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This Article is From Apr 05, 2016

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है सूखे का प्रकोप, अब पीने के पानी की भी किल्लत

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है सूखे का प्रकोप, अब पीने के पानी की भी किल्लत
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में सूखे का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कई बड़े जलाशय सूखते जा रहे हैं। सिंचाई के पानी की किल्लत तो पहले से थी, अब पीने का पानी भी मुहाल होता लग रहा है।

औरंगाबाद में गोदावरी नदी पर बना जायकवाड़ी बांध दो ज़िलों औरंगाबाद और जालना की पानी की सारी ज़रूरतें पूरी करता है - पेयजल, सिंचाई और उद्योग तक के लिए यहीं से पानी जाता है। लेकिन इस साल मार्च में ही इस जलाशय में इतना पानी नहीं बचा कि उसे काम में लाया जा सके। औसतन इस समय पर इस जलाशय में पानी का स्तर क्षमता का 30% होता है जो इस साल 31 मार्च तक घटकर शून्य पर रह गया है। पिछले साल इस समय पानी का स्तर 13 फीसदी था।

सेन्ट्रल वॉटर कमिशन के चेयरमेन जीएस झा ने एनडीटीवी से कहा, "बांध में पानी का स्तर शून्य पर गिरने का मतलब है कि इस बांध में अब इस्तेमाल के लायक पानी नहीं बचा है जो चिंता की बात है"।

यही हाल परभणी के यलडारी बांध का है। तीन ज़िलों को पानी देने वाले इस बांध में काम लायक बस 4% पानी रह गया है। पिछले साल यहां पानी का स्तर 14 फीसदी था। जबकि मराठवाड़ा इलाके के ईसापुर बांध में पिछले साल पानी का स्तर 31% था जो 31 मार्च को घटकर 14% रह गया है।

इलाके में तीन साल से बारिश नहीं हुई है, फसलें लगातार ख़राब हो रही हैं, पीने का पानी मिलना मुश्किल होता जा रहा है। किसान अब सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।

अब केंद्रीय जल आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को एडवाइज़री जारी करने का फैसला किया है। किसानों से कहा जाएगा कि वो ऐसे बीजों का इस्तेमाल करें जिसमें पानी का इस्तेमाल कम होता हो और पानी का इस्तेमाल काफी सोच-समझ कर किया जाए।"

मुश्किल ये है कि मराठवाड़ा और आसपास के इलाकों में गर्मी बढ़ती जा रही है और दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अब भी दो महीने दूर है। यानी आने वाले दिनों में पानी के संकट का दायरा और बड़ा होने वाला है।

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