति मिलती रही, लेकिन 2011 से पांच साल बीत गए। कई बार पानीपत के लिए वीजा भी लगाया, लेकिन अनुमति नहीं मिली।
इस पाकिस्तानी परिवार के तीन बेटे और दो बेटियां समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की भेंट चढ़ गए। अब ये परिवार 9 फरवरी से दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में अपने रिश्तेदार के यहां ठहरा है। यहां से 100 किलोमीटर दूर पानीपत का वीजा नहीं, लिहाजा बच्चों की कब्र पर जाने की अनुमति नहीं। बच्चों की मां रुखसाना नम आंखों से कहती है कि बच्चे सपने में आते हैं। कहते हैं कहां हमें जंगल में छोड़ कर चली गई। इसलिए भारत सरकार से अनुरोध है कि हमें वहां जाने दें।
साउथ एशियन फोरम फॉर पीपल अगेंस्ट टेरर के जरिए इस परिवार ने विदेश मंत्रालय में गुहार भी लगाई है। वीजा की मियाद 7 अप्रैल को खत्म हो जाएगी। लिहाजा सब्र साथ छोड़ रहा है। उम्मीद टूट रही है। एसएएफपीएटी संस्था के अध्यक्ष अशोक रंधावा ने बताया कि अनुमति के आवेदन 19 फरवरी को ही लगाया, लेकिन अब तक ढाक के तीन पात वाली ही हालत है। हमने लिखा कि हम जिम्मेदारी लेते हैं कि इस परिवार को फिर उस गांव तक पहुंचा देंगे जहां ठहरने का इनका वीजा है। फिर भी कोई सुनवाई नहीं।
सिस्टम के सताए लोगों को लेकर ये हमारी दूसरी कहानी है। यहां समस्या सरहद को लेकर है। सरकारी कामकाजों में ना तो सहानुभूति की कोई जगह है और ना ही संवेदना की कोई कद्र। तो सवाल है कि जिस परिवार को कब्र पर जाने की अनुमति तीन साल तक मिलती रही तो अब क्या बदल गया। अगर नियम बदल गए तो फिर ऐसे कायदे कानून भला किस काम के जो एक मां बाप को अपने बच्चों की कब्र पर जाने से रोकें।
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