नई दिल्ली:
बीजेपी सांसद चंदन मित्रा की इस मांग पर खासा विवाद शुरू हो गया है कि नोबल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन से भारत रत्न वापस ले लिया जाना चाहिए, वहीं अर्थशास्त्री ने कहा है कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी ऐसा करने को कहते हैं तो वह सम्मान लौटा देंगे। एनडीटीवी से बात करते हुए अमर्त्य सेन कहा कि उन्हें नरेंद्र मोदी पर की गई अपनी टिप्पणी पर आज भी कोई अफसोस नहीं है।
उल्लेखनीय है कि अमर्त्य सेन ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अस्वीकार करते हुए कहा था कि वह नहीं चाहते कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनें, क्योंकि उनकी धर्मनिरपेक्ष साख नहीं है। दिग्गज अर्थशास्त्री ने मोदी के शासन के मॉडल को भी अस्वीकार कर दिया और कहा कि गुजरात मॉडल को स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में बहुत कुछ करने की जरूरत है।
बीजेपी जहां इस विवाद से अपने को अलग करती दिखी, वहीं कांग्रेस ने हमला बोलते हुए कहा कि इससे बीजेपी की ‘फासीवादी मानसिकता’ प्रदर्शित होती है।
उधर, अमर्त्य सेन ने कहा, चंदन मित्रा को शायद नहीं मालूम कि बीजेपी नीत सरकार ने मुझे भारत रत्न दिया था और अगर अटल बिहारी वाजपेयी चाहते हैं कि मैं इसे लौटा दूं, मैं निश्चित तौर पर इसे लौटा दूंगा। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी मांग की गई है और उन्होंने इसे मित्रा का ‘निजी’ विचार करार दिया।
सेन ने कहा कि बीजेपी नीत राजग सरकार के कार्यकाल में उनकी लालकृष्ण आडवाणी, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और अरुण जेटली जैसे नेताओं से काफी चर्चा होती थी।
मित्रा ने मांग की थी कि सेन से भारत रत्न वापस ले लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि वह (सेन) भारत में मतदाता भी नहीं हैं। उन्होंने सवाल किया था कि क्या भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति को किसी पार्टी या नेता के खिलाफ या पक्ष में बोलना चाहिए।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने सेन पर हमला बोलने के लिए बीजेपी की खिंचाई की। सेन ने कहा था कि वह नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं चाहते क्योंकि उनकी धर्मनिरपेक्ष विश्वसनीयता नहीं है। सेन ने मोदी के शासन माडल की भी आलोचना करते हुए था कि वह इसका समर्थन नहीं करते।
तिवारी ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि बीजेपी ने सेन से भारत रत्न लौटाने को कहा। ऐसा शायद पहली बार हुआ है। उन्होंने कहा कि इससे भी आगे बढ़ते हुए बीजेपी के कुछ प्रवक्ताओं ने उनका नोबल पुरस्कार लौटाने की मांग तक कर दी।
तिवारी ने कहा, ‘यह किस प्रकार की मानसिकता है। यह अगर फासीवाद नहीं है तो क्या है। आप या तो हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ हैं और अगर आप हमारे खिलाफ हैं तो भारत रत्न लौटा दीजिए। अमर्त्य सेन ने क्या गलती की है, क्या बीजेपी अभिव्यक्ति की आजादी में भरोसा करती है। यह अभिव्यक्ति, लिखने और बोलने के अधिकार पर बड़ा हमला है।’
उन्होंने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री रोजाना बयान देते हैं और पार्टी उनके बोलने के अधिकार का बचाव करती है वहीं ‘वे सोचते हैं कि अन्य की आवाज को दबा दिया जाना चाहिए।’ यह पूछे जाने पर कि जैसा मित्रा ने मांग की है, सेन से भारत रत्न वापस ले लिया जाना चाहिए, मानव संसाधन विकास मंत्री शशि थरूर ने कहा, ‘सवाल ही नहीं पैदा होता।’
इस विवाद पर गृह मंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने कहा, ‘उन लोगों को ऐसा नहीं कहना चाहिए था।’ उन्होंने कहा कि सेन ने मोदी के बारे में जो कुछ कहा, वह सही होना चाहिए क्योंकि वह जाने-माने अर्थशास्त्री हैं।
कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने ट्विटर पर लिखा है, ‘अमर्त्य सेन मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं चाहते और उन्हें नीतीश से नीचे रखते हैं। उनकी इस ‘राय’ के लिए बीजेपी उनसे भारत रत्न वापस लेना चाहती है। क्या यह असहिष्णुता की पराकाष्ठा नहीं है?’ बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने मित्रा की मांग से पैदा विवाद से अपने को अलग करते हुए कहा कि यह उनकी निजी राय है।
पार्टी की एक अन्य प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने कहा कि भारत रत्न विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। बीजेपी इसका हिस्सा नहीं है। सदस्यों द्वारा व्यक्त की गयी राय को उनकी निजी राय समझना चाहिए।
जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि बीजेपी की मांग जताती है कि वाजपेयी-आडवाणी युग समाप्त हो गया है जो सहिष्णुता, लचीलापन और विरोधी विचारों को भी स्वीकार करने पर आधारित था। त्यागी ने एक बयान में कहा कि यह बौद्धिक असहमति दबाने का प्रयास है।
(इनपुट एजेंसियों से भी)
उल्लेखनीय है कि अमर्त्य सेन ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अस्वीकार करते हुए कहा था कि वह नहीं चाहते कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनें, क्योंकि उनकी धर्मनिरपेक्ष साख नहीं है। दिग्गज अर्थशास्त्री ने मोदी के शासन के मॉडल को भी अस्वीकार कर दिया और कहा कि गुजरात मॉडल को स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में बहुत कुछ करने की जरूरत है।
बीजेपी जहां इस विवाद से अपने को अलग करती दिखी, वहीं कांग्रेस ने हमला बोलते हुए कहा कि इससे बीजेपी की ‘फासीवादी मानसिकता’ प्रदर्शित होती है।
उधर, अमर्त्य सेन ने कहा, चंदन मित्रा को शायद नहीं मालूम कि बीजेपी नीत सरकार ने मुझे भारत रत्न दिया था और अगर अटल बिहारी वाजपेयी चाहते हैं कि मैं इसे लौटा दूं, मैं निश्चित तौर पर इसे लौटा दूंगा। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी मांग की गई है और उन्होंने इसे मित्रा का ‘निजी’ विचार करार दिया।
सेन ने कहा कि बीजेपी नीत राजग सरकार के कार्यकाल में उनकी लालकृष्ण आडवाणी, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह और अरुण जेटली जैसे नेताओं से काफी चर्चा होती थी।
मित्रा ने मांग की थी कि सेन से भारत रत्न वापस ले लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि वह (सेन) भारत में मतदाता भी नहीं हैं। उन्होंने सवाल किया था कि क्या भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति को किसी पार्टी या नेता के खिलाफ या पक्ष में बोलना चाहिए।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने सेन पर हमला बोलने के लिए बीजेपी की खिंचाई की। सेन ने कहा था कि वह नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं चाहते क्योंकि उनकी धर्मनिरपेक्ष विश्वसनीयता नहीं है। सेन ने मोदी के शासन माडल की भी आलोचना करते हुए था कि वह इसका समर्थन नहीं करते।
तिवारी ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि बीजेपी ने सेन से भारत रत्न लौटाने को कहा। ऐसा शायद पहली बार हुआ है। उन्होंने कहा कि इससे भी आगे बढ़ते हुए बीजेपी के कुछ प्रवक्ताओं ने उनका नोबल पुरस्कार लौटाने की मांग तक कर दी।
तिवारी ने कहा, ‘यह किस प्रकार की मानसिकता है। यह अगर फासीवाद नहीं है तो क्या है। आप या तो हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ हैं और अगर आप हमारे खिलाफ हैं तो भारत रत्न लौटा दीजिए। अमर्त्य सेन ने क्या गलती की है, क्या बीजेपी अभिव्यक्ति की आजादी में भरोसा करती है। यह अभिव्यक्ति, लिखने और बोलने के अधिकार पर बड़ा हमला है।’
उन्होंने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री रोजाना बयान देते हैं और पार्टी उनके बोलने के अधिकार का बचाव करती है वहीं ‘वे सोचते हैं कि अन्य की आवाज को दबा दिया जाना चाहिए।’ यह पूछे जाने पर कि जैसा मित्रा ने मांग की है, सेन से भारत रत्न वापस ले लिया जाना चाहिए, मानव संसाधन विकास मंत्री शशि थरूर ने कहा, ‘सवाल ही नहीं पैदा होता।’
इस विवाद पर गृह मंत्री सुशीलकुमार शिंदे ने कहा, ‘उन लोगों को ऐसा नहीं कहना चाहिए था।’ उन्होंने कहा कि सेन ने मोदी के बारे में जो कुछ कहा, वह सही होना चाहिए क्योंकि वह जाने-माने अर्थशास्त्री हैं।
कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने ट्विटर पर लिखा है, ‘अमर्त्य सेन मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं चाहते और उन्हें नीतीश से नीचे रखते हैं। उनकी इस ‘राय’ के लिए बीजेपी उनसे भारत रत्न वापस लेना चाहती है। क्या यह असहिष्णुता की पराकाष्ठा नहीं है?’ बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने मित्रा की मांग से पैदा विवाद से अपने को अलग करते हुए कहा कि यह उनकी निजी राय है।
पार्टी की एक अन्य प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने कहा कि भारत रत्न विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। बीजेपी इसका हिस्सा नहीं है। सदस्यों द्वारा व्यक्त की गयी राय को उनकी निजी राय समझना चाहिए।
जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि बीजेपी की मांग जताती है कि वाजपेयी-आडवाणी युग समाप्त हो गया है जो सहिष्णुता, लचीलापन और विरोधी विचारों को भी स्वीकार करने पर आधारित था। त्यागी ने एक बयान में कहा कि यह बौद्धिक असहमति दबाने का प्रयास है।
(इनपुट एजेंसियों से भी)
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