मोदी सरकार ने सितंबर 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरूआत की थी...
नई दिल्ली:
मोदी सरकार का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम 'मेक इन इंडिया' शुरू से ही विवादों के साये में रहा है. सरकार ने सितंबर 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरूआत की थी ताकि रक्षा, खाद्य प्रसंस्करण समेत 25 क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके.
कार्यक्रम की सफलता के दावों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए दो जाने माने विशेषज्ञों ने अपने आकलन में कहा है कि इस कार्यक्रम से प्रमुख क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश की परख घरेलू उत्पादन में नई क्षमता विस्तार से की जानी चाहिए ना कि घरेलू कोष को घुमा फिराकर निवेश करने के रूप में की जानी चाहिए.
रिपोर्ट के मुताबिल भारत के विकास में एफडीआई योगदान के बारे में दिए जाने वाले बयान भ्रमित करने वाले हो सकते हैं और इसमें इन महत्वपूर्ण पक्षों (नई क्षमता विस्तार) की अनदेखी की जाती है. भारत को इस संबंध में एक लक्ष्य आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.
इस रपट को इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (आईएसआईडी) के सेवानिवृत्त प्रोफेसर केएस चलपति राव और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बिस्वाजीत धर ने तैयार किया है. इस संबंध में आईएसआईडी ने एक अध्ययन कराया था.
कार्यक्रम की सफलता के दावों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए दो जाने माने विशेषज्ञों ने अपने आकलन में कहा है कि इस कार्यक्रम से प्रमुख क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश की परख घरेलू उत्पादन में नई क्षमता विस्तार से की जानी चाहिए ना कि घरेलू कोष को घुमा फिराकर निवेश करने के रूप में की जानी चाहिए.
रिपोर्ट के मुताबिल भारत के विकास में एफडीआई योगदान के बारे में दिए जाने वाले बयान भ्रमित करने वाले हो सकते हैं और इसमें इन महत्वपूर्ण पक्षों (नई क्षमता विस्तार) की अनदेखी की जाती है. भारत को इस संबंध में एक लक्ष्य आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.
इस रपट को इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (आईएसआईडी) के सेवानिवृत्त प्रोफेसर केएस चलपति राव और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बिस्वाजीत धर ने तैयार किया है. इस संबंध में आईएसआईडी ने एक अध्ययन कराया था.
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